मणिपुर मुद्दे पर दृष्टिकोण का विरोधाभास

पाठ्यक्रम: GS3/आंतरिक सुरक्षा

संदर्भ

  • मणिपुर संकट, जो दो वर्षों से जारी है, ने 250 से अधिक लोगों की मृत्यु और हजारों लोगों के विस्थापन का कारण बना है, लेकिन इसे अन्य सुरक्षा चिंताओं की तुलना में राष्ट्रीय प्राथमिकता में उतना महत्त्व नहीं मिला

मणिपुर मुद्दे के बारे में

  • मई 2023 में यह तनाव और बढ़ गया, जो मैतेई और जनजातीय समुदायों, विशेष रूप से कुकी-ज़ो समूहों के बीच नृजातीय तनाव से उपजा था।
  • मणिपुर उच्च न्यायालय ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने पर विचार करने के निर्देश दिए, जिससे व्यापक विरोध और हिंसा प्रारंभ हो गई।
मणिपुर                            
– ऐतिहासिक रूप से, मणिपुर कृष्ण चेतना का केंद्र रहा है, इसके शासकों ने 15वीं शताब्दी से वैष्णववाद को अपनाया।     
सीमाएँ:
– उत्तर में नागालैंड (204 कि.मी.)
– दक्षिण में मिज़ोरम (95 कि.मी.)
– पश्चिम में असम (204.1 कि.मी.)
– अंतर्राष्ट्रीय सीमा: पूर्व और दक्षिण में म्यांमार (352 कि.मी.)
– मणिपुरी शास्त्रीय नृत्य के लिए प्रसिद्ध है।
– भौगोलिक स्थिति और म्यांमार से निकटता के कारण इसे दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है।
– भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जो दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार और राजनयिक संबंधों को मजबूत करने का लक्ष्य रखती है।

संघर्ष की पृष्ठभूमि

  • जनसांख्यिकीय और राजनीतिक असंतुलन:
    • इंफाल घाटी राज्य के केवल 10% क्षेत्र में फैली है, लेकिन यहाँ मैतेई समुदाय का प्रभुत्व है, जो राज्य की जनसंख्या का 64% हैं और राज्य विधानसभा में बहुमत रखते हैं।
    • 90% भूमि क्षेत्र में विभिन्न जनजातीय समूह (कूकी और नागा समुदाय) रहते हैं, लेकिन उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व सीमित है।
  • तत्काल कारण:
    • अप्रैल 2023 में, मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को मैतेई के ST दर्जा पर 10 वर्ष पुरानी सिफारिश केंद्रीय जनजातीय मामलों मंत्रालय को भेजने का निर्देश दिया।
    • जनजातीय समूहों ने इसका विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि मैतेई समुदाय पहले से ही राजनीतिक और आर्थिक रूप से लाभप्राप्त है और उन्हें ST दर्जा देने से जनजातीय समुदाय और अधिक हाशिए पर चले जाएँगे।
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प्रमुख चिंताएँ

  • मानवीय संकट:
    • 250+ मृत्युएँ और हजारों लोग राहत शिविरों में बेघर।
    • आवश्यक सुविधाओं, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की कमी।
    • समुदायों को अलग करने के लिए बनाई गई बफर ज़ोन हिंसा के नए केंद्र बन रहे हैं।
  • राजनीतिक अस्थिरता:
    • मुख्यमंत्री के त्यागपत्र के पश्चात् राष्ट्रपति शासन लागू।
    • समझौते के लिए कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं।
    • कूकी-जो समुदाय के हजारों निवासियों ने ‘सेपरेशन डे’ का आयोजन किया, स्वतंत्र प्रशासनिक व्यवस्था की माँग करते हुए।
  • जातीय तनाव और सुरक्षा चिंताएँ:
    • मैतेई बनाम कूकी-जो गहरे विभाजन को राजनीतिक कथाओं द्वारा बढ़ाया गया है।
    • हिंसा को सीमा पार सुरक्षा खतरे के रूप में चित्रित करने के प्रयास, विशेष रूप से म्यांमार के कूकी सशस्त्र उग्रवादियों पर आरोप।
    • घाटी-आधारित विद्रोही समूहों (VBIGs) की सक्रियता, जिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
  • आर्थिक प्रभाव: इंटरनेट बंदी से संचार और संकट का दस्तावेजीकरण प्रभावित।
    • मुद्रास्फीति और खाद्य कीमतों में वृद्धि, जिससे विस्थापित समुदायों के लिए जीवनयापन कठिन हो गया।
    • पर्यटन और लघु उद्योगों में गिरावट, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई।
  • भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” को चुनौती: मणिपुर में अशांति भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” को प्रभावित कर सकती है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ाना है।

समाधान की दिशा: संवाद और सुलह

  • राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासन सुधार: केंद्र सरकार को सभी हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिए।
    • मणिपुर पीपल्स कन्वेंशन ने केंद्र सरकार से निवासियों की मुक्त और सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने और शांति बहाली के लिए समयबद्ध रोडमैप तैयार करने की अपील की।
  • सुरक्षा और कानून प्रवर्तन: बफर ज़ोन नीति का पुनः मूल्यांकन ताकि हिंसा रोकी जा सके।
    • अवैध हथियारों के प्रसार को नियंत्रित किया जाए।
    • सुरक्षा बलों को सैन्यकरण की बजाय डी-एस्केलेशन पर ध्यान देना चाहिए।
  • समावेशी संवाद: सभी हितधारकों, विशेष रूप से विभिन्न जातीय समूहों को शामिल करके उनकी शिकायतों को समझना और समाधान निकालना।
    • 1986 का मिजोरम समझौता (भारत सरकार और मिज़ो नेशनल फ्रंट के बीच) सफल सहमति वार्ता का एक उदाहरण है।
  • SC/ST घोषित करने की मानदंडों की समीक्षा: 1965 की लोकुर समिति ने नृजातीय पहचान के लिए पाँच मानदंड सुझाए थे:
    • आदिम गुण
    • विशिष्ट संस्कृति
    • भौगोलिक अलगाव
    • बाहरी समुदायों से संपर्क में झिझक
    • पिछड़ापन
  • मानवीय राहत और आर्थिक पुनरुद्धार: विस्थापित लोगों के लिए तत्काल राहत उपायों का विस्तार।
    • आर्थिक पुनर्वास कार्यक्रमों की शुरुआत, जिससे रोजगार पुनर्स्थापित किया जा सके।
    • लंबी अवधि की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढाँचे का पुनर्निर्माण।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[Q] क्या मणिपुर मुद्दे को लेकर भारत सरकार का रवैया आंतरिक संघर्षों से निपटने में एक गहरी विरोधाभास को दर्शाता है – जो राजनीतिक और सुरक्षा चिंताओं को मानवीय संकट से अधिक प्राथमिकता देता है?
 

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