पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध; GS3/सुरक्षा
संदर्भ
- वैश्विक हिंसा की वर्तमान स्थिति, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका, तथा विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिक युद्ध और आतंकवाद की जटिलताओं के साथ खतरों की उभरती प्रकृति, वैश्विक शांति एवं सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रही है।
हिंसा के दुष्चक्र की संकल्पना
- ‘हिंसा का दुष्चक्र’ वाक्यांश यह सुझाव देता है कि हिंसा कोई एकल या पृथक् घटना नहीं है, बल्कि यह एक सतत् और विस्तारित प्रक्षेप पथ है। इसमें शामिल हैं:
- सांप्रदायिक और धार्मिक हिंसा: धार्मिक समूहों के बीच तनाव, जो प्रायः राजनीतिक प्रचार या ऐतिहासिक शिकायतों से प्रेरित होता है, के कारण कई हिंसक घटनाएँ हुई हैं।
- भारत में, विशेष रूप से, सांप्रदायिक दंगे हुए हैं, जिनसे जान-माल की हानि हुई है, संपत्ति की हानि हुई है, तथा सामाजिक विभाजन गहरा हुआ है।
- राजनीतिक और चुनावी हिंसा: कई लोकतंत्रों में राजनीतिक हिंसा एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गई है, जिसमें विपक्षी सदस्यों, कार्यकर्त्ताओं और पत्रकारों को उनके विचारों के लिए निशाना बनाया जाता है।
- घृणास्पद भाषण, धमकी और राजनीतिक रैलियों पर हमले, ये सभी इस बढ़ती हुई समस्या का हिस्सा हैं।
- राज्य-स्वीकृत हिंसा: कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग में चिंताजनक वृद्धि हुई है, जिसमें पुलिस क्रूरता, मुठभेड़ और असहमति का दमन शामिल है।
- इसे प्रायः कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर उचित ठहराया जाता है, लेकिन कई मामलों में यह मानवाधिकारों का उल्लंघन भी करता है।
- घृणा अपराध और सतर्कतावाद: भीड़ द्वारा हत्या, नैतिक पुलिसिंग और हाशिए पर पड़े समुदायों के विरुद्ध लक्षित हिंसा में वृद्धि इस प्रवृत्ति का एक चिंताजनक पहलू है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इन अपराधों पर अंकुश लगाने के बजाय प्रायः घृणास्पद भाषण और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का कार्य करते हैं।
- सांप्रदायिक और धार्मिक हिंसा: धार्मिक समूहों के बीच तनाव, जो प्रायः राजनीतिक प्रचार या ऐतिहासिक शिकायतों से प्रेरित होता है, के कारण कई हिंसक घटनाएँ हुई हैं।
हिंसा के बढ़ते दुष्चक्र के मुख्य कारण
- राजनीतिक अस्थिरता: यह हिंसा का एक प्रमुख कारण है, क्योंकि संघर्ष प्रायः सत्ता संघर्ष, कमजोर शासन और प्रभावी संस्थाओं की अनुपस्थिति से उत्पन्न होते हैं।
- राजनीतिक उथल-पुथल का सामना करने वाले देश हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि प्रतिद्वंद्वी गुट नियंत्रण और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
- आर्थिक असमानताएँ और गरीबी: ये हिंसा को बढ़ावा दे सकती हैं, क्योंकि हाशिए पर पड़े समुदाय अपनी शिकायतों को हिंसक तरीकों से हल करने का प्रयास करते हैं।
- भोजन, जल और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुँच की कमी सामाजिक अशांति एवं संघर्ष को उत्पन्न कर सकती है।
- सामाजिक तनाव: इनमें जातीय, धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेद शामिल हैं, जो प्रभावी ढंग से प्रबंधित न किए जाने पर हिंसा में बदल सकते हैं।
- कुछ समूहों के प्रति भेदभाव, हाशिए पर डालना और बहिष्कार संघर्ष एवं हिंसा के लिए आधार तैयार कर सकता है।
- मीडिया की भूमिका: हिंसा के बारे में जनता की धारणा को आकार देने में मीडिया महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सनसनीखेज, पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग और फेक न्यूज़ का प्रसार हिंसा को रोकने के बजाय उसे बढ़ावा देता है।
