पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
संदर्भ
- जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन तेज़ हो रहा है और जैव विविधता में गिरावट आ रही है, प्राकृतिक संसाधनों को आर्थिक स्थिरता का आधार मानना पहले से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है।
परिचय
- पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा प्रचलित वाक्य ‘पारिस्थितिकी ही विश्व की स्थायी अर्थव्यवस्था है’ इस मूलभूत संबंध को उजागर करता है कि पारिस्थितिक स्वास्थ्य और मानव समृद्धि अटूट रूप से जुड़े हुए हैं। यह पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक स्थिरता के अविभाज्य रिश्ते को रेखांकित करता है।
पारिस्थितिकी की अवधारणा – पारिस्थितिकी जीवों और उनके पर्यावरण के बीच संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन है, जो पर्यावरणीय तंत्र की गतिशीलता, जैव विविधता और संरक्षण को शामिल करता है। – ‘ह्यूमन इकोलॉजी एंड फैमिली साइंसेज’ (HEFS) पारिस्थितिकी को दो तरीकों से परिभाषित करता है: – यह जीवविज्ञान की एक शाखा के रूप में जाना जाता है, जो जीवों और उनके पर्यावरण के संबंधों का अध्ययन करती है। – इसे जीव और उसके पर्यावरण के बीच जटिल संबंधों के रूप में वर्णित किया जाता है। – पारिस्थितिकी मुख्य रूप से जैविक संगठन के चार स्तरों पर केंद्रित होती है – जीव, जनसंख्या, समुदाय और बायोम। – यह जाँच करती है कि जीव एक-दूसरे और अपने वातावरण के साथ कैसे अंतःक्रिया करते हैं, जिससे प्राकृतिक संसाधन चक्र, जलवायु पैटर्न और आवास स्थिरता प्रभावित होती है। – भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के अनुसार, आवास पारिस्थितिकी प्रजातियों के वितरण और संरक्षण प्रयासों की समझ को विकसित करने में सहायक होती है। – भारत में रामदेव मिश्रा को पारिस्थितिकी के जनक के रूप में जाना जाता है। |
पारिस्थितिकी आर्थिक विकास को कैसे समर्थन देती है?
- प्राकृतिक संसाधन उद्योगों को संचालित करते हैं: वन, नदियाँ और महासागर कृषि, मत्स्य पालन और पर्यटन जैसे उद्योगों के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करते हैं।
- अत्यधिक दोहन आर्थिक अस्थिरता का कारण बनता है, जिससे खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा उत्पादन प्रभावित होते हैं।
- जलवायु प्रतिरोधकता और आपदा रोकथाम: पारिस्थितिकी संरक्षण में निवेश करने से जलवायु प्रतिरोधकता मजबूत होता है, जिससे आपदा संबंधी आर्थिक क्षति कम होते हैं।
- सतत् अभ्यास दीर्घकालिक आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करते हैं बिना प्राकृतिक संपत्तियों को नष्ट किए।
- ग्रीन जॉब्स और सतत् विकास:कर्नाटक की जलवायु कार्य योजना वनीकरण और स्वच्छ ऊर्जा को एकीकृत करती है, जिससे रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं।
- सतत् रणनीति अपनाने वाले व्यवसाय उच्च दक्षता और ब्रांड मूल्य का अनुभव करते हैं।
- जैव विविधता और मानव कल्याण: स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र परागण, जल शुद्धिकरण और मृदा उर्वरता का समर्थन करते हैं, जो कृषि के लिए आवश्यक है।
- संरक्षण प्रयास गुणवत्ता जीवन को बढ़ाते हैं और पर्यावरणीय क्षरण और स्वास्थ्य संकट को रोकते हैं।
संबंधित अध्ययन
- भारत में बाघ अभयारण्यों का आर्थिक मूल्यांकन: यह बाघ संरक्षण के आर्थिक लाभ को दर्शाता है, जिससे स्पष्ट होता है कि जैव विविधता संरक्षण स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देता है।
- यह बताता है कि संरक्षण में निवेश अधिक पर्यटन राजस्व और पारिस्थितिक सेवाओं को उत्पन्न करता है।
