पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संदर्भ
- हाल के वर्षों में ग्लोबल नॉर्थ और साउथ के बीच एक सेतु के रूप में भारत की भूमिका ने महत्त्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है, जिससे भारत को ग्लोबल साउथ की आवाज को बढ़ाने में सहायता मिली है, साथ ही ग्लोबल नॉर्थ में पारंपरिक साझेदारों के साथ मजबूत संबंधों को बढ़ावा मिला है।
ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ का परिचय
- ग्लोबल नॉर्थ में सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं, जिनकी विशेषता उच्च सकल घरेलू उत्पाद, औद्योगिकीकरण एवं तकनीकी प्रभुत्व है।
- इसके विपरीत, ग्लोबल साउथ में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के राष्ट्र शामिल हैं, जो गरीबी, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे एवं जलवायु संवेदनशीलता जैसी विकासात्मक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- आर्थिक असमानताओं के बावजूद, इन दोनों ब्लॉकों के बीच अन्योन्याश्रितता बढ़ी है। ग्लोबल नॉर्थ को श्रम, संसाधनों और बाजारों के लिए ग्लोबल साउथ पर निर्भर रहना पड़ता है, जबकि ग्लोबल साउथ को निवेश, व्यापार एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से लाभ मिलता है।
ग्लोबल नॉर्थ में भारत के कूटनीतिक प्रयास
- रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना: संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे देशों के साथ भारत के संबंध रक्षा सहयोग, आर्थिक सहयोग एवं तकनीकी आदान-प्रदान जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित हैं।
- बहुपक्षीय मंचों में भागीदारी: G-20, ब्रिक्स और संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों में भारत की सक्रिय भागीदारी का उद्देश्य वैश्विक नीतियों को आकार देना और विकासशील देशों के हितों का समर्थन करना है।
- जलवायु नेतृत्व: जलवायु कार्रवाई में भारत अग्रणी भूमिका निभा रहा है, तथा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) जैसी पहलों को बढ़ावा दे रहा है।
- ग्लोबल डेवलपमेंट कॉम्पैक्ट और मिशन लाइफ जैसी पहल इस दिशा में उठाए गए कदम हैं।
- आर्थिक कूटनीति: यूनिवर्सल पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) और आधार बायोमेट्रिक पहचान कार्यक्रम जैसे डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण और क्रियान्वयन में अपनी सफलता का प्रदर्शन करके, भारत ने विकसित और विकासशील दोनों देशों की रुचि प्राप्त की है।
- प्रवासी चिंताओं का समाधान: भारत ग्लोबल नॉर्थ में अपनी बड़ी प्रवासी जनसंख्या की चिंताओं का समाधान करने के लिए काम कर रहा है।
- इसमें अपने राजनयिक मिशनों के माध्यम से रोजगार संबंधी मुद्दों, वीज़ा मामलों और अन्य प्रवासी चिंताओं के लिए सहायता प्रदान करना शामिल है।
- सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना: लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करना और आपसी समझ को बढ़ाना, जिसमें छात्र कार्यक्रम, सांस्कृतिक उत्सव और शैक्षिक सहयोग शामिल हैं।
ग्लोबल साउथ में भारत के कूटनीतिक प्रयास
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग: इसमें अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय समझौते, व्यापार साझेदारी एवं विकास सहायता कार्यक्रम शामिल हैं।
- वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन: भारत ने 2023 से वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन का आयोजन किया है, जो विकासशील देशों के नेताओं और प्रतिनिधियों को वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
- ये शिखर सम्मेलन खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और समतामूलक विकास जैसे मुद्दों पर केंद्रित होते हैं।
- ब्रिक्स और G-77: भारत ब्रिक्स देशों और G-77 में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विकासशील देशों के हितों का समर्थन करता है।
- ये मंच भारत को वैश्विक शासन में सुधार लाने तथा समावेशी निर्णय लेने को बढ़ावा देने में सहायता करते हैं।
- वैक्सीन कूटनीति: कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत ने वैक्सीन कूटनीति अपनाते हुए कई विकासशील देशों को टीके उपलब्ध कराए।
- इससे भारत के अपने पड़ोसियों और ग्लोबल साउथ के अन्य देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने में सहायता मिली।
- शांति स्थापना अभियान: भारत संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में महत्त्वपूर्ण योगदान देता रहा है, तथा अफ्रीका और अन्य क्षेत्रों के संघर्ष क्षेत्रों में सैनिकों और संसाधनों की तैनाती करता रहा है।
