वित्त वर्ष 2025 में माइक्रोफाइनेंस ऋण चूक में 163% की वृद्धि

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र ने वित्तीय वर्ष 2025 में ऋण डिफॉल्ट में 163% की वृद्धि दर्ज की है, जो ₹43,075 करोड़ तक पहुँच गया है।

माइक्रोफाइनेंस क्या है?

  • माइक्रोफाइनेंस उन निम्न-आय वर्ग के व्यक्तियों या समूहों को प्रदान की जाने वाली वित्तीय सेवाएँ हैं, जिन्हें पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली से सामान्यतः बाहर रखा जाता है। 
  • इसमें माइक्रो-लोन, बचत योजनाएँ, बीमा और प्रेषण सेवाएँ शामिल हैं, जिन्हें मुख्यतः NBFC-MFIs, स्मॉल फाइनेंस बैंक (SFBs) और बैंक प्रदान करते हैं। 
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, माइक्रोफाइनेंस ऋण वह गिरवी रहित ऋण होता है, जो ₹3,00,000 तक की वार्षिक आय वाले परिवारों को दिया जाता है।

माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में प्रमुख प्रवृति

  • कुल ऋण पोर्टफोलियो में वर्ष-दर-वर्ष 13.9% की गिरावट दर्ज की गई, जो मार्च 2024 में ₹4.42 लाख करोड़ से घटकर मार्च 2025 में ₹3.81 लाख करोड़ रह गया।
  • कम टिकट से अधिक टिकट ऋण में बदलाव देखा गया।
    • ₹1 लाख से अधिक के ऋण 38.5% की वृद्धि दर्ज की गई।
    • ₹30,000 से कम के ऋण 35.9% की गिरावट आई।
  • सक्रिय माइक्रोफाइनेंस ऋणों की संख्या 16.1 करोड़ से घटकर 14 करोड़ हो गई।
  • पाँच या अधिक उधारदाताओं से जुड़े उधारकर्ताओं की संख्या 9.7% से घटकर 4.9% रह गई।

बढ़ती डिफॉल्ट दर के कारण

  • अत्यधिक ऋण भार: ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के उधारकर्ता प्रायः 5 या अधिक संस्थानों से ऋण लेते हैं, जिससे अस्थिर ऋण भार उत्पन्न होता है।
  • कमज़ोर क्रेडिट मूल्यांकन: कई NBFC-MFIs और बैंक, ऋण लक्ष्य पूरे करने के दबाव में क्रेडिट मानदंडों में ढील देकर, अपर्याप्त पृष्ठभूमि जाँच के बिना ऋण देते हैं।
  • आय अस्थिरता:
    • महामारी के प्रभाव, महँगाई, ग्रामीण संकट, और स्थिर रोजगार की कमी के चलते उधारकर्ताओं की पुनर्भुगतान क्षमता प्रभावित हुई है।
  • संग्रह प्रक्रियाओं की अक्षमता:
    • कोविड के बाद फील्ड-लेवल एंगेजमेंट में कमी, डिजिटल माइग्रेशन, और कुछ क्षेत्रों में कमज़ोर संग्रह बुनियादी ढाँचा से ऋण वसूली प्रभावित हुई।
  • ऋण उपयोग की समस्या:
    • माइक्रोफाइनेंस ऋणों का बड़ा हिस्सा आय-सृजन गतिविधियों के बजाय उपभोग या सामाजिक अनिवार्यताओं (जैसे शादी, त्योहार, स्वास्थ्य आपात स्थिति) में उपयोग किया जाता है।

माइक्रोफाइनेंस से संबंधित सरकारी पहल

  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY):
    • 2015 में लॉन्च, यह योजना छोटे व्यवसायों को ₹10 लाख तक माइक्रो क्रेडिट बिना गिरवी के उपलब्ध कराती है।
    • MFIs और अन्य सदस्य संस्थानों की सहायता से दिए गए ये ऋण MUDRA Ltd द्वारा रीफाइनेंस किए जाते हैं।
  • उद्यम असिस्ट प्लेटफॉर्म (UAP):
    • यह अनौपचारिक सूक्ष्म-उद्यमियों (जिनमें से कई MFI ग्राहक होते हैं) को MSME के रूप में पंजीकरण करने में मदद करता है, जिससे उन्हें प्राथमिकता क्षेत्र ऋण, सब्सिडी, और क्रेडिट गारंटी जैसी सुविधाएँ मिलती हैं।
  • क्रेडिट जानकारी साझा करने का निर्देश:
    • RBI ने सभी माइक्रोफाइनेंस उधारदाताओं को निर्देश दिया है कि वे CRIF High Mark और CIBIL जैसे क्रेडिट ब्यूरो को रिपोर्ट करें, ताकि उधारकर्ताओं का क्रेडिट इतिहास मूल्यांकन के लिए उपलब्ध हो।
  • RBI का संशोधित नियामक ढाँचा (2022):
    • यह सभी विनियमित इकाइयों (बैंक, NBFC, NBFC-MFIs, SFBs) के लिए एक समान नियामक ढाँचा सुनिश्चित करता है, जिससे उधारकर्ता संरक्षण और जिम्मेदार ऋण देने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है।

आगे की राह

  • क्रेडिट मूल्यांकन उपकरण:
    • उधारकर्ता मूल्यांकन को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि अत्यधिक ऋण भार को रोका जा सके।
  • क्रेडिट ब्यूरो की भूमिका:
    • CRIF High Mark जैसी एजेंसियों के डेटा से तनाव के प्रारंभिक संकेतों की पहचान करने में सहायता मिलेगी।
  • नियामक निगरानी:
    • RBI और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि संग्रह प्रक्रियाएँ निष्पक्ष हों और ऋण देने के मानदंड जिम्मेदारीपूर्वक पालन किए जाएँ।
  • वित्तीय साक्षरता और समावेशन:
    • उधारकर्ताओं को उनके क्रेडिट दायित्वों और अधिकारों के बारे में जागरूक करना महत्त्वपूर्ण है।

Source: IE

 

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