प्रौद्योगिकी और समतापूर्ण शिक्षा की चुनौती

पाठ्यक्रम: GS2/शिक्षा

सन्दर्भ

  • शिक्षा में प्रौद्योगिकी का वादा हमेशा से सीखने को लोकतांत्रिक बनाने और सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ बनाने का रहा है।
  • भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहां सामाजिक-आर्थिक असमानताएं संसाधनों तक पहुंच को आकार देती हैं, प्रौद्योगिकी अक्सर डिजिटलअन्तराल को समाप्त करने के बजाय उसे और अधिक बढ़ा देती है।

शिक्षा में प्रौद्योगिकी का वादा

  • प्रौद्योगिकी ने अनेक तरीकों से शिक्षा में क्रांति ला दी है, तथा इंटरैक्टिव और रोचक शिक्षण अनुभव उपलब्ध कराया है। अनुकूली शिक्षण प्रौद्योगिकियां शिक्षा को वैयक्तिक बनाती हैं, व्यक्तिगत शिक्षण शैलियों और गति को ध्यान में रखती हैं, जिससे छात्रों के परिणामों में सुधार होता है।
  • इनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना शामिल है; शिक्षा तक पहुंच का विस्तार करना; शिक्षकों का प्रशिक्षण और पुनः प्रशिक्षण; छात्रों को डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए तैयार करना; समावेशिता एवं विविधता को बढ़ावा देना; और स्वचालित प्रशासनिक कार्य आदि।
  • 2018 में लगभग 90% ग्रामीण परिवारों के पास साधारण मोबाइल फोन थे और 36% के पास स्मार्टफोन थे।
    • वर्ष 2022 में स्मार्टफोन वाले घरों का अनुपात बढ़कर 74% से अधिक हो गया है और ASER 2024 के अनुसार, इस वर्ष यह बढ़कर 84% हो गया है।
    • एक वर्ष के अंदर 14 से 16 वर्ष की आयु के बच्चों के पास स्मार्टफोन होने का अनुपात 19% से बढ़कर लगभग 31% हो गया है।
  • एक अध्ययन से पता चला है कि 87% अभिभावक स्कूलों में प्रौद्योगिकी के एकीकरण का समर्थन करते हैं, क्योंकि वे इसकी क्षमता को पहचानते हैं, जिससे सीखने की क्षमता बढ़ती है, तथा छात्रों की समझ और जानकारी को धारण करने की क्षमता में सुधार होता है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में स्कूलों में कंप्यूटर और इंटरनेट की पहुंच में वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, जिससे सीखने के परिणामों में काफी सुधार हुआ है।

चिंताएँ: शैक्षिक असमानताओं को बढ़ाने में प्रौद्योगिकी

  • डिजिटल डिवाइड (डिजिटल संसाधनों तक पहुंच रखने वालों और न रखने वालों के बीच का अंतर):
    • इंटरनेट पहुंच का अभाव: भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अनुसार, 2023 तक भारत में इंटरनेट पहुंच दर लगभग 50% थी।
      • विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की गंभीर समस्या है।
    • उपकरणों की सामर्थ्य: स्मार्टफोन, टैबलेट और लैपटॉप डिजिटल शिक्षा के लिए आवश्यक उपकरण हैं।
    • वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2022 में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सरकारी स्कूलों में कई छात्रों के पास व्यक्तिगत डिजिटल उपकरणों तक पहुंच नहीं है।
    • डिजिटल अवसंरचना की गुणवत्ता: अविकसित क्षेत्रों के स्कूलों में प्रायः पर्याप्त डिजिटल अवसंरचना का अभाव होता है, जिससे ई-लर्निंग कार्यक्रमों का सुचारू कार्यान्वयन बाधित होता है।
  • लिंग विभाजन: कई रूढ़िवादी परिवारों में, लड़कियों की मोबाइल फोन और इंटरनेट तक पहुंच प्रतिबंधित है।
    • दक्षिण एशिया में डिजिटल शिक्षा पर यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में पाया गया कि लड़कों की डिजिटल शिक्षण उपकरणों तक पहुंच लड़कियों की तुलना में अधिक है।
  • भाषा संबंधी बाधाएं: ऑनलाइन शैक्षिक सामग्री का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अंग्रेजी में उपलब्ध है, जो गैर-अंग्रेजी भाषी पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए हानिकारक है।
    • उच्च गुणवत्ता वाली क्षेत्रीय भाषा सामग्री विकसित करने के प्रयास अभी भी अपर्याप्त हैं।
  • शहरी-ग्रामीण असमानता: शहरी क्षेत्रों के निजी स्कूलों ने अपनी शिक्षण विधियों में प्रौद्योगिकी को सहजता से एकीकृत कर लिया है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूल सीमित संसाधनों के साथ संघर्ष करते हैं।

