चीन की विस्तारवादी रणनीति: निहितार्थ एवं प्रत्युपाय

पाठ्यक्रम: GS2/ अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सन्दर्भ 

  • चीन की आक्रामक विस्तारवादी रणनीतियों ने वैश्विक स्तर पर, विशेषकर भारत जैसे पड़ोसी देशों के मध्य चिंता बढ़ा दी है। भारत और चीन के बीच सीमा पर हाल ही में हुए घटनाक्रम बीजिंग की आक्रामक क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को प्रकट करते हैं, जो महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं।

चीन की विस्तारवादी रणनीति के प्रमुख तत्व

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएँ: दक्षिण चीन सागर (SCS) में चीन की आक्रामकता कृत्रिम द्वीप-निर्माण और विवादित क्षेत्रों के सैन्यीकरण के माध्यम से स्पष्ट है।
    • इसने अंतर्राष्ट्रीय निर्णयों की अवहेलना की है, जैसे कि हेग ट्रिब्यूनल का निर्णय (2016) जिसने इसके नाइन-डैश लाइन समुद्री दावों को अमान्य कर दिया।
    • सेंकाकू द्वीपों को लेकर जापान के साथ और डोकलाम पठार को लेकर भूटान के साथ तनाव इसकी विस्तारवादी मानसिकता को दर्शाता है।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): BRI, बुनियादी ढाँचे के विकास की पेशकश करते हुए, सामान्यतः देशों को ऋण निर्भरता में फँसा देता है, जिससे चीन को रणनीतिक लाभ मिलता है।
    • उदाहरणों में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के अंतर्गत श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह और पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह सम्मिलित हैं।
  • कूटनीतिक दृढ़ता (Diplomatic Assertiveness: ): चीन की टकरावपूर्ण ‘वुल्फ वॉरियर’ कूटनीति, अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध से लेकर यूरोप एवं भारत के साथ विवादों तक, आलोचना का सामना  करने के लिए दबाव और धमकियों का प्रयोग करना  है।
  • सैन्य आधुनिकीकरण और अतिक्रमण: हाइपरसोनिक मिसाइलों एवं नौसेना विस्तार में निवेश इसके क्षेत्रीय दावों को सुदृढ़ करता है।
    • गलवान घाटी संघर्ष (Galwan Valley clashes) (2020) सहित सीमा पर लगातार घुसपैठ, इसकी विस्तारवादी दृष्टि की प्रत्यक्ष अभिव्यक्तियाँ हैं।

भारत को प्रभावित करने वाली हाल की घटनाएँ

  • यारलुंग जांगबो नदी पर बाँध निर्माण: ब्रह्मपुत्र नदी पर प्रस्तावित बाँध से भारत एवं बांग्लादेश के लिए अवसाद और जल की उपलब्धता कम होने के साथ ही डाउनस्ट्रीम प्रवाह क्षेत्र  में जल सुरक्षा को जोखिम उत्पन्न हो सकती  है।
  • लद्दाख में प्रशासनिक परिवर्तन: चीन ने लद्दाख के क्षेत्रों को सम्मिलित करते हुए होटन प्रान्त में दो नए काउंटी बनाए।
  • राष्ट्रों के साथ चीन के सीमा विवाद: चीन के कई देशों के साथ सीमा विवाद चल रहे हैं, जिनमें समीलित हैं:
    • भारत: अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों पर, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लगातार घुसपैठ द्वारा प्रकट होते हैं।
    • जापान: पूर्वी चीन सागर में सेंकाकू द्वीपों पर, जिस पर चीन द्वारा दियाओयू द्वीप होने का दावा किया जाता है।
    • दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र: दक्षिण चीन सागर में, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ब्रुनेई के साथ समुद्री क्षेत्रों पर विवाद, इसकी विशाल नाइन-डैश लाइन के दावों के कारण।

