पाठ्यक्रम: GS2/शासन; स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे
संदर्भ
- हाल ही में दूषित कफ सिरप से जुड़ी दुखद घटनाओं और उसके परिणामस्वरूप कई बच्चों की मृत्यु ने भारत की ‘विश्व की फार्मेसी’ की प्रतिष्ठा की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग
- भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित है — जो अपने पैमाने, किफायती दवाओं और नवाचार के लिए प्रसिद्ध है।
- भारत 200 से अधिक देशों को सस्ती दवाएँ उपलब्ध कराता है और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- भारत का फार्मास्युटिकल निर्यात निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए अत्यंत आवश्यक है।
पैमाना और पहुँच
- फार्मास्युटिकल विभाग के अनुसार, भारत का स्थान:
- उत्पादन मात्रा के आधार पर वैश्विक स्तर पर तीसरा;
- मूल्य के आधार पर 14वाँ, जो लागत-कुशलता और बड़े पैमाने पर उत्पादन को दर्शाता है।
- वित्त वर्ष 2023–24 के अनुसार:
- उद्योग का मूल्य: USD 50 बिलियन
- घरेलू खपत: USD 23.5 बिलियन
- निर्यात: USD 26.5 बिलियन (प्रमुख बाजार: अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका)
- भविष्य की संभावना:
- 2030 तक उद्योग का आकार: USD 130 बिलियन
- 2047 तक संभावित मूल्यांकन: USD 450 बिलियन (भारत की स्वतंत्रता के शताब्दी लक्ष्यों के अनुरूप)
- वैश्विक नेतृत्व
- भारत की आपूर्ति:
- वैश्विक वैक्सीन मांग का 50% से अधिक
- अमेरिका की जेनेरिक दवा खपत का लगभग 40%
- सक्रिय फार्मास्युटिकल घटकों (APIs) और बायोसिमिलर्स का महत्वपूर्ण हिस्सा
- भारत की आपूर्ति:
प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ
- सुरक्षा संबंधी समस्याएँ: खांसी की दवाओं में विषैले औद्योगिक सॉल्वेंट्स की मिलावट से लेकर तेलंगाना में नकली कैंसर की दवाओं की जब्ती तक की घटनाएँ सम्मिलित हैं।
- एक मामले में, डाइएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकोल (EG) — जो पेंट और ब्रेक फ्लूइड में उपयोग किए जाते हैं — बच्चों की दवाओं में पाए गए, जिससे कई बच्चों की मृत्यु हुई।
- ये घटनाएँ अलग-थलग नहीं हैं, बल्कि निगरानी, गुणवत्ता नियंत्रण और प्रवर्तन में प्रणालीगत विफलताओं की ओर संकेत करती हैं।
- बार-बार होने वाले और रोके जा सकने वाले संकट : गाम्बिया (2022) और उज्बेकिस्तान (2022) में लगभग 90 बच्चों की मृत्यु भारतीय निर्मित खांसी की दवाओं से जुड़ी थी।
- WHO की जांच में इन विषैले तत्वों की ‘अस्वीकार्य मात्रा’ पाई गई।
- भारत ने 2023 में खांसी की दवाओं के लिए निर्यात से पहले परीक्षण अनिवार्य किया — लेकिन केवल निर्यातित खेपों के लिए, जिससे घरेलू उत्पादों की जाँच नहीं हो सकी।
- बिखरी हुई निगरानी और कमजोर प्रवर्तन:भारत की दवा नियमन प्रणाली औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के अंतर्गत संचालित होती है, जिसमें केंद्र और राज्य स्तर पर जिम्मेदारियाँ विभाजित हैं। इस दोहरी संरचना से उत्पन्न हुए हैं:
- अधिकार क्षेत्र की अस्पष्टता और जवाबदेही की कमी
- राज्यों में निरीक्षण और लाइसेंसिंग मानकों में असंगतता
- प्रतिक्रियात्मक शासन, जहाँ प्रवर्तन जन आक्रोश के बाद होता है, न कि सक्रिय निगरानी के अंतर्गत
- भारत की फार्मास्युटिकल विश्वसनीयता पर खतरा
- भारत अमेरिका में जेनेरिक दवाओं का लगभग 40%, UK में 25%, और अफ्रीका में 90% आपूर्ति करता है।
- ढीली निगरानी, नकली दवा बाजार और लाभ-प्रेरित शॉर्टकट भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को कमजोर कर सकते हैं।
भारत में नियामक ढांचा
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)
- यह MoH&FW के अंतर्गत कार्यरत एक राष्ट्रीय नियामक संस्था है जो दवा अनुमोदन, क्लिनिकल ट्रायल, आयात नियंत्रण और राज्य नियामकों के साथ समन्वय करती है।
