खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाना

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि; खाद्य सुरक्षा

संदर्भ

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2026 को अंतर्राष्ट्रीय महिला किसान वर्ष घोषित किया है, जिससे वैश्विक कृषि में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को समर्थन मिलेगा और उनकी समस्याओं, विशेष रूप से संपत्ति अधिकार और बाजार पहुंच के बारे में जागरूकता बढ़ेगी।

कृषि में महिलाओं का योगदान

  •  महिलाएँ कृषि में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे खाद्य उत्पादन, ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं और सतत् कृषि को बढ़ावा मिलता है।
  • एशिया और प्रशांत क्षेत्र में महिला श्रम शक्ति का लगभग 58% कृषि क्षेत्र में कार्यरत है।
    • विकासशील देशों में महिलाएँ 60% से 80% तक खाद्य उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं।
    • केवल 10-20% महिलाएँ उस भूमि के स्वामित्व अधिकार रखती हैं, जिस पर वे कार्य करती हैं, जिससे लैंगिक असमानता की गंभीरता उजागर होती है।
  • नीति आयोग के अनुसार, भारत में लगभग 80% ग्रामीण महिलाएँ कृषि गतिविधियों जैसे फसल उगाने और पशुपालन में संलग्न हैं।

कृषि में महिलाओं की भागीदारी के प्रभाव

  • उच्च कृषि उत्पादन: जब महिलाओं को भूमि, तकनीक और वित्तीय सहायता तक समान पहुँच मिलती है, तो वे खाद्य उत्पादन बढ़ाने में सक्षम होती हैं।
  • फसल विविधीकरण: महिलाएँ प्रायः विभिन्न प्रकार की फसलें उगाती हैं, जिससे पोषण में सुधार और एक ही खाद्य स्रोत पर निर्भरता कम होती है।
  • बेहतर संसाधन प्रबंधन: अध्ययन बताते हैं कि महिलाएँ सतत् कृषि पद्धतियों में निवेश करती हैं, जिससे मृदा स्वास्थ्य और जल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
  • परिवार में बेहतर पोषण: जब महिलाएँ आय और खाद्य वितरण को नियंत्रित करती हैं, तो परिवारों को संतुलित और पोषक आहार मिलता है।
  • आर्थिक स्थिरता: कृषि व्यापार और सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत बनाती है।
  • बाजार विस्तार: महिला उद्यमी नए उत्पाद और सेवाएँ प्रस्तुत करती हैं, जिससे स्थानीय बाजारों और उपभोक्ता व्यय में वृद्धि होती है।
  • समुदाय की सहनशीलता: लैंगिक समावेशी नीतियाँ सामाजिक संरचनाओं को सुदृढ़ करती हैं, जिससे सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

चिंताएँ और चुनौतियाँ

  • भूमि स्वामित्व तक सीमित पहुँच: कानूनी और सांस्कृतिक प्रतिबंधों के कारण कई देशों में महिलाएँ भूमि का स्वामित्व या उत्तराधिकार नहीं प्राप्त कर पाती हैं।
    • भारत में केवल 14% कृषि भूमि मालिक महिलाएँ हैं, जिससे उनकी ऋण और सरकारी योजनाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है।
  • वित्तीय समावेशन की कमी: महिलाएँ ऋण और वित्तीय सहायता प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करती हैं।
  • सीमित बाजार पहुँच: भेदभाव और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा महिलाओं को उचित मूल्य पर अपनी उपज बेचने या बड़ी आपूर्ति शृंखलाओं में प्रवेश करने से रोकता है।
  • तकनीक तक सीमित पहुँच: कई महिलाओं के पास मोबाइल-आधारित कृषि सलाह सेवाएँ नहीं हैं, जिससे वे जानकारीपूर्ण निर्णय लेने में असमर्थ होती हैं।
  • सीमित शिक्षा और प्रशिक्षण: महिलाओं को आधुनिक कृषि तकनीकों, डिजिटल साक्षरता और जलवायु-स्मार्ट खेती तक पहुँच नहीं मिलती।
  • कृषि नीतियों में लैंगिक पूर्वाग्रह: सरकारी कार्यक्रम और सब्सिडी प्रायः पुरुष किसानों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे महिलाओं को कम संसाधन और अवसर मिलते हैं।
  • अत्यधिक कार्यभार और अवैतनिक श्रम: महिलाएँ खेती और घरेलू जिम्मेदारियों को संभालती हैं, जिससे उत्पादकता और आय-सृजन गतिविधियों के लिए समय कम मिलता है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ: पारंपरिक मान्यताएँ महिलाओं को नेतृत्व भूमिकाओं, सहकारी समितियों या ग्रामीण समुदायों में निर्णय लेने से हतोत्साहित कर सकती हैं।

