डिजिटल प्रभाव की शक्ति और हानि

पाठ्यक्रम: GS2/ई-गवर्नेंस

संदर्भ

  • सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म ने संचार को बदल दिया है, जिससे बड़े पैमाने पर संपर्क संभव हुआ, व्यक्तियों को सशक्त किया गया, और क्रिएटर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला। 
  • हालाँकि, यह गलत जानकारी, कदाचार और नैतिक दुविधाओं को भी बढ़ाता है, जिसके लिए संतुलित शासन ढाँचे की आवश्यकता है।

भारत में डिजिटल प्रभाव परिदृश्य

  • बढ़ता इंटरनेट उपयोग: इंटरनेट इन इंडिया रिपोर्ट 2024 के अनुसार, देश में 886 मिलियन सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं (8% वार्षिक वृद्धि), और 2025 तक यह संख्या 900 मिलियन को पार कर सकती है। ग्रामीण भारत 488 मिलियन उपयोगकर्त्ताओं के साथ आगे है, जो कुल उपयोगकर्त्ता आधार का 55% है।
  • भारतीय भाषाओं के उपयोग में वृद्धि: 57% शहरी उपयोगकर्त्ता क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट पसंद करते हैं, जिससे डिजिटल विस्तार को बढ़ावा मिल रहा है।
  • तीसरी सबसे बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था: स्टेट ऑफ इंडिया डिजिटल इकॉनमी रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत वैश्विक डिजिटलकरण में तीसरे स्थान पर और G20 देशों में उपयोगकर्त्ता स्तर पर डिजिटल संरचना को अपनाने के मामले में 12वें स्थान पर है।

डिजिटल प्रभाव की शक्ति और पहुँच

  • क्रिएटर अर्थव्यवस्था: डिजिटल क्रिएटर वार्षिक उपभोक्ता व्यय में $350 बिलियन तक प्रभाव डालते हैं—जो 2030 तक $1 ट्रिलियन को पार करने की संभावना है। यूट्यूब, इंस्टाग्राम और AI-आधारित लघु वीडियो प्लेटफॉर्म उपभोक्ता विकल्पों को आकार देते हैं।
  • ब्रांड और बाजार परिवर्तन: इन्फ्लूएंसर मार्केटिंग पारंपरिक विज्ञापनों का स्थान ले रही है। लाइव कॉमर्स, वर्चुअल गिफ्टिंग और पेड सब्सक्रिप्शन मॉडल राजस्व उत्पादन को नया रूप दे रहे हैं।
  • डिजिटल राजनीति: प्लेटफॉर्म राजनीतिक अभियानों का केंद्र हैं, जो सार्वजनिक विचारों और मतदाता व्यवहार को प्रभावित करते हैं। हालाँकि, वे गलत सूचना को भी बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है।
  • ऑनलाइन सक्रियता: जलवायु न्याय, लैंगिक अधिकार और हाशिए के समुदायों की आवाज़ को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से सशक्त किया जा रहा है, जिससे समावेशी संवाद को बढ़ावा मिल रहा है।

चुनौतियाँ और नैतिक चिंताएँ

  • गलत सूचना और डीपफेक: भारत गलत सूचना के लिए सबसे अधिक संवेदनशील देशों में है (WEF ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2024)। AI-जनित कंटेंट और क्लिकबेट तकनीकें सच और कल्पना के बीच की रेखा को धुंधला कर देती हैं।
  • डिजिटल विभाजन: हाशिए के समूह जटिल KYC मानदंडों और खराब डिजिटल पहुँच के कारण बाहर रह जाते हैं। हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने डिजिटल पहुँच को मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा है, जिससे समावेशिता की आवश्यकता रेखांकित हुई है।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: अनियंत्रित डिजिटल प्रभाव सामाजिक विभाजन को गहरा कर सकता है और लोकतांत्रिक संवाद को प्रभावित कर सकता है।
  • अनियंत्रित इन्फ्लूएंसर मार्केटिंग: विशेष रूप से स्वास्थ्य और वित्त क्षेत्रों में भ्रामक प्रचार बढ़ रहे हैं, जिनमें पर्याप्त प्रकटीकरण या विनियमन नहीं है।

कानूनी और नैतिक ढाँचे

  • संवैधानिक सुरक्षा:
    • अनुच्छेद 19(1)(a) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत उचित सीमाएँ लागू हैं।
    • उच्चतम न्यायालय के निर्णय स्पष्ट करते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में गलत सूचना और हानिकारक सामग्री शामिल नहीं होती।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019: इन्फ्लूएंसर्स को भ्रामक प्रचार के लिए जिम्मेदार ठहराता है; विज्ञापनों में पारदर्शिता अनिवार्य करता है।
  • आईटी अधिनियम, 2000 और इंटरमीडियरी नियम (2021):
    • धारा 66 और 67 हानिकारक सामग्री पर दंड आरोपित करती है।
    • दिशा-निर्देश प्लेटफॉर्म को गैरकानूनी सामग्री को नियंत्रित करने और शिकायत निवारण सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं।
  • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद् (ASCI): इन्फ्लूएंसर मार्केटिंग के लिए नैतिक संहिताएँ प्रदान करता है, हालाँकि ये गैर-बाध्यकारी हैं और इनके प्रवर्तन की सीमाएँ हैं।

आगे की राह: जिम्मेदार डिजिटल प्रभाव

  • पारदर्शी कंटेंट निर्माण: इन्फ्लूएंसर्स को सनसनीखेज़ सामग्री के बजाय प्रामाणिकता को प्राथमिकता देनी चाहिए, विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा और वित्त क्षेत्रों में।
  • मजबूत विनियमन और प्रवर्तन: ASCI दिशा-निर्देशों को बाध्यकारी मानदंडों में बदलना चाहिए। AI-आधारित कंटेंट मॉनिटरिंग को बढ़ावा देना चाहिए।
  • डिजिटल साक्षरता और आलोचनात्मक सोच: उपयोगकर्त्ताओं को स्रोतों को सत्यापित करने, विचारों पर प्रश्न उठाने और जिम्मेदारी से जानकारी साझा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • डिजिटल विभाजन को समाप्त करना: हाशिए के समुदायों के लिए समावेशी डिजिटल अवसंरचना और सरल पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिए।

निष्कर्ष

  •  डिजिटल प्रभाव एक ओर लोकतंत्र को सशक्त करता है, तो दूसरी ओर विकृति भी उत्पन्न कर सकता है। इसकी क्षमता—उपभोक्ता व्यवहार, जनमत और सक्रियता को आकार देने की—मजबूत विनियमन, नैतिक मानकों और समावेशी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से संतुलित की जानी चाहिए। 
  • गलत सूचना और हेरफेर के जोखिमों को कम करने के लिए अधिकार-आधारित, जवाबदेह और पारदर्शी ढाँचे की आवश्यकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] डिजिटल प्रभाव सार्वजनिक राय, उपभोक्ता व्यवहार और सामाजिक सक्रियता को किस प्रकार आकार देता है, तथा जिम्मेदार सामग्री निर्माण के साथ इसकी शक्ति को संतुलित करने में नैतिक चुनौतियाँ एवं नियामक चिंताएँ क्या हैं?

Source: TH

 

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