- वायु और जल प्रदूषण के प्राकृतिक संसाधन खाते: यह पर्यावरणीय क्षरण के आर्थिक उत्पादकता पर प्रभाव की जाँच करता है।
- यह प्रदूषण की वित्तीय लागत और सतत् अभ्यास अपनाने के आर्थिक लाभ को उजागर करता है।
पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के संतुलन में चुनौतियाँ
- वनों की कटाई और आवास की हानि: औद्योगिक विस्तार अक्सर अल्पकालिक लाभ को प्राथमिकता देता है, जिससे पारिस्थितिक संरक्षण को नजरअंदाज किया जाता है।
- प्रदूषण और संसाधन ह्रास: अस्थिर प्रथाएँ प्राकृतिक पूँजी का क्षरण करती हैं, जिससे आर्थिक मंदी की स्थिति उत्पन्न होती है।
- नीति और शासन संबंधी समस्याएँ: कमजोर पर्यावरणीय नियमन प्रभावी संरक्षण रणनीतियों को बाधित करता है।
दीर्घकालिक पारिस्थितिक और आर्थिक संतुलन के लिए नीति उपाय
- जलवायु वित्त और हरित निवेश:वित्त मंत्रालय ने भारत की जलवायु वित्तीय टैक्सोनॉमी विकसित की है, जिससे जलवायु-अनुकूल तकनीकों के लिए अधिक संसाधन प्रवाह सुगम होता है।
- केंद्रीय बजट 2024-25 हरित संक्रमण पर बल देता है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा और कार्बन-न्यूट्रल पहलों का समर्थन किया जाता है।
- कार्बन बाजार और उत्सर्जन में कमी: भारत ने पेरिस समझौते के अंतर्गत 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 45% की कमी करने का संकल्प लिया है।
- भारतीय कार्बन बाजार ढाँचा उद्योगों को निम्न-कार्बन तकनीकों को अपनाने के लिए कार्बन क्रेडिट व्यापार के माध्यम से प्रोत्साहित करता है।
- सतत् कृषि और जैव विविधता संरक्षण:राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना पर्यावरण-अनुकूल कृषि प्रथाओं और वन संरक्षण को बढ़ावा देती है।
- PM-KUSUM योजना सौर-संचालित सिंचाई को प्रोत्साहित करती है, जिससे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम होती है।
- तटीय और शहरी स्थिरता पहल:राष्ट्रीय तटरेखा परिवर्तन मूल्यांकनकटाव नियंत्रण दिशा-निर्देश प्रदान करता है, जिससे भारत के समुद्री किनारे संरक्षित होते हैं।
- स्मार्ट सिटी मिशन हरित बुनियादी ढाँचे को एकीकृत करता है, जिससे शहरी स्थिरता सुनिश्चित होती है।
आगे की राह
- आर्थिक नीतियों में पारिस्थितिकी का एकीकरण: सरकारों को विकास योजनाओं में स्थिरता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- हरित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना: नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण-अनुकूल उद्योगों में नवाचार आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।
- संरक्षण प्रयासों को मजबूत बनाना: पर्यावरण संरक्षण में समुदाय की भागीदारी को प्रोत्साहित करना दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित कर सकता है।
निष्कर्ष
- यह स्वीकार करना कि पारिस्थितिकी ही स्थायी अर्थव्यवस्था है, ध्यान को सतत् विकास, जलवायु प्रतिरोधकता और जैव विविधता संरक्षण की ओर स्थानांतरित करता है। प्राकृतिक-केन्द्रित नीतियों को अपनाकर, समाज आर्थिक स्थिरता प्राप्त कर सकता है, साथ ही भविष्य की पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को संरक्षित कर सकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] ‘पारिस्थितिकी विश्व की स्थायी अर्थव्यवस्था है’ की अवधारणा पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक स्थिरता की अन्योन्याश्रयता पर किस प्रकार बल देती है, तथा दीर्घकालिक पारिस्थितिक एवं आर्थिक संतुलन सुनिश्चित करने के लिए सरकारें कौन से नीतिगत उपाय अपना सकती हैं? |
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