चीन की रणनीति के पीछे की प्रेरणाएँ

  • ऐतिहासिक गौरव की स्थापना: राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ‘चीनी सपना’ चीन की स्थिति को एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में पुनः प्राप्त करने की कल्पना करता है, जो ‘मिडिल अंपायर’ की अवधारणा पर आधारित है।
  • आर्थिक सुरक्षा: अस्थिर होती घरेलू अर्थव्यवस्था एवं  बढ़ती उम्र की जनसंख्या के साथ, वैश्विक बाजारों और संसाधनों को सुरक्षित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • पश्चिमी प्रभाव का सामना करना: चीन अमेरिकी आधिपत्य को चुनौती देना चाहता है और अपने सत्तावादी शासन मॉडल के अनुरूप वैश्विक व्यवस्था स्थापित करना चाहता है।

चीन के विस्तारवाद के परिणाम

  • क्षेत्रीय अस्थिरता: दक्षिण चीन सागर से लेकर हिमालयी सीमाओं तक तनाव को बढ़ाती है, जिससे पड़ोसी क्षेत्र अस्थिर होते हैं।
  • आर्थिक निर्भरता: BRI के माध्यम से चीन से जुड़े देशों को ऋण संकट का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी संप्रभुता से समझौता होता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का क्षरण: वैश्विक नियमों और बहुपक्षीय निर्णयों की अवहेलना नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को कमजोर करती है।

चीन की विस्तारवादी रणनीति का सामना 

  • क्षेत्रीय और वैश्विक गठबंधनों को सुदृढ़ करना: क्वाड (Quad) (भारत, U.S., जापान, ऑस्ट्रेलिया) और AUKUS जैसी पहल एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक को बढ़ावा देती हैं।
    • आसियान देश चीन पर निर्भरता कम करने के लिए साझेदारी में विविधता ला रहे हैं।
  • नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देना: एकपक्षीयता का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन जैसे बहुपक्षीय संगठनों को सुदृढ़ करना।
  • आर्थिक लचीलापन: देश आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता ला रहे हैं और चीनी आयात पर निर्भरता कम करने के लिए आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे रहे हैं।
  • सैन्य और सामरिक तैयारी: राष्ट्रों को अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण और समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने में निवेश करना चाहिए।

चीन की विस्तारवादी रणनीति में भारत की भूमिका

  • भू-राजनीतिक महत्त्व: चीन के साथ भारत की 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा इसे बीजिंग की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं का मुकाबला करने में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनाती है।
    • डोकलाम (2017) एवं गलवान घाटी (2020) जैसी घटनाएँ चीन के आक्रामक दृष्टिकोण को रेखांकित करती हैं।
  • हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में संतुलन: भारत का सागर (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) ढाँचा एवं आसियान के साथ साझेदारी क्षेत्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करती है।
  • आर्थिक प्रतिद्वंद्विता: द्विपक्षीय व्यापार 118.4 बिलियन डॉलर से अधिक होने के बावजूद, भारत के आत्मनिर्भर भारत अभियान का उद्देश्य चीनी आयात पर निर्भरता को कम करना है।
  • वैश्विक गठबंधन: भारत का नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक पर बल , इसकी G20 अध्यक्षता एवं  BRICS और  SCO में भागीदारी चीन के एजेंडे पर नियंत्रण सुनिश्चित करती है।

निष्कर्ष और आगे की राह 

  • चीन की विस्तारवादी रणनीति क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक शासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। हालाँकि इसके उदय को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन अनियंत्रित महत्वाकांक्षाएँ अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को अस्थिर करने का जोखिम उठाती हैं।
  • विश्व की प्रतिक्रिया  सहयोग को बढ़ावा देने, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को लागू करने एवं  बीजिंग के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए गठबंधन बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत के लिए, एक सतर्क एवं सक्रिय दृष्टिकोण – गठबंधनों को मजबूत करना, रणनीतिक साझेदारी में निवेश करना और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना – चीन की आक्रामक नीतियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने में महत्त्वपूर्ण होगा।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] चीन की विस्तारवादी रणनीति और वैश्विक भू-राजनीति पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए। यह रणनीति क्षेत्रों में शक्ति संतुलन को कैसे प्रभावित करती है? चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए देश क्या उपाय कर सकते हैं?