प्रभावी रणनीतियाँ

  • सुरक्षित भूमि अधिकार: महिलाओं को कानूनी रूप से भूमि का स्वामित्व और नियंत्रण प्रदान करना आवश्यक है।
भारत में भूमि अधिकारों से जुड़े प्रमुख कानून:
हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005: यह बेटियों को माता-पिता की संपत्ति में समान अधिकार देता है।
अनुसूचित जनजातियाँ और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन अधिकार अधिनियम, 2006: यह महिलाओं को पुरुषों के साथ भूमि की संयुक्त स्वामित्व का अधिकार देता है।
  • ऋण और वित्तीय सेवाओं तक पहुँच: महिला किसानों की आवश्यकताओं के अनुरूप सुक्ष्मवित्त प्रणालियाँ और सहकारी बैंक विकसित करना।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: स्थानीय जरूरतों के अनुरूप सतत् कृषि तकनीकों, कृषि व्यापार और जलवायु-सहिष्णु पद्धतियों का प्रशिक्षण देना।
  • तकनीक और डिजिटल उपकरण: बाजार पहुँच, मौसम अपडेट और कृषि सलाह प्रदान करने के लिए मोबाइल-आधारित प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना।
  • समावेशी कृषि नीतियाँ: कृषि नीतियों में लैंगिक मुद्दों को मुख्यधारा में शामिल करना और सभी स्तरों पर महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना।
  • सहकारी समितियाँ और नेटवर्क: महिला नेतृत्व वाली सहकारी समितियों को प्रोत्साहित करना।
  • बाल देखभाल और सामाजिक सहायता सेवाएँ: महिलाओं के दोहरे उत्तरदायित्व को पहचानते हुए सहायता प्रणालियाँ विकसित करना।

प्रमुख वैश्विक रणनीतियाँ

  • केन्या: महिला उद्यम निधि माइक्रो ऋण और प्रशिक्षण प्रदान करता है।
  • बांग्लादेश: लैंगिक-संवेदनशील कृषि विस्तार सेवाएँ नीति का भाग हैं।
  • ब्राजील: भूमि सुधार नीतियाँ महिलाओं के लिए भूमि स्वामित्व तक पहुँच में सुधार करती हैं।
  • वियतनाम: डिजिटल प्लेटफॉर्म महिला किसानों को बाजार जानकारी और जलवायु-स्मार्ट तकनीकों तक पहुँच प्रदान करते हैं।

भारतीय पहल और नीति समर्थन

  • महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (MKSP): महिलाओं की कृषि कौशल और संसाधनों तक पहुँच बढ़ाने के लिए बनाई गई।
  • कृषि सखी:ग्रामीण क्षेत्रों में अंतिम व्यक्ति तक कृषि सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की पहल।
    • कृषि सखी कन्वर्जेंस प्रोग्राम (KSCP): ‘लखपति दीदी’ कार्यक्रम का प्रमुख घटक।
  • स्व-सहायता समूह (SHGs) और सुक्ष्मवित्त योजनाएँ: महिलाओं को स्थायी कृषि प्रथाओं में निवेश करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • डिजिटल समावेशन कार्यक्रम: महिलाओं को बाजार जानकारी और जलवायु-स्मार्ट तकनीकों तक पहुँच प्रदान करता है।
  • PM किसान सम्मान निधि: छोटे और सीमांत किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करता है।
  • किसान फसल बीमा योजना: किसानों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • जन धन योजना: महिलाओं को बैंक खाते और ऋण सुविधाएँ प्रदान करता है।

निष्कर्ष और आगे की राह 

  • कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाना केवल लैंगिक समानता का मुद्दा नहीं, बल्कि यह खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता भी है। 
  • उनकी कौशल और अवसरों में निवेश करके, समाज एक अधिक सतत् और सहिष्णु कृषि क्षेत्र विकसित कर सकता है।
  •  सरकारों, निजी संगठनों और समुदायों को मिलकर महिला किसानों की संभावनाओं को अनलॉक करना चाहिए, जिससे सभी के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित हो सके। 
  • संयुक्त राष्ट्र ने 2026 को अंतर्राष्ट्रीय महिला किसान वर्ष घोषित किया है, जिससे लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा, जिससे कृषि-खाद्य प्रणाली अधिक सतत्, उत्पादक और प्रतिरोधी बन सकेगी।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाना दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा में कैसे योगदान दे सकता है, और कौन सी सामाजिक या आर्थिक बाधाएँ इस प्रगति में बाधा बन सकती हैं?

Source: TH

 

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