भारत-अमेरिका व्यापार समझौता जल्द ही अंतिम रूप लेगा

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सन्दर्भ 

  • हाल ही में अपने संबोधन में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के साथ एक ‘बहुत बड़े’ व्यापार समझौते की संभावना का संकेत दिया था, जिससे यह संकेत मिलता है कि दोनों देशों के बीच वार्ता गति पकड़ रही है।

भारत-अमेरिका व्यापार समझौते के बारे में

  • पूर्व की भागीदारी:
    • स्वतंत्रता के बाद: भारत की संरक्षणवादी नीतियाँ और अमेरिका के शीत युद्धकालीन गठबंधन गहन आर्थिक सहभागिता में बाधक रहे। 
    • 1991 सुधार: भारत की आर्थिक उदारीकरण नीतियाँ एक निर्णायक बिंदु सिद्ध हुईं, जिससे विदेशी निवेश और व्यापार के नए द्वार खुले।
    •  2005–2015: अमेरिका एक प्रमुख व्यापार भागीदार बनकर उभरा, और द्विपक्षीय व्यापार में निरंतर वृद्धि हुई।
    •  यूएस-इंडिया ट्रेड पॉलिसी फोरम (TPF) जैसे प्रयासों की शुरुआत की गई ताकि विवादों का समाधान हो सके और संबंध मजबूत हों।
  • वर्तमान परिदृश्य:
    • व्यापार मात्रा: द्विपक्षीय व्यापार $191 बिलियन तक पहुँच गया है, जिससे अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। 
    • शुल्क तनाव: अप्रैल 2025 में अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 10% का मूलभूत शुल्क और 26% का पारस्परिक शुल्क प्रस्तावित किया, व्यापार असंतुलन का उदाहरण देते हुए।
    •  वार्ताएँ जारी: दोनों पक्षों के बीच वार्ताएँ तीव्र हो गई हैं और वे 9 जुलाई 2025 से पहले एक अंतरिम व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। 
    • प्रमुख क्षेत्र हैं:
      • कृषि और औद्योगिक वस्तुओं के लिए बाजार तक पहुँच, जिसमें जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों की अनुमति शामिल है;
      • भारतीय वस्त्र, औषधियों और इलेक्ट्रॉनिक्स पर शुल्क रियायतें;
      • डिजिटल व्यापार और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को आसान बनाना।

भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में प्रमुख चिंताएँ:

  • शुल्क असमानताएँ: भारत G20 देशों में सबसे अधिक औसत लागू शुल्क (~17%) रखने वाले देशों में से एक है, जबकि अमेरिका का औसत लगभग 3.3% है। भारत इन शुल्कों से पूर्ण छूट चाहता है। 
  • बाजार पहुँच की मांग: अमेरिका कृषि, डेयरी और औद्योगिक क्षेत्रों में व्यापक पहुँच चाहता है। 
  • कृषि और डेयरी संवेदनशीलता: भारत अपने छोटे किसानों और घरेलू उत्पादकों की सुरक्षा के लिए कृषि और डेयरी क्षेत्रों को खोलने में सतर्क है।
    • ये क्षेत्र राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील हैं और व्यापार वार्ताओं में प्रमुख बाधा बनते हैं। 
  • इस्पात और एल्युमिनियम पर शुल्क: अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से भारतीय इस्पात और एल्युमिनियम निर्यात पर 26% तक के पारस्परिक शुल्क लगाए हैं।
    •  भारत ने इन उपायों का विरोध किया है और रियायतें माँगी हैं।
  •  नियामक और अवसंरचना बाधाएँ: अमेरिकी निर्यातकों को भारत में प्रायः पारदर्शिता की कमी, मूल्य संवेदनशीलता, और अवसंरचनागत अड़चनों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि परियोजना स्वीकृतियों में देरी, असंगत राज्य-स्तरीय नीतियाँ, एवं लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियाँ।
  • डिजिटल व्यापार और डेटा स्थानीयकरण: भारत के डेटा स्थानीयकरण के आग्रह और डिजिटल संप्रभुता के रुख से अमेरिकी टेक कंपनियों में चिंता व्याप्त है।
    •  डिजिटल व्यापार मानदंडों पर सहमति के लिए वार्ताएँ जारी हैं।

आगे की राह:

  • भारत और अमेरिका 2025 के अंत तक एक बहु-क्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) को अंतिम रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  •  लक्ष्य है कि द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक $500 बिलियन तक बढ़ाया जाए, जो कि 2024–25 में $191 बिलियन था। 
  • जैसे-जैसे दोनों देश व्यापक व्यापार समझौते की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, इसका परिणाम वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को नया आकार दे सकता है, आर्थिक स्थिरता को मज़बूती दे सकता है, और समावेशी वैश्वीकरण के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है।

Source: TH

 

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