पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण
संदर्भ
- विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित एक नई अध्ययन के अनुसार, यदि वर्तमान जलवायु नीतियों के अंतर्गत वैश्विक तापमान 2.7°C तक बढ़ जाता है, तो दुनिया की वर्तमान हिमनदों का केवल 24% ही बच पाएगा।
हिमनद क्या हैं?
- ये बड़े और मोटे हिम के पर्वतीय जमाव हैं, जो सदियों तक हिम के जमा होने के कारण भूमि पर बनते हैं। हिमनद पृथ्वी के ताजे पानी का 70% हिस्सा रखते हैं और वर्तमान में ग्रह की भूमि क्षेत्र के लगभग 10% हिस्से को कवर करते हैं।
अध्ययन की प्रमुख निष्कर्ष
- अत्यधिक हिमनद हानि: अध्ययन चेतावनी देता है कि यदि तापमान आज ही बढ़ना बंद हो जाए, तब भी हिमनद अपने कुल मात्रा का 39% खो देंगे (2020 के स्तर की तुलना में), जिससे समुद्र स्तर में 113 मिमी वृद्धि होगी।
- कुछ क्षेत्रों पर असमान प्रभाव: स्कैंडिनेविया, पश्चिमी कनाडा और अमेरिका के रॉकीज, और यूरोपीय आल्प्स विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
- तापमान वृद्धि की उच्च संवेदनशीलता: यदि वैश्विक तापमान 1.5°C से 3°C के बीच 0.1°C बढ़ता है, तो वैश्विक स्तर पर हिमनदों की 2% हानि होती है, जबकि क्षेत्रीय प्रभाव अधिक गंभीर होते हैं।
- हिंदूकुश हिमालय पर खतरा: अध्ययन अनुमान लगाता है कि 2°C तापमान वृद्धि के साथ हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र का केवल 25% हिम ही शेष रहेगा।
- यह क्षेत्र गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदी प्रणालियों को पोषित करता है, जो दक्षिण एशिया के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
हिंदूकुश हिमालय (HKH) – HKH पर्वत 8 देशों में फैले हैं—अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, नेपाल, म्यांमार, और पाकिस्तान। – इन्हें “एशिया के जल टावर” भी कहा जाता है, क्योंकि ये 10 महत्त्वपूर्ण नदी प्रणालियों के स्रोत हैं—अमू दरिया, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, सालवीन, मेकोंग, यांग्त्से, येलो नदी, और तारिम। – ये नदी घाटियाँ विश्व की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या को जल प्रदान करती हैं और HKH क्षेत्र में 240 मिलियन लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्वच्छ जल का स्रोत हैं। |
हिमनद हानि के प्रभाव
- दक्षिण एशिया में जल सुरक्षा: हिमालयी हिमनद भारत की प्रमुख नदियों के सतत् जल स्रोत हैं।
- इनका क्षय कृषि उत्पादन, पेयजल आपूर्ति, और जलविद्युत उत्पादन को प्रभावित करता है, विशेष रूप से सूखे मौसम के दौरान।
- समुद्र स्तर वृद्धि और तटीय जोखिम: हिमनद पिघलने से वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि होती है, जिससे मालदीव और भारतीय तटीय शहरों में जनसंख्या खतरे में पड़ सकती है।
- पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: हिमनद पिघलने से पहाड़ी जैव विविधता और अल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं, जिससे हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOFs) का खतरा बढ़ता है।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: जल स्रोतों की हानि के कारण जलवायु प्रेरित प्रवासन, संसाधनों पर संघर्ष, और पहले से ही कमजोर क्षेत्रों में गरीबी बढ़ सकती है।
हिमनद संरक्षण के लिए वैश्विक पहल
- पेरिस समझौता 2015: वैश्विक तापमान को 2°C से कम, अधिमानतः 1.5°C तक सीमित करने का लक्ष्य रखता है।
- हाई माउंटेन समिट (WMO): पहाड़ों और हिमनदों को “जलवायु प्रहरी” के रूप में मान्यता देता है और पूर्व चेतावनी प्रणाली व डेटा साझाकरण को बढ़ावा देता है।
- अंतरराष्ट्रीय क्रायोस्फीयर जलवायु पहल (ICCI): 2009 में COP-15 के परिणामस्वरूप स्थापित किया गया, यह नीति विशेषज्ञों और शोधकर्त्ताओं का नेटवर्क है, जो सरकारों और संगठनों के साथ मिलकर पृथ्वी के क्रायोस्फीयर को संरक्षित करने की पहल करता है।
- राष्ट्रीय हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र स्थायीकरण मिशन (NMSHE): यह सरकारी पहल हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों को संबोधित करने हेतु विकसित रणनीतियों पर केंद्रित है।
- आर्कटिक परिषद: यह आर्कटिक देशों के लिए एक मंच है, जो पर्यावरण संरक्षण, सतत् विकास, और जलवायु परिवर्तन शमन पर सहयोग करता है।
- वैश्विक हिम निगरानी पहल: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) का ग्लोबल क्रायोस्फीयर वॉच (GCW) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की CryoSat मिशन उपग्रह-आधारित दूरसंवेदी प्रणाली के माध्यम से हिमनदों और हिम की चादरों में हो रहे परिवर्तनों की निगरानी करती हैं।
निष्कर्ष
- ग्लोबल तापमान में वृद्धि के कारण हिमनदों का तेजी से संकुचन एक गंभीर चेतावनी है, जो संवेदनशील जलवायु नीतियों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। हालाँकि पेरिस समझौते और IPCC रिपोर्ट्स जैसी वैश्विक पहलें रणनीतिक रूपरेखा प्रदान करती हैं, इनकी सफलता समयबद्ध क्रियान्वयन और सभी देशों द्वारा महत्वाकांक्षा बढ़ाने पर निर्भर करती है।
Source: IE
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संक्षिप्त समाचार 30-05-2025