पाठ्यक्रम: GS3/भारतीय अर्थव्यवस्था
सन्दर्भ
- हाल ही में, केंद्रीय सरकार ने राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का प्रारूप तैयार करने के लिए अंतर-मंत्रालयी पैनल स्थापित करने की पहल की, जिसका उद्देश्य भारत के विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करना है।
भारत में विनिर्माण क्षेत्र
- इसमें वस्तुओं के उत्पादन, प्रसंस्करण और असेंबली से जुड़ी उद्योग शामिल हैं, जो देश की आर्थिक वृद्धि और रोजगार में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- इसमें वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, रसायन और नवीकरणीय ऊर्जा घटक शामिल हैं।
- वर्तमान में भारत की GDP में 17% योगदान करता है और अगले दो दशकों में 23% तक बढ़ाने का लक्ष्य है, विशेषकर सेमीकंडक्टर, नवीकरणीय ऊर्जा घटकों, मेडिकल उपकरण और बैटरियों जैसे सनराइज क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए।
- वित्त वर्ष 2026 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.7% रहने का अनुमान है, जो वैश्विक विकास दर से अधिक होगी।
मुद्दे और चिंताएँ
- संरचनात्मक चुनौतियाँ: भारत में MSMEs औपचारिकता, सीमित ऋण पहुँच और नियामक समस्याओं के कारण संघर्ष कर रही हैं।
- राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (2011) और “मेक इन इंडिया” (2014) जैसी पहलों के बावजूद GDP में विनिर्माण का योगदान 15-17% तक सीमित रहा है।
- उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा: भारत के विनिर्माण निर्यात वियतनाम जैसे एशियाई देशों से पीछे हैं, मुख्यतः कम उत्पादकता और असंगत उत्पाद मानकों के कारण।
- प्रौद्योगिकी अपनाने की धीमी गति भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में प्रभावी रूप से एकीकृत होने से रोक रही है।
- नीतिगत और अवसंरचनात्मक बाधाएँ:
- उच्च लॉजिस्टिक्स लागत और अपर्याप्त अवसंरचना औद्योगिक विस्तार को बाधित करती हैं।
- राज्य-स्तरीय औद्योगिक नीतियाँ राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से पूरी तरह सामंजस्यपूर्ण नहीं होती , जिससे क्षेत्रीय असमान विकास होता है।
- श्रम और कौशल विकास:
- श्रम बल में कौशल अंतर उत्पादकता को प्रभावित करता है।
- परिधान, जूते और फर्नीचर जैसी श्रम-गहन उद्योगों को अधिक नीति समर्थन की आवश्यकता है।
- स्वच्छ-तकनीक और स्थिरता चुनौतियाँ:
- भारत स्वच्छ-तकनीकी विनिर्माण को बढ़ाना चाहता है, लेकिन सौर PV सेल, EV बैटरियों और पवन-ऊर्जा घटकों में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- विनिर्माण से उत्सर्जित कार्बन पर्यावरणीय चिंताओं को जन्म देता है, जिसके लिए बेहतर स्थिरता उपायों की आवश्यकता है।
संबंधित पहल एवं कदम
- उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना:
- इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स और वस्त्र सहित 14 प्रमुख क्षेत्रों को कवर किया गया है।
- ₹1.5 लाख करोड़ का निवेश और ₹13 लाख करोड़ का उत्पादन मूल्य हासिल किया गया।
- मेक इन इंडिया 2.0:
- भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए 27 क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- भारत वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है।
- राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन:
- इसे केंद्रीय बजट 2025-26 के हिस्से के रूप में घोषित किया गया।
- MSME, मध्यम और बड़े उद्योगों को शामिल किया गया।
- व्यवसाय करने में सुलभता, भविष्य के लिए तैयार कार्यबल विकास, MSMEs को पुनर्जीवित करने, अत्याधुनिक तकनीक तक पहुँच और वैश्विक प्रतिस्पर्धी उत्पादों के उत्पादन पर बल दिया गया।
- अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स विकास:
- औद्योगिक गलियारों, स्मार्ट शहरों और लॉजिस्टिक्स सुधारों में निवेश किया गया।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) और राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) औद्योगिक अवसंरचना को आधुनिक बनाने के लिए स्थापित की गईं।
- FDI और व्यापार नीति सुधार:
- विगत दशक में कुल FDI प्रवाह $709.84 बिलियन रहा, जो पिछले 24 वर्षों के कुल FDI प्रवाह का 68.69% है।
- GST कार्यान्वयन, कॉर्पोरेट कर में कटौती और सुव्यवस्थित नियामक प्रक्रियाओं के माध्यम से व्यापार वातावरण में सुधार किया गया।
- स्वच्छ-तकनीकी विनिर्माण पर ध्यान:
- भारत सौर PV सेल, EV बैटरियों, पवन-ऊर्जा घटकों और हाइड्रोजन तकनीक पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्वच्छ-तकनीकी विनिर्माण को बढ़ा रहा है।
- ये प्रयास भारत के जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप हैं और आयात पर निर्भरता कम करने का लक्ष्य रखते हैं।
अन्य देशों से सीख: वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ
- चीन की ड्यूल सर्कुलेशन रणनीति: महत्त्वपूर्ण तकनीक में आत्मनिर्भरता और मजबूत घरेलू आपूर्ति शृंखला पर बल।
- जर्मनी की मिटलस्टैंड नीति: SMEs को नवाचार अनुदान और निर्यात सहायता प्रदान करती है।
- वियतनाम का SEZ मॉडल: कर प्रोत्साहन, सरलीकृत अनुपालन और रणनीतिक पोर्ट एक्सेस की पेशकश करता है।
आगे की राह
- समावेशी विकास के लिए MSMEs को मजबूत बनाना:
- ऋण तक पहुँच: MSMEs के लिए क्रेडिट गारंटी योजना का विस्तार और उच्च सीमा वाले कस्टमाइज्ड MSME क्रेडिट कार्ड प्रारंभ करना।
- सरलीकृत अनुपालन: एकल-खिड़की मंजूरी और डिजिटाइज़्ड अनुमोदन के माध्यम से नियामक बोझ कम करना।
- प्रौद्योगिकी अपनाना: स्वचालन और डिजिटल उपकरणों पर सब्सिडी देकर MSMEs की उत्पादकता बढ़ाना।
- उच्च-मूल्य वाले उद्योगों को बढ़ावा देना:
- PLI विस्तार: सेमीकंडक्टर, एयरोस्पेस और स्वच्छ-तकनीकी विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में PLI लाभों को बढ़ाना।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला एकीकरण: निर्यात प्रोत्साहन और व्यापार समझौतों को मजबूत करना।
- उन्नत R&D समर्थन: नवाचार केंद्रों और उद्योग-अकादमिक सहयोग के लिए अधिक वित्त पोषण प्रदान करना।
- कार्यबल विकास और कौशल उन्नयन:
- व्यावसायिक प्रशिक्षण का विस्तार: कौशल विकास कार्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करना।
- अपरेंटिसशिप प्रोत्साहन: MSME श्रमिकों के लिए उद्योग-नेतृत्व वाली ट्रेनिंग को बढ़ावा देना।
- AI और स्वचालन कौशल उन्नयन: आगामी पीढ़ी की विनिर्माण तकनीकों के लिए कार्यबल को तैयार करना।
- स्थायी और स्वच्छ-तकनीकी विनिर्माण:
- हरित विनिर्माण प्रोत्साहन: सौर PV, EV बैटरियों और हाइड्रोजन तकनीक का समर्थन।
- सर्कुलर अर्थव्यवस्था नीतियाँ: उत्पादन में पुनर्चक्रण और अपशिष्ट कमी को बढ़ावा देना।
- कार्बन तटस्थता लक्ष्य: निम्न-उत्सर्जन औद्योगिक मानकों को लागू करना।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] नीतिगत हस्तक्षेप किस प्रकार भारत के विनिर्माण क्षेत्र में संरचनात्मक चुनौतियों का प्रभावी तरीके से समाधान कर सकते हैं, तथा उन्हें उच्च मूल्य वाले उद्योगों और MSMEs दोनों को समर्थन देने के लिए किस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए? |
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