- शांति और स्थिरता के प्रति यह प्रतिबद्धता ग्लोबल साउथ में भारत की कूटनीतिक स्थिति को बढ़ाती है।
- आर्थिक और तकनीकी सहायता: भारत ने विकासशील देशों को बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, क्षमता निर्माण कार्यक्रमों और मानवीय सहायता सहित आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की है।
- इन प्रयासों का उद्देश्य सतत विकास को समर्थन देना तथा ग्लोबल साउथ में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
सेतु के रूप में भारत की भूमिका में चुनौतियाँ
- वैश्विक शक्ति संरचनाएँ: पश्चिमी नेतृत्व वाली संस्थाओं का प्रभुत्व भारत की परिवर्तनकारी सुधारों को आगे बढ़ाने की क्षमता को सीमित करता है।
- भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: भारत और चीन अफ्रीका और एशिया जैसे क्षेत्रों में प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जिसके कारण निवेश एवं विकास परियोजनाओं में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।
- चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करते हुए अपने सामरिक हितों को बनाए रखने के लिए भारत का प्रयास एक नाजुक संतुलनकारी कार्य हो सकता है।
- भिन्न हितों में संतुलन: यद्यपि ग्लोबल नॉर्थ जलवायु परिवर्तन, व्यापार और तकनीकी प्रगति जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है, ग्लोबल साउथ गरीबी उन्मूलन, बुनियादी ढाँचे के विकास एवं बुनियादी सेवाओं तक पहुँच को प्राथमिकता देता है।
- आर्थिक असमानताएँ: विकासशील देशों को प्रायः ऋण भार और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा लगाई गई शर्तों का सामना करना पड़ता है, जो उनके विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
- संस्थागत सुधार: वैश्विक शासन संस्थाओं, जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, में सुधार के लिए भारत के प्रयासों को स्थापित शक्तियों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।
- अधिक समावेशी प्रतिनिधित्व और निर्णय-प्रक्रिया सुनिश्चित करने वाले सार्थक सुधार प्राप्त करना एक जटिल एवं सतत् चुनौती है।
- संसाधन संबंधी बाधाएँ: भारत स्वयं वित्तीय सीमाओं और विकासात्मक चुनौतियों सहित संसाधन संबंधी बाधाओं का सामना कर रहा है।
- घरेलू प्राथमिकताओं को अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के साथ संतुलित करने के लिए सावधानीपूर्वक योजना और संसाधन आवंटन की आवश्यकता होती है।
भारत के रणनीतिक विचार और वैश्विक स्थिति
- भू-राजनीतिक संतुलन और गुटनिरपेक्षता 2.0: ऐतिहासिक रूप से, शीत युद्ध के दौरान भारत के गुटनिरपेक्ष प्रवृति ने उसे वैश्विक मामलों में स्वायत्तता बनाए रखने की अनुमति दी।
- आज, वह संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस दोनों के साथ मजबूत संबंध बनाए रखते हुए, क्वाड गठबंधन में शामिल होते हुए, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का सक्रिय सदस्य होते हुए इस संतुलनकारी कार्य को जारी रख रहा है।
- स्वतंत्र उभरती शक्ति के रूप में भारत: ग्लोबल साउथ में भारत की बढ़ती भूमिका को प्रायः चीन के बढ़ते वैश्विक प्रभुत्व के प्रतिकार के रूप में देखा जाता है।
- अफ्रीका में निवेश के पैटर्न से भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा का संकेत मिलता है, जहां दोनों देश चीन की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति वाले देशों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
- हालाँकि, भारत का दृष्टिकोण केवल प्रतिस्पर्धा तक ही सीमित नहीं है; इसका उद्देश्य अपने स्वयं के सामरिक व्यापार, रक्षा और भू-राजनीतिक हितों के साथ स्वयं को एक स्वतंत्र उभरती शक्ति के रूप में स्थापित करना है।
निष्कर्ष और आगे की राह
- ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के बीच एक सेतु के रूप में भारत की भूमिका वैश्विक मंच पर इसके बढ़ते प्रभाव का प्रमाण है।
- समावेशी शासन और विकास सहयोग को बढ़ावा देकर भारत अपने सामरिक हितों को मजबूत करते हुए ग्लोबल साउथ को प्रभावी ढंग से समर्थन दे सकता है।
- यह संतुलित दृष्टिकोण भारत को वैश्विक राजनीति की जटिलताओं से निपटने में सहायता करेगा तथा अधिक समतापूर्ण विश्व में योगदान देगा।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] समावेशी वैश्विक शासन और विकास सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत ग्लोबल नॉर्थ एवं दक्षिण के बीच एक सेतु के रूप में अपनी अद्वितीय स्थिति का प्रभावी ढंग से लाभ कैसे उठा सकता है, तथा दोनों क्षेत्रों के हितों में संतुलन बनाने में उसे किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है? |
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