- राजनीतिक बयानबाजी: यह आक्रामकता को सामान्य बनाने में प्रमुख भूमिका निभाती है, क्योंकि नेताओं द्वारा विभाजनकारी भाषण और भड़काऊ बयान एक ऐसा वातावरण बनाते हैं, जहाँ हिंसा को न केवल उचित ठहराया जाता है, बल्कि कभी-कभी उसका जश्न भी मनाया जाता है।
- पर्यावरणीय क्षरण एवं जलवायु परिवर्तन: ये भी हिंसा में योगदान कर सकते हैं, क्योंकि दुर्लभ संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा तेज हो जाती है।
- प्राकृतिक आपदाएँ, विस्थापन और खाद्य असुरक्षा वर्तमान तनाव को बढ़ा सकती हैं तथा संघर्ष को उत्पन्न कर सकती हैं।
हिंसा के बढ़ते दुष्चक्र के प्रमुख उदाहरण
- अस्थिर विश्व व्यवस्था: शांति बनाए रखने और संघर्षों को रोकने के लिए स्थापित 1945 के बाद की विश्व व्यवस्था टूटने के संकेत दे रही है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), जिन्हें कभी वैश्विक शासन के स्तंभ के रूप में देखा जाता था, बढ़ती हिंसा से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
- पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष: गाजा और लेबनान में युद्ध ने क्षेत्र में शांति की झूठी धारणा उत्पन्न कर दी है। भूमिगत गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, जो यह दर्शाती हैं कि स्थायी शांति की संभावना नहीं है।
- यह क्षेत्र हिंसा का केंद्र बना हुआ है, जहाँ विभिन्न गुट नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
- चरमपंथी हिंसा और वैश्विक निहितार्थ: दक्षिणपंथी और इस्लामवादी दोनों प्रकार की चरमपंथी विचारधाराओं के उदय ने वैश्विक सुरक्षा में जटिलता की परतें जोड़ दी हैं।
- संपूर्ण विश्व के देश इन विचारधाराओं द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जो प्रायः राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर जाती हैं और हिंसा के विभिन्न रूपों में प्रकट होती हैं
- पाकिस्तान में सैन्य प्रतिष्ठानों और परिवहन पर बढ़ते हमलों की भी खबरें मिली हैं, जबकि बांग्लादेश, मलेशिया, सिंगापुर एवं थाईलैंड में भी छोटे हमले हुए हैं।
- इस्लामी आतंकवाद का पुनरुत्थान: ऑनलाइन व्यक्तियों के कट्टरपंथीकरण के कारण विकेन्द्रित आतंकवादी समूहों का उदय हुआ है, जिनका पता लगाना और उनका मुकाबला करना कठिन हो गया है।
- ये समूह चरमपंथी विचारधाराओं को फैलाने और नए सदस्यों की भर्ती करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। अल-कायदा और ISIS जैसे प्रमुख आतंकवादी संगठनों के कमजोर होने से खतरा समाप्त नहीं हुआ है; बल्कि, इसने इन समूहों को अनुकूलन और विकास के लिए मजबूर किया है।
भारत पर प्रभाव
- भारत, अपने विविध और जटिल सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य के कारण, हिंसा से अछूता नहीं रहा है। इसने आंतरिक संघर्षों, सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद का सामना किया है।
- हालाँकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के हालिया आँकड़ों से दंगा-संबंधी घटनाओं में कमी आई है, जो यह दर्शाता है कि भारत 50 वर्षों में सबसे शांतिपूर्ण स्थिति में है।
- इसका श्रेय विभिन्न कारकों को दिया जा सकता है, जिनमें बेहतर कानून प्रवर्तन, सामुदायिक सहभागिता और सामाजिक-आर्थिक विकास शामिल हैं।
चुनौती का समाधान
- कानून प्रवर्तन को मजबूत करना: प्राधिकारियों को हिंसा करने वालों के विरुद्ध तटस्थ और दृढ़ प्रवृति अपनाना चाहिए तथा राजनीतिक या धार्मिक संबद्धता की परवाह किए बिना जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
- धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा एवं सांप्रदायिक हिंसा से निपटने के लिए भारत को धार्मिक हिंसा के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने और कानून के शासन को बनाए रखने की आवश्यकता है।
- इस उभरते जोखिमों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है। इसमें चरमपंथी विचारधाराओं के डिजिटल प्रसार को रोकने के लिए आतंकवाद-रोधी रणनीतियों को अपनाने के महत्त्व पर बल दिया गया है।
- मीडिया की जिम्मेदारी: पत्रकारों और मीडिया घरानों को नैतिक रिपोर्टिंग प्रथाओं को अपनाना चाहिए और फेक न्यूज़ फैलाने या विवादों को सनसनीखेज बनाने से बचना चाहिए।
- राजनीतिक जवाबदेही: राजनीतिक दलों को विभाजनकारी बयानबाजी से बचना चाहिए तथा इसके बजाय समुदायों के बीच शांति और संवाद को बढ़ावा देना चाहिए।
- जन जागरूकता और सामुदायिक पहल: नागरिक समाज को शांति स्थापना के प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए, जिसमें शैक्षिक कार्यक्रम, अंतर-धार्मिक संवाद और हिंसा का मुकाबला करने के लिए बुनियादी स्तर पर आंदोलन शामिल हैं।
महत्त्वपूर्ण पहल
- संयुक्त राष्ट्र की पहल: संयुक्त राष्ट्र ने अपनी स्थापना के पश्चात् से संघर्ष और हिंसा की प्रकृति में परिवर्तन को मान्यता दी है।
- अब ध्यान गैर-राज्यीय तत्वों, संगठित अपराध और शहरी हिंसा के बीच संघर्ष पर केंद्रित है।
- संयुक्त राष्ट्र इन चुनौतियों से निपटने के लिए शांति स्थापना में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और निवेश की आवश्यकता पर बल देता है।
- रोकथाम और शांति निर्माण में निवेश: इसमें शांति की संस्कृति को बढ़ावा देना, राष्ट्रीय स्वैच्छिक शांति निर्माण प्रयासों का समर्थन करना, तथा रोकथाम और शांति निर्माण उपायों में सुसंगतता सुनिश्चित करना शामिल है।
- हिंसा के चक्र को तोड़ना: संयुक्त राष्ट्र हिंसा के दुष्चक्र को समाप्त करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिए रोकथाम और शांति निर्माण का समर्थन करता है।
- इसमें हिंसा के मूल कारणों को संबोधित करना, समावेशी शासन को बढ़ावा देना और सतत् विकास में निवेश करना शामिल है।
निष्कर्ष और आगे की राह
- हिंसा शून्य में नहीं उभरती; यह प्रायः गहरे बैठे पूर्वाग्रहों, राजनीतिक जोड़-तोड़ और व्यवस्थागत विफलताओं का परिणाम होता है।
- विश्व भर में हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति मजबूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और अनुकूल सुरक्षा उपायों की आवश्यकता को रेखांकित करती है। हिंसा के इस बढ़ते दायरे पर नजर रखने के लिए सरकार, मीडिया, नागरिक समाज और व्यक्तियों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
- उदारता, उचित आचरण, त्याग, बुद्धिमता, ऊर्जा, सहनशीलता, सत्यनिष्ठा, दृढ़ संकल्प, प्रेममय दयालुता और समभाव (बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ) के सिद्धांत एक शांतिपूर्ण, सामंजस्यपूर्ण विश्व को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक हैं और ये हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति का उत्तर हैं।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] वैश्विक स्तर पर हिंसा के बढ़ते दुष्चक्र के मद्देनजर, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ एवं व्यक्तिगत राष्ट्र संघर्षों के मूल कारणों को रोकने और उनका समाधान करने के लिए अधिक प्रभावी ढंग से कैसे मिलकर कार्य कर सकते हैं, तथा शांति एवं स्थिरता को बढ़ावा देने में नागरिक समाज को क्या भूमिका निभानी चाहिए? |
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