नीतिगत हस्तक्षेप और सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: यह सुलभता संबंधी चिंताओं को दूर करते हुए सीखने को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग पर बल देती है।
    • इसमें विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विकास पर बल दिया गया है।
  • डिजिटल इंडिया अभियान: इसका उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलना है।
    • इसका उद्देश्य डिजिटल अवसंरचना, डिजिटल साक्षरता तथा डिजिटल रूप से सेवाएँ प्रदान करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रौद्योगिकी देश के सुदूरतम कोनों तक पहुँचे।
  • पीएम ई-विद्या (PM eVIDYA): इसका उद्देश्य टेलीविजन, रेडियो और ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से बहु-मॉडल डिजिटल शिक्षा प्रदान करना था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इंटरनेट तक पहुँच के बिना छात्र भी सीखना जारी रख सकें।
  • DIKSHA (ज्ञान साझाकरण के लिए डिजिटल अवसंरचना): यह समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए कई भाषाओं में मुफ्त, उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षिक सामग्री प्रदान करता है।
  • भारतनेट परियोजना: ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी का विस्तार करने के उद्देश्य से, भारतनेट शिक्षा में शहरी-ग्रामीण डिजिटल विभाजन को कम करने में महत्त्वपूर्ण है।
  • राष्ट्रीय डिजिटल शिक्षा वास्तुकला (NDEAR): इसका उद्देश्य शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को सक्रिय और उत्प्रेरित करने के लिए एकीकृत डिजिटल बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना है।
  • भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी (NDLI): शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रबंधित, NDLI शिक्षण संसाधनों का एक आभासी भंडार है, जो सभी स्तरों के शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए पाठ्यपुस्तकों, लेखों, वीडियो और ऑडियोबुक सहित शैक्षिक सामग्रियों के विशाल संग्रह तक मुफ्त पहुँच प्रदान करता है।

आगे की राह: समान डिजिटल शिक्षा सुनिश्चित करना

  • डिजिटल अवसंरचना में सुधार: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में किफायती इंटरनेट पहुँच का विस्तार करना आवश्यक है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी विश्वसनीय डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विकास को गति दे सकती है।
  • किफायती डिजिटल उपकरण: सरकार और कॉर्पोरेट पहल को हाशिए के समुदायों के छात्रों को रियायती डिजिटल उपकरण उपलब्ध कराने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
  • स्थानीय भाषा सामग्री: सभी छात्रों के लिए पहुँच सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षिक सामग्री बनाने में अधिक निवेश की आवश्यकता है।
  • डिजिटल शिक्षणशास्त्र में शिक्षक प्रशिक्षण: शिक्षकों को कक्षाओं में प्रौद्योगिकी को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिए आवश्यक डिजिटल कौशल से युक्त होना चाहिए। प्रशिक्षण कार्यक्रमों को विविध शिक्षार्थियों को लाभान्वित करने के लिए तकनीक-संचालित शिक्षण पद्धतियों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • लड़कियों के लिए डिजिटल समानता को बढ़ावा देना: जागरूकता अभियानों और नीतिगत उपायों के माध्यम से प्रौद्योगिकी तक पहुँच में लिंग आधारित बाधाओं को दूर करना समान शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • शिक्षा में AI: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग इंटरैक्टिव और आकर्षक शिक्षण अनुभव बनाने के लिए किया जा रहा है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जिससे शिक्षा अधिक व्यक्तिगत और प्रभावी हो रही है।

निष्कर्ष

  • प्रौद्योगिकी या तो एक महान समताकारी हो सकती है या एक ऐसी शक्ति जो शैक्षिक असमानताओं में वृद्धि कर सकती है। यद्यपि डिजिटल उपकरणों में शिक्षा में क्रांति लाने की क्षमता है, फिर भी ढाँचागत, वित्तीय और सामाजिक बाधाओं के कारण इनके लाभ लाखों छात्रों की पहुँच से बाहर हैं।
  • डिजिटल विभाजन को समाप्त करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के सम्मिलित प्रयासों की आवश्यकता है।
  • केवल समावेशी नीतियों, बेहतर पहुँच और लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से ही हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि प्रौद्योगिकी असमानता में योगदान देने वाली के बजाय समतामूलक शिक्षा के लिए उत्प्रेरक बने।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] आप किस सीमा तक मानते हैं कि प्रौद्योगिकी में प्रगति शैक्षिक असमानताओं के अंतर को समाप्त कर सकती है, और ऐसी कौन सी संभावित चुनौतियाँ हैं जिनका समाधान करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी छात्र इन तकनीकी नवाचारों से समान रूप से लाभान्वित हों?

Source: TH