- यह औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 एवं नियम, 1945 के अनुपालन की निगरानी करता है।
- राज्य औषधि नियंत्रण प्राधिकरण:
- राज्य स्तर पर लाइसेंसिंग, निरीक्षण और प्रवर्तन का कार्य
- CDSCO के साथ मिलकर दवा कानूनों के समान कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना
- राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA):
- दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (DPCO) के अंतर्गत आवश्यक दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करता है
- प्रमुख दवाओं की सुलभता और किफायती दर सुनिश्चित करता है
कानूनी ढांचा
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940: दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण, बिक्री और वितरण को नियंत्रित करता है
- गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस(GMP) और गुड लेबोरेटरी प्रैक्टिस(GLP) के प्रावधान शामिल हैं
- नई औषधियाँ और नैदानिक परीक्षण नियम, 2019: क्लिनिकल ट्रायल अनुमोदन और मुआवजा तंत्र को सुव्यवस्थित करता है
- कुछ दवा श्रेणियों के लिए नियामक निर्णयों की समयसीमा और छूट का प्रावधान करता है
- शेड्यूल M और शेड्यूल Y
- Schedule M: निर्माण प्रथाओं के मानक
- Schedule Y: क्लिनिकल ट्रायल संचालन और नैतिकता के दिशा-निर्देश
सुधार और नीति पहल
- राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल नीति (ड्राफ्ट 2023): नियामक दक्षता, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर केंद्रित
- APIs और बायोसिमिलर्स में आत्मनिर्भरता पर बल
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना: महत्वपूर्ण दवाओं और कच्चे माल के घरेलू निर्माण को बढ़ावा देती है
- फार्मास्युटिकल प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना (PTUAS)): SMEs को WHO-GMP मानकों तक उन्नयन में सहायता
- फार्मा-मेडटेक में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा (PRIP): एक सुदृढ़ R&D पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण
नवाचार और अनुसंधान
- राष्ट्रीय औषधि शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (NIPERs) की स्थापना
- फार्मा-मेडटेक में R&D और नवाचार पर राष्ट्रीय नीति (2023) का शुभारंभ
वैश्विक समन्वय
- भारत अपनी नियामक प्रथाओं को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बना रहा है:
- WHO, US FDA और EMA के साथ सहयोग
- दवा विकास और सुरक्षा के लिए ICH दिशा-निर्देशों को अपनाना
- वैश्विक फार्माकोविजिलेंस नेटवर्क में भागीदारी
आगे की दिशा
- विश्वास की पुनःस्थापना केवल प्रत्येक त्रासदी के बाद दंडात्मक कार्रवाई से नहीं होगी। भारत को चाहिए कि वह:
- घरेलू और निर्यात बाजारों के लिए समान गुणवत्ता मानकों को लागू करे
- CDSCO को राजनीतिक और औद्योगिक दबावों से स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए सशक्त और सुधारित करे
- दवा परीक्षण और रिकॉल डेटा में पारदर्शिता अनिवार्य करे
- निर्माताओं, वितरकों और नियामकों को जोड़ने वाली जवाबदेही श्रृंखला स्थापित करे
- जब तक ऐसे सुधार नहीं किए जाते, भारत की ‘विश्वसनीय दवा आपूर्तिकर्ता’ की पहचान खोखली बनी रहेगी।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] भारत के दवा उद्योग की विश्वसनीयता और वैश्विक प्रतिष्ठा पर नियामक लापरवाही के प्रभाव का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। हाल की घटनाओं, निरीक्षण में संरचनात्मक चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और नियामक प्रशासन को सुदृढ़ करने के लिए सुधार सुझाइए। |
Source: BS
Previous article
आपदा लचीलेपन के लिए भारत की दिशा