पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था और शासन
संदर्भ
- पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति ए. एस. ओका ने न्यायिक प्रणाली को अधिक लोकतांत्रिक और संस्थागत बनाने पर बल दिया, ताकि यह मुख्य रूप से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) पर केंद्रित न रहे।
सुधार की आवश्यकता
- मास्टर ऑफ द रोस्टर सिद्धांत:शांति भूषण बनाम भारत का सर्वोच्च न्यायालय (2018) में पुनः पुष्टि की गई कि CJI अकेले ही निर्णय लेते हैं—
- कौन सा पीठ किस मामले की सुनवाई करेगा,
- किन न्यायाधीशों को पीठ में नियुक्त किया जाएगा,
- मामले को सुनवाई के लिए कब सूचीबद्ध किया जाएगा।
- संविधान पीठ पर नियंत्रण: संविधान पीठ में कम से कम पाँच न्यायाधीश होने चाहिए, लेकिन प्रायः CJI ही—
- तय करते हैं कि ऐसे पीठ कब गठित होंगे, और
- उनकी अध्यक्षता भी प्रायः CJI द्वारा ही की जाती है।
- न्यायिक प्रशासन पर नियंत्रण:राजस्थान राज्य बनाम प्रकाश चंद (1998) के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश न्यायिक मामलों में ‘समानों में प्रथम’ होते हैं, लेकिन प्रशासनिक कार्यों में उनका अद्वितीय और प्रमुख भूमिका होती है। इसमें शामिल हैं—
- अदालत के रजिस्ट्रार पर नियंत्रण,
- कार्य आवंटन का निर्धारण, और
- प्रशासनिक निर्णयों को औपचारिक परामर्श के बिना लागू करना।
- निचली न्यायपालिका को सशक्त बनाना
- न्यायमूर्ति ओका ने जिला न्यायपालिका को सशक्त बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसे भारत की न्याय प्रणाली की ‘रीढ़’ माना जाता है।
इस संरचना से उत्पन्न चुनौतियाँ
- पारदर्शिता की कमी: वादियों और यहाँ तक कि अन्य न्यायाधीशों को भी यह पता नहीं होता कि मामले कैसे आवंटित या विलंबित किए जाते हैं।
- न्याय में देरी: संवैधानिक या राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों में अत्यधिक देरी हुई है क्योंकि CJI को पीठ गठित करने का विवेकाधिकार प्राप्त है।
- सामूहिकता की कमजोरी: वर्तमान व्यवस्था न्यायिक समानता और सर्वोच्च न्यायालय में सामूहिक उत्तरदायित्व को कमजोर करती है।
पारदर्शिता बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम
- सार्वजनिक रोस्टर प्रणाली (2018): CJI द्वारा संवेदनशील मामलों के न्यायाधीशों को आवंटन की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लागू की गई।
- CJI का कार्यालय RTI के तहत (2019): सुभाष चंद्र अग्रवाल बनाम सर्वोच्च न्यायालय में संवैधानिक पीठ ने निर्णय लिया कि CJI का कार्यालय सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आता है—यह न्यायिक पारदर्शिता के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया की जानकारी: सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया से संबंधित विवरण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया।
आवश्यक सुधार
- समिति आधारित निर्णय: पीठ गठन, मामलों की सूचीबद्धता और प्रशासनिक मामलों के लिए आंतरिक समितियों की स्थापना से शक्ति का विकेंद्रीकरण होगा और व्यापक संस्थागत भागीदारी सुनिश्चित होगी।
- पारदर्शी सूचीबद्धता तंत्र: मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि न्यूनतम मानवीय विवेकाधिकार के साथ स्वचालित सूचीबद्ध प्रणाली विकसित हो।
- संविधान पीठ के गठन में सामूहिकता: वरिष्ठ न्यायाधीशों का एक पैनल संविधान पीठ की संरचना और उसकी सुनवाई के समय का सामूहिक निर्णय ले, बजाय इसके कि CJI अकेले ही यह निर्णय लें।
निष्कर्ष
- संविधानिक अधिकारों का सर्वोच्च संरक्षक होने के नाते, सर्वोच्च न्यायालय को न केवल स्वतंत्र रहना चाहिए, बल्कि इसे संस्थागत रूप से मजबूत, समावेशी और पारदर्शी भी बनना चाहिए। CJI-केंद्रित मॉडल से हटकर एक अधिक लोकतांत्रिक, समिति-आधारित संरचना की ओर बढ़ना न्यायिक विश्वसनीयता को मजबूत करेगा, न्यायाधीशों में समान जिम्मेदारी को बढ़ावा देगा, और सबके लिए न्याय के सिद्धांत को और मजबूती प्रदान करेगा।
Source: TH
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संक्षिप्त समाचार 26-05-2025