भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था पाँच गुना बढ़ेगी

पाठ्यक्रम: GS3/अन्तरिक्ष

संदर्भ

  • केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री के अनुसार, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था आगामी दशक में पाँच गुना बढ़कर 44 अरब डॉलर हो जाएगी, जिसमें निजी निवेश पहले ही 1,000 करोड़ रुपये को पार कर चुका है।

अंतरिक्ष उद्योग में भारत की हिस्सेदारी

  • भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 8 बिलियन डॉलर है, जो वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2-3% का योगदान देती है और इसके 2030 तक 8% और वर्ष 2047 तक 15% तक बढ़ने की सम्भवना है। 
  • 400 से अधिक निजी अंतरिक्ष कंपनियों के साथ, भारत अंतरिक्ष कंपनियों की संख्या में वैश्विक स्तर पर पाँचवें स्थान पर है।

अंतरिक्ष उद्योग में निजी अभिकर्त्ता

  • भारत में अंतरिक्ष स्टार्टअप की संख्या 2022 में केवल एक से बढ़कर 2024 में लगभग 200 हो गई, अर्थात् लगभग दो वर्ष में।
  •  इन स्टार्टअप्स को मिलने वाला कुल फंड 2021 में 67.2 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2023 में 124.7 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया। 
  • स्काईरूट ने उपग्रह प्रक्षेपण में क्रांति लाने की योजना के साथ भारत के प्रथम निजी तौर पर निर्मित रॉकेट विक्रम-एस को अंतरिक्ष में लॉन्च किया है।

भारत में अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र का विनियमन

  • राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe): यह सरकारी और निजी दोनों संस्थाओं की अंतरिक्ष गतिविधियों के संवर्धन, प्रोत्साहन एवं विनियमन के लिए अंतरिक्ष विभाग में एक स्वायत्त और एकल खिड़की नोडल एजेंसी है। 
  • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): इसे इसरो द्वारा विकसित परिपक्व प्रौद्योगिकियों को भारतीय उद्योगों को हस्तांतरित करने का अधिकार है।
    • ये सभी रक्षा मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में हैं।

अंतरिक्ष क्षेत्र के निजीकरण का महत्व

  • लागत में कमी: लाभ की मंशा निजी कंपनियों को अंतरिक्ष मिशन और उपग्रह प्रक्षेपण में लागत कम करने के लिए प्रेरित करती है।
  • प्रतिस्पर्धा और नवाचार: निजीकरण प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है, दक्षता बढ़ाता है और नवाचार को बढ़ावा देता है।
  • व्यावसायीकरण: निजी अभिकर्त्ता कृषि, आपदा प्रबंधन, शहरी नियोजन, नेविगेशन और संचार जैसे क्षेत्रों में अंतरिक्ष अनुप्रयोगों को सक्षम करते हैं।
  • स्वायत्तता: अधिक निर्णय लेने की स्वायत्तता निजी कंपनियों को नई परियोजनाओं को अधिक तेज़ी से लेने की अनुमति देती है।
  • रोज़गार और आत्मनिर्भरता: निजीकरण रोज़गार सृजित करता है, आधुनिक तकनीक को अपनाने का समर्थन करता है, और अंतरिक्ष क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता करता है।

चुनौतियाँ

  • उच्च निवेश लागत: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे संभावित रूप से धनी निगमों द्वारा एकाधिकार हो सकता है।
  • विशेषज्ञता: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का निर्माण एवं संचालन विशेष तकनीकी कौशल और संसाधनों की माँग करता है।
  • बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) की सुरक्षा: नवाचार और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा आवश्यक है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा: भारतीय निजी अंतरिक्ष कंपनियों को वैश्विक स्तर पर स्पेसएक्स और ब्लू ओरिजिन जैसी स्थापित कंपनियों से कठोर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • अंतरिक्ष क्षेत्र सुधार (2020): सरकार ने निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति दी, IN-SPACe, ISRO और NSIL की भूमिकाएँ परिभाषित कीं।
  • स्पेस विज़न 2047: 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) और 2040 तक भारतीय चंद्रमा पर उतरने का लक्ष्य।
    • 2028 तक गगनयान अनुवर्ती मिशन और BAS प्रथम मॉड्यूल।
    • 2032 तक अगली पीढ़ी का सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (NGLV)।
    • 2027 तक चंद्रयान-4, चंद्रमा के नमूने एकत्र करने और वापसी तकनीक का प्रदर्शन करने के लिए।
    • 2028 तक शुक्र ऑर्बिटर मिशन (VOM), शुक्र का अध्ययन करने के लिए।
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023: अंतरिक्ष गतिविधियों में गैर-सरकारी संस्थाओं (NGE) के लिए समान अवसर सुनिश्चित करती है।
  • वेंचर कैपिटल फंड: आगामी 5 वर्षों में IN-SPACe के तहत अंतरिक्ष स्टार्टअप के लिए 1000 करोड़ रुपये का फंड।
  • स्पेसटेक इनोवेशन नेटवर्क (स्पिन): स्पिन अंतरिक्ष उद्योग में स्टार्ट-अप और SMEs के लिए अपनी तरह का एक अद्वितीय सार्वजनिक-निजी सहयोग है। संशोधित FDI नीति के अंतर्गत, अंतरिक्ष क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति है।

आगे की राह

  • निजी संस्थाएँ अब रॉकेट और उपग्रहों के अनुसंधान, विनिर्माण और निर्माण के महत्त्वपूर्ण पहलुओं में सक्रिय रूप से शामिल हैं, जिससे नवाचार का एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र विकसित हो रहा है। 
  • इससे भारतीय कंपनियों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करने की संभावना है। इससे कंपनियाँ देश के अन्दर अपनी विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित कर सकेंगी, जिससे सरकार की ‘मेक इन इंडिया (MII)’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल को बढ़ावा मिलेगा।

Source: ET