पाठ्यक्रम :GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध
समाचार में
- वैश्विक दक्षिण (Global South) के साथ भारत का विकास सहयोग विगत कई वर्षों से निरंतर बढ़ रहा है।
वैश्विक दक्षिण क्या है? – वैश्विक दक्षिण विभिन्न महाद्वीपों—जैसे एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और ओशिनिया—के विकासशील देशों का एक समूह है। – इसमें भारत और चीन जैसे उभरते आर्थिक महाशक्तियाँ, ब्राज़ील एवं इंडोनेशिया जैसे उभरते अर्थतंत्र, तथा अन्य विकासशील देश शामिल हैं। – यह एक विशाल जनसंख्या आधार और आर्थिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। – यहाँ बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध है जिनकी खोज विकसित देश और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कर रही हैं। |
वैश्विक दक्षिण के साथ भारत का विकास सहयोग
- भारत ने लोकतांत्रिक मूल्यों और आर्थिक विकास के बल पर वैश्विक दक्षिण का एक प्रमुख पक्षधर के रूप में उभर कर नेतृत्व किया है।
- ऐतिहासिक रूप से भारत ने 1955 के बांडुंग सम्मेलन में उपनिवेशवाद के अंत और समानता का समर्थन किया।
- 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई।
- 1964 में दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने के लिए G-77 की स्थापना की।
- भारत इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए 2023 की दिल्ली G20 शिखर बैठक में अफ्रीकी संघ को G20 में शामिल करने का प्रस्ताव लेकर आया, जिसे स्वीकार किया गया।
- भारत का विकास सहयोग 2010-11 में $3 बिलियन से बढ़कर 2023-24 में $7 बिलियन तक पहुँच गया है।
- प्रमुख सहयोग के तरीके:
- क्षमता निर्माण
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
- बाज़ार तक पहुँच
- अनुदान
- रियायती वित्तपोषण (विशेष रूप से IDEAS योजना के तहत लाइनों ऑफ क्रेडिट – LoCs)
चुनौतियाँ
- वैश्विक दक्षिण को खाद्य असुरक्षा, कमजोर स्वास्थ्य ढाँचा, ऋण संकट, संघर्ष और वैश्विक नीति निर्माण में उचित प्रतिनिधित्व की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- वैश्विक ऋण संकट और तरलता की कमी के चलते भारत LoCs की भूमिका पर पुनर्विचार कर रहा है, क्योंकि जोखिम एवं लागत बढ़ गई हैं।
- पारंपरिक विकास सहायता प्रदाता (ODA) बजट कटौती और घटते सहायता वातावरण का सामना कर रहे हैं।
- वैश्विक सहायता 2023 में $214 बिलियन से घटकर लगभग $97 बिलियन तक आने की आशंका है।
- यह गिरावट सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्रगति को खतरे में डालती है, जिनके लिए 2024 तक हर वर्ष $4 ट्रिलियन से अधिक की आवश्यकता है।
- साथ ही, उधारी महंगी और अनिश्चित होती जा रही है।
विकल्प
- त्रिकोणीय सहयोग (Triangular Cooperation – TrC): यह एक साझेदारी मॉडल है जिसमें एक वैश्विक उत्तर (Global North) दाता देश, एक वैश्विक दक्षिण (Global South) प्रमुख देश, और एक तीसरा साझेदार देश शामिल होता है।
- जापान, जर्मनी, इंडोनेशिया और ब्राज़ील जैसे देशों ने TrC परियोजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिससे साझा सीख एवं स्थानीय समाधान को बढ़ावा मिला है।
- भारत और जर्मनी ने अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में TrC परियोजनाएँ शुरू की हैं।
- भारत की G-20 अध्यक्षता के दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और फ्रांस के साथ सहयोग से इसे और समर्थन मिला।
- ये साझेदारियाँ तकनीकी, वित्तीय और मानव संसाधनों को मिलाकर वैश्विक विकास वित्त को फिर से दिशा देने में सक्षम हैं, जिससे वैश्विक दक्षिण में प्रभावी और किफायती परिणाम मिल सकते हैं।
सुझाव और आगे की राह
- भारत का दृष्टिकोण समावेशी विकास की अपनी परिकल्पना—“सबका साथ, सबका विकास” और “वसुधैव कुटुंबकम” (एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य)—पर आधारित है, जो साझेदारी, सशक्तिकरण एवं साझा प्रगति पर बल देता है।
- भारत वैश्विक असमानताओं और कमजोर होती विकास वित्त व्यवस्था के बीच एक अधिक समावेशी एवं लचीले वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] वर्तमान परिदृश्य में वैश्विक दक्षिण देशों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? इन देशों के साथ विकास सहयोग के लिए भारत के दृष्टिकोण का विश्लेषण करें। |
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