हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती सामरिक उपस्थिति भारत के लिए चुनौती: संसदीय समिति की रिपोर्ट

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • संसद समिति की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती रणनीतिक उपस्थिति भारत के लिए एक चुनौती है।

रिपोर्ट की प्रमुख मुख्य विशेषताएँ

  •  चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और ऋण-जाल कूटनीति: रिपोर्ट में बीआरआई की ऋण-जाल कूटनीति की चर्चा की गई है, विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में।
  • चीन बंदरगाहों, हवाई अड्डों और लॉजिस्टिक हब जैसी ढांचागत परियोजनाओं में भारी निवेश कर रहा है, जो दोहरे उपयोग (नागरिक + सैन्य) के लिए हैं।
  • ये परियोजनाएं प्रायः भागीदार देशों में अस्थिर ऋण का कारण बनती हैं, जिससे उनकी रणनीतिक निर्भरता चीन पर बढ़ जाती है।
  •  IOR में चीनी नौसेनिक शक्ति का विस्तार:
    • इस क्षेत्र में चीनी नौसैनिक जहाजों की तैनाती की संख्या और अवधि में वृद्धि।
    • जिबूती में 2017 में पहला विदेशी सैन्य अड्डा स्थापित किया।
    • प्रमुख समुद्री चोक पॉइंट्स पर नौसैनिक लॉजिस्टिक्स समर्थन के लिए दोहरे उपयोग वाले ढांचे का विकास।
  •  समुद्री डोमेन जागरूकता गतिविधियाँ:
    • समुद्रविज्ञान और समुद्री डेटा एकत्र करने हेतु वैज्ञानिक शोध के नाम पर चीनी अनुसंधान जहाजों की तैनाती।
    • ये गतिविधियाँ समुद्री निगरानी और खुफिया एकत्रीकरण को लेकर सुरक्षा चिंताओं को जन्म देती हैं।
  •  भारत के समीप रणनीतिक बंदरगाह विकास:
  • चीन हिंद महासागर के तटीय राज्यों, जिनमें भारत की समुद्री सीमाओं के निकट वाले भी शामिल हैं, में बंदरगाहों और ढाँचागत विकास में सक्रिय रूप से शामिल है।
  • इसका उद्देश्य समुद्री शक्ति बनने की दीर्घकालिक रणनीति के अनुरूप है।
  • भारत की प्रतिक्रिया और क्षेत्रीय कूटनीति:
    • भारत क्षेत्रीय भागीदारों के साथ मिलकर चीनी ढाँचागत परियोजनाओं के दीर्घकालिक प्रभावों के प्रति जागरूकता फैला रहा है।
    • इन परियोजनाओं के सैन्य उपयोग से आंतरिक और क्षेत्रीय सुरक्षा पर खतरे को उजागर करता है।
  • श्रीलंका की भारत को आश्वस्ति (2024):
    • श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुर कुमार दिसानायके ने पुनः आश्वस्त किया कि श्रीलंका अपनी धरती को भारत की सुरक्षा या क्षेत्रीय स्थिरता के विरुद्ध उपयोग नहीं होने देगा।
    • भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि उसका श्रीलंका जैसे देशों से संबंध चीन के साथ उनके रिश्तों से स्वतंत्र हैं।
  •  भारत का BRI और CPEC पर रुख:
    • भारत BRI का सैद्धांतिक विरोध करता है।
    • मुख्य आपत्ति: चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) — जो BRI की प्रमुख परियोजना है — भारतीय क्षेत्र जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से होकर गुजरती है, जिसे भारत अवैध रूप से नियंत्रण किया हुआ मानता है।
    • भारत ने इस पर लगातार आपत्ति जताई है और ऐसी गतिविधियों को रोकने की माँग की है।
  •  IOR का सैन्यीकरण:
    • भारत का मानना है कि हिंद महासागर क्षेत्र का सैन्यीकरण अवांछनीय है और इससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा प्रभावित होगी।
    • यह चीनी वित्तपोषित ढाँचों के सैन्य उपयोग के प्रति भारत की आपत्ति को दर्शाता है।

हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) की प्रासंगिकता

  •  ऐतिहासिक उपेक्षा और पुनरुत्थान:
    • यह क्षेत्र कभी व्यापार और सभ्यता का सेतु था, लेकिन शीत युद्ध के दौरान इसकी उपेक्षा हुई।
    • 21वीं सदी में भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक परिवर्तनों के कारण यह पुनः केंद्र में आया।
  •  पुनरुत्थान के प्रमुख कारण:
    • नई अर्थव्यवस्थाओं का उदय: भारत और चीन के उत्थान ने व्यापारिक नेटवर्कों को पुनर्जीवित किया।
    • समुद्री सुरक्षा खतरे: सोमालिया के पास समुद्री डकैती ने वैश्विक शिपिंग को खतरे में डाला, जिससे SLOCs की सुरक्षा पर ध्यान गया।
    • इंडो-पैसिफिक अवधारणा: हिंद और प्रशांत महासागरों को एक रणनीतिक रंगमंच मानते हुए IOR को वैश्विक कूटनीति और सुरक्षा के केंद्र में लाया गया।
    •  IOR पर नियंत्रण से प्रभाव:
      • व्यापार प्रवाह (विशेषकर तेल और गैस),
      • रणनीतिक समुद्री चोक पॉइंट्स (जैसे होरमुज, मलक्का, बाब अल-मंडब),
      • सैन्य ठिकानों की तैनाती और लॉजिस्टिक्स।

हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की समुद्री रणनीति

  •  रणनीति:
    • दक्षिण चीन सागर की आक्रामक नीति के विपरीत चीन IOR में दीर्घकालिक, संतुलित रणनीति अपना रहा है।
    • IOR में उसकी उपस्थिति धीरे-धीरे बढ़ रही है, जिससे भारत की रणनीतिक चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  •  चीन की IOR रणनीति के तीन प्रमुख स्तंभ:
    • राजनीतिक और आर्थिक भागीदारी में गहराई:
      • श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश जैसे देशों के साथ संबंध सुदृढ़ कर रहा है।
      • हम्बनटोटा, ग्वादर, क्यौकफ्यू जैसे बंदरगाहों में निवेश — दोहरे उपयोग की चिंता।
    • अनुसंधान पोतों की उपस्थिति:
      • श्रीलंका, मालदीव में डॉकिंग और IOR में गश्त।
      • पनडुब्बियों की तैनाती और नक्शानवीसी हेतु जल के नीचे डेटा संग्रह।
      • भारत की UDA और समुद्री सुरक्षा के लिए खतरा।
    • वैकल्पिक क्षेत्रीय मंचों का गठन:
      • 2022 में “चाइना-इंडियन ओशियन फोरम” का गठन।
      • भारत की केंद्रीय भूमिका को किनारे करना।
      • भारत की अनुपस्थिति रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण।

भारत की रणनीतिक प्रतिक्रियाएँ

  •  कूटनीतिक और सुरक्षा नेतृत्व:
    • भारत आपदा की स्थिति में प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में उभरा है।
    • HADR, MDA और विकास के मामलों में भारत पसंदीदा सुरक्षा साझेदार है।
    • “MAHASAGAR” पहल क्षेत्रीय रणनीतिक बदलाव को दर्शाती है।
    • भारत अब समान सोच वाले देशों के साथ साझेदारी को प्राथमिकता दे रहा है।
  •  नौसेना आधुनिकीकरण और स्वदेशी विकास:
    • INS विक्रांत, INS विशाखापट्टनम जैसे स्वदेशी युद्धपोतों की तैनाती।
    • समुद्री डोमेन जागरूकता और शक्ति प्रदर्शन की वृद्धि।
    • IOR में भारत की सैन्य स्थिति और प्रतिरोधक क्षमता को बल मिलता है।

निष्कर्ष

  •  हिंद महासागर में वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा:
    • चीन का विस्तार भारत की सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष खतरा है।
    • चीन इस क्षेत्र के समुद्री व्यवस्था को अपने पक्ष में पुनर्गठित करने का प्रयास कर रहा है।
    • भारत के रणनीतिक हित IOR में गहराई से निहित हैं, जिससे यह प्रतिस्पर्धा अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाती है।
  •  भारत का उभरता हुआ सिद्धांत:
    • क्षेत्रीय नेतृत्व, रणनीतिक साझेदारी, समुद्री क्षमताओं का विकास और बाहरी शक्तियों विशेषकर चीन जैसे गैर-तटीय देशों के हस्तक्षेप का विरोध।
  • चीन जहाँ दीर्घकालिक और सूक्ष्म रणनीति अपना रहा है, वहीं भारत बहुस्तरीय एवं सक्रिय रणनीति से क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने और हिंद महासागर में अपनी स्वाभाविक नेतृत्व भूमिका को सुदृढ़ करने की दिशा में अग्रसर है।

Source: TH

 

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