नीति आयोग और भारत में सशक्त होता संघवाद

पाठ्यक्रम: GS2/केन्द्र-राज्य संबंध; शासन

संदर्भ

  • विगत् 11 वर्षों में, भारत ने सहकारी एवं राजकोषीय संघवाद के युग को अंगीकृत किया है। केंद्र और राज्य सरकारों ने साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन पर सक्रिय रूप से सहयोग किया है।

संघवाद और इसके प्रकार

  • संघवाद की पुनर्व्याख्या: “संघवाद” संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं है, हालाँकि, बी.आर. अंबेडकर की यह दृष्टि कि “हमारी राजनितिक प्रणाली समय और परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुसार एकात्मक और संघीय दोनों होगा” हमेशा मार्गदर्शक सिद्धांत रही है।
    • हाल के दशक ने ‘संघीय’ पहलू की ओर एक सुविचारित कदम को दर्शाया है, जो पारंपरिक रूप से अधिक एकात्मक झुकाव से स्थानांतरित हुआ है।
  • सहकारी संघवाद: इसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य निर्णय लेने और कार्यान्वयन में साझेदार के रूप में मिलकर कार्य करते हैं। केंद्र सब कुछ निर्देशित करने के बजाय, राज्यों की समान भागीदारी होती है।
    • उदाहरण: नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल, जहाँ मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री एक ही मंच पर विराजमान होते हैं। 
    • विचार: “सबका साथ, सबका विकास” — एकता के माध्यम से विकास।
  • प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद: इसमें राज्य आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं ताकि वे बेहतर प्रदर्शन कर सकें, निवेश आकर्षित कर सकें, शासन में सुधार ला सकें और पुरस्कृत हो सकें।
    • उदाहरण: आकांक्षी जिलों का कार्यक्रम—राज्य स्वास्थ्य, शिक्षा आदि में सुधार करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। नीति आयोग के सूचकांक (स्वास्थ्य सूचकांक, एस.डी.जी. सूचकांक, नवाचार सूचकांक) मानक और रैंकिंग निर्धारित करते हैं।
  • राजकोषीय संघवाद: इसमें केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का विभाजन होता है।
    • उदाहरण: जी.एस.टी. काउंसिल, जहाँ कर नीति को केंद्र और राज्य संयुक्त रूप से तय करते हैं।

नीति आयोग की संघवाद को बढ़ावा देने में भूमिका

  • 2015 में योजना आयोग के स्थान पर स्थापित किया गया।
  • केंद्र और राज्यों के बीच सेतु का कार्य करता है।
  • सहकारी और प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद दोनों को बढ़ावा देता है (आकांक्षी जिलों का कार्यक्रम)।
  • पुराना योजना आयोग केवल वित्त पोषण करता था, जबकि नीति आयोग मार्गदर्शन, सुविधा और समन्वय प्रदान करता है।

संघवाद को बढ़ाने वाले अन्य प्रयास

  • जीएसटी काउंसिल: इसने सामान्य सहमति आधारित वित्तीय प्रशासन सुनिश्चित किया है, जिसमें राज्यों को जीएसटी राजस्व का 71% प्राप्त होता है, जबकि केंद्र के पास लगभग 29% रहता है।
    • 2017-18 से 2024-25 के बीच, केंद्र ने राज्यों को ₹6.52 लाख करोड़ जीएसटी मुआवजा प्रदान किया।
    • जीएसटी के कार्यान्वयन के बाद केंद्र ने वार्षिक जीडीपी का 0.5-1% छोड़ दिया ताकि राज्यों के लिए 14% मुआवजा गारंटी को वित्तपोषित किया जा सके।
  • कर का विकेंद्रीकरण: राज्यों की कर हिस्सेदारी 32% से बढ़कर 42% हुई (14वें वित्त आयोग की सिफारिश)।
    • उत्तर प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों को धन हस्तांतरण में वृद्धि हुई।
    • 2014-15 में ₹3.37 लाख करोड़ से बढ़कर 2024-25 में ₹12.23 लाख करोड़ हुआ।
  • केंद्र प्रायोजित योजनाओं में वृद्धि: 2015-16 से 2023-24 तक, केंद्र प्रायोजित योजनाओं के आवंटन में 197% वृद्धि हुई।

भारतीय संघवाद की चुनौतियाँ

  • राजकोषीय केंद्रीकरण: राज्य निधियों के लिए केंद्र पर बहुत अधिक निर्भर हैं – उनके राजस्व का 40% से अधिक हस्तांतरण से आता है।
    •  2022 में जीएसटी मुआवजे की समाप्ति ने कई राज्यों को राजकोषीय रूप से तनावग्रस्त कर दिया है (उदाहरण के लिए, पंजाब, केरल)। 
  • असमान सौदेबाजी शक्ति: मजबूत केंद्र बनाम कमजोर राज्यों की गतिशीलता बनी हुई है। छोटे या राजनीतिक रूप से विरोधी राज्य प्रायः फंड आवंटन या नीति कार्यान्वयन में बेहतर शर्तों पर वार्ता करने के लिए संघर्ष करते हैं। 
  • CSS (केंद्र प्रायोजित योजनाओं) का अति-केंद्रीकरण: एक आकार सभी के लिए उपयुक्त योजना डिजाइन स्थानीय वास्तविकताओं को अनदेखा करता है। राज्य अक्सर आंशिक लागत का भार उठाते हैं लेकिन डिजाइन और लक्ष्यों में उनकी सीमित भूमिका होती है।
    • उदाहरण के लिए PMGSY, PMAY – केंद्र द्वारा निर्धारित मानक प्रत्येक राज्य के अनुकूल नहीं हो सकते हैं। 
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: निधि आवंटन में राजनीतिक भेदभाव के आरोप सामान्य हैं।
    • उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल, केरल और दिल्ली ने प्रायः केंद्र पर पक्षपात का आरोप लगाया है। 
  • कमजोर संस्थागत तंत्र: अंतर-राज्य परिषद् और क्षेत्रीय  परिषद् जैसे निकायों का कम उपयोग किया जाता है।
    • नीति आयोग सलाहकार है और इसमें वैधानिक अधिकार का अभाव है।
      • इसके पास संवैधानिक समर्थन नहीं है, जिससे इसका अधिकार और जवाबदेही सीमित हो जाती है। 
  • राज्य के विषयों पर अतिक्रमण: केंद्र प्रायः राष्ट्रीय योजनाओं या कानूनों के माध्यम से राज्य सूची के विषयों में हस्तक्षेप करता है। कृषि कानूनों (अब निरस्त) को कृषि पर अतिक्रमण के रूप में देखा गया।

आगे की राह

  • संघवाद को एक प्रमुख शासन सिद्धांत के रूप में बनाए रखना चाहिए।
    • बी. आर. अंबेडकर ने कहा था, “हमारा संविधान समय और परिस्थितियों के अनुसार एकात्मक और संघीय दोनों होगा।” 
  • नीति आयोग की क्षमता को बढ़ाने के लिए सुझाव:
    • इसे कानूनी दर्जा प्रदान करना।
    • राज्यों के साथ बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना।
    • वित्तपोषण और स्टाफिंग में सुधार।
    • सहकारी और प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद में संतुलन बनाए रखना।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] योजना आयोग के नीति आयोग में परिवर्तन से केंद्र-राज्य संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ा है और इसने भारत में संघवाद को मजबूत करने में किस सीमा तक योगदान दिया है?

Source: IE

 

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