भारत के रक्षा क्षेत्र में परिवर्तन

पाठ्यक्रम: GS3/ रक्षा

सन्दर्भ

  • भारत का रक्षा क्षेत्र आधुनिकीकरण प्रयासों, आत्मनिर्भरता पहलों और रणनीतिक वैश्विक साझेदारी से प्रेरित होकर महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। इन विकासों का उद्देश्य सैन्य क्षमताओं को बढ़ाना और भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना है।

भारत का रक्षा क्षेत्र: वर्तमान अवलोकन

रक्षा उत्पादन में वृद्धि:

  • केंद्रीय बजट वित्त वर्ष 2024-25: रक्षा मंत्रालय को ₹6.22 लाख करोड़ (लगभग $75 बिलियन) आवंटित।
  • स्वदेशी उत्पादन: वित्त वर्ष 2023-24 में ₹1,26,887 करोड़ के साथ रिकॉर्ड वृद्धि प्राप्त की, जो पिछले वर्ष की तुलना में 16.7% अधिक है।
रक्षा उत्पादन में वृद्धि

बढ़ता रक्षा निर्यात:

  • वित्त वर्ष 17 और वित्त वर्ष 24 के मध्य रक्षा निर्यात 14 गुना बढ़कर 2.6 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया।
  • भविष्य के लक्ष्य: 2025 तक 5 बिलियन डॉलर और वित्त वर्ष 30 तक 7 बिलियन डॉलर।
  • प्रमुख बाजार: दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व।

बजट आवंटन:

  • वित्त वर्ष 2023-24 में स्वदेशी खरीद के लिए 1.62 लाख करोड़ रुपये का पूँजीगत परिव्यय, विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता कम करना।

रक्षा क्षेत्र में प्रमुख सुधार

  • उदारीकृत FDI नीति:
    • FDI सीमा: आधुनिक प्रौद्योगिकी लागू करने वाली कंपनियों के लिए 74% (स्वचालित मार्ग) और 100% (सरकारी मार्ग) तक बढ़ा दी गई।
  • घरेलू खरीद को प्राथमिकता दी गई:
    • मेक इन इंडिया और रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 जैसी पहल आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती हैं।
    • 2025 को रक्षा के लिए ‘सुधारों का वर्ष’ घोषित किया गया है।
  • सरलीकृत लाइसेंसिंग:
    • औद्योगिक लाइसेंस के लिए वैधता अवधि बढ़ाई गई।
  • iDEX योजना:
    • रक्षा नवाचार में भाग लेने के लिए स्टार्टअप और MSME को प्रोत्साहित किया जाता है।
  • स्वदेशीकरण पोर्टल (सृजन SRIJAN):
    • रक्षा उत्पादन के लिए भारतीय उद्योगों और MSME के मध्य सहयोग को सुविधाजनक बनाता है।
  • रक्षा औद्योगिक गलियारे:
    • विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में स्थापित किया गया।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी:
    • लार्सन एंड टुब्रो, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स जैसी कंपनियाँ रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ कर रही हैं।

सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण

  • सेना: पिनाका रॉकेट लाँचर, अर्जुन मार्क 1A टैंक और उन्नत राइफलों का समावेशन।
  • वायु सेना: तेजस LCA  को अपनाना और राफेल जेट की खरीद।
    • पांचवीं पीढ़ी की क्षमताओं के लिए उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) का विकास।
  • नौसेना: INS विक्रांत, INS अरिघाट और INS तुशील जैसे स्वदेशी प्लेटफार्मों पर ध्यान केंद्रित करना। उन्नत पनडुब्बियों के लिए प्रोजेक्ट 75 और 75(I) के माध्यम से विस्तार।
  • मिसाइल सिस्टम: ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और आकाश SAM सिस्टम का विकास।
  • उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ: AI, साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष-आधारित संपत्ति और क्वांटम कंप्यूटिंग का एकीकरण।
    • DRDO का ध्यान मानव रहित प्रणालियों, झुंड ड्रोन(swarm drones) और हाइपरसोनिक तकनीक पर है।

रक्षा विनिर्माण में अवसर

  • स्वदेशीकरण: वित्त वर्ष 24 में रक्षा पूँजी खरीद बजट का 75% स्वदेशी स्रोतों के लिए आवंटित किया गया है। 
  • आधुनिकीकरण: आगामी 5-7 वर्षों में बेड़े के आधुनिकीकरण पर 130 बिलियन डॉलर का नियोजित व्यय। 
  • लागत बचत: यूरोप/उत्तरी अमेरिका की तुलना में भारत में विनिर्माण लागत कम है। 
  • सुदृढ़ आपूर्ति श्रृंखला: इस क्षेत्र में 350 से अधिक प्रमुख निर्माता और 10,000 MSMEs सहयोग करते हैं।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों पर निर्भरता:
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम रक्षा उत्पादन (उत्पादन का ~85%) पर हावी हैं, जो निजी क्षेत्र की दक्षता को सीमित करता है।
  • स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास:
    • कावेरी इंजन जैसी परियोजनाएँ उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी प्राप्त करने में चुनौतियों को प्रकट करती हैं।
  • धीमा आधुनिकीकरण:
    • तकनीकी उन्नयन और खरीद प्रक्रियाओं में देरी।
  • निर्यात नियंत्रण:
    • भू-राजनीतिक जटिलताएँ, जैसे कि अनपेक्षित संघर्ष क्षेत्रों (जैसे, यूक्रेन) में भारतीय गोला-बारूद, सावधानीपूर्वक नेविगेशन की आवश्यकता होती है।
  • रणनीतिक संतुलन:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस और रूस के साथ साझेदारी को रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
  • नौकरशाही बाधाएँ:
    • अनुमोदन में लगातार देरी और अंतर-एजेंसी समन्वय की कमी।

भविष्य का दृष्टिकोण

  • वैश्विक महत्वाकांक्षाएँ:
    • 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की स्थापना और 2040 तक भारतीय चालक दल के साथ चंद्र लैंडिंग प्राप्त करना।
  • उन्नत प्रक्षेपण यान:
    • भविष्य के युद्धक्षेत्र के लिए आगामी पीढ़ी की प्रणालियों का विकास।
  • उन्नत विनिर्माण:
    • औद्योगिक गलियारों और निजी क्षेत्र की भागीदारी की क्षमताओं का विस्तार करना।

निष्कर्ष

  • भारत का रक्षा क्षेत्र परिवर्तनकारी पथ पर अग्रसर है, जिसकी पहचान आत्मनिर्भरता, आधुनिकीकरण और वैश्विक सहयोग की खोज से है। जबकि तकनीकी बाधाओं और नौकरशाही की अक्षमताओं जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र बनने की दिशा में भारत का मार्ग स्पष्ट है। निरंतर सुधार, निजी क्षेत्र की बढ़ी हुई भागीदारी और रणनीतिक साझेदारी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत तथा वैश्विक रक्षा परिदृश्य में इसकी भूमिका को मजबूत करेगी।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] हाल के नीतिगत बदलावों, आधुनिकीकरण प्रयासों और रणनीतिक साझेदारी के संदर्भ में भारत का रक्षा क्षेत्र किस तरह आकार ले रहा है, इसका मूल्यांकन कीजिए। इस क्षेत्र के सामने प्रमुख चुनौतियाँ तथा अवसर क्या हैं, और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए उनका समाधान कैसे किया जा सकता है?