भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बेलगावी अधिवेशन के 100 वर्ष

पाठ्यक्रम: GS1/आधुनिक भारत का इतिहास

संदर्भ

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने 100वीं वर्षगांठ मनाने के लिए बेलगावी में विभिन्न कार्यक्रमों की योजना बनाई है। 
  • इनमें कांग्रेस कार्य समिति (CWC) का दो दिवसीय विस्तारित सत्र और ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान’ थीम पर एक सार्वजनिक रैली सम्मिलित है।

कांग्रेस के बेलगावी अधिवेशन के बारे में (26-27 दिसंबर, 1924)

  • यह कर्नाटक के बेलगावी (तब बेलगाम) में आयोजित कांग्रेस का 39वाँ अधिवेशन था। 
  • यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए तीव्र राजनीतिक गतिविधि और बढ़ती गति का काल था। 
  • इसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी, यह एकमात्र बार था जब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 
  • 1924 के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने वाले इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, सरोजिनी नायडू और खिलाफत आंदोलन के नेता मुहम्मद अली जौहर एवं शौकत अली सहित कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने भाग लिया था। 
  • यह उत्पीड़न के सामने एकता, अहिंसा और सामूहिक कार्रवाई की शक्ति का प्रमाण था।

प्रमुख निर्णय और परिणाम

  • असहयोग और सविनय अवज्ञा: महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रभावी हथियार के रूप में असहयोग और सविनय अवज्ञा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
    • ये सिद्धांत नमक मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन सहित पश्चात् के आंदोलनों की आधारशिला बन गए। 
  • खादी को बढ़ावा: सत्र ने आत्मनिर्भरता और ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के विरुद्ध प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में खादी (हाथ से काता हुआ कपड़ा) को बढ़ावा देने के महत्त्व पर बल दिया।
    •  इस पहल का उद्देश्य स्वदेशी उद्योगों को पुनर्जीवित करना और ब्रिटिश वस्तुओं पर निर्भरता कम करना था। 
  • सांप्रदायिक सद्भाव: गांधी ने भारत में विभिन्न धार्मिक और जातीय समूहों के मध्य सांप्रदायिक सद्भाव एवं एकता की आवश्यकता पर बल दिया।
    • औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा नियोजित विभाजनकारी रणनीति का सामना करने में यह महत्त्वपूर्ण था।

कांग्रेस के बेलगावी अधिवेशन का महत्त्व

  • गांधी का नेतृत्व: महात्मा गांधी के राष्ट्रपतित्व ने अहिंसा, सांप्रदायिक सद्भाव और स्वराज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। गांधी के विचारों और रणनीतियों ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध भविष्य के आंदोलनों के लिए आधार तैयार किया। 
  • स्वतंत्रता आंदोलन पर प्रभाव: सत्र ने किसान चेतना को प्रोत्साहन दिया, खादी का प्रसार किया और विशेष रूप से कर्नाटक में ग्राम उद्योगों को प्रोत्साहित किया।
    • इसने कांग्रेस के नेतृत्व वाली पहलों में किसानों की भागीदारी को भी बढ़ाया। 
  • एकता और समावेशिता: सत्र में भारत के विभिन्न हिस्सों से प्रमुख नेता सम्मिलित हुए, जिनमें जवाहरलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, सी. राजगोपालाचारी, सरोजिनी नायडू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और कई अन्य सम्मिलित थे। यह स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भारतीय नेताओं की एकता और सामूहिक संकल्प का प्रतीक था। 
  • सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव: प्रसिद्ध गायिका वीने शेषना ने ‘उदयवगली नम्मा चालुवा कन्नड़ नाडु’ गीत प्रस्तुत किया जो कर्नाटक के एकीकरण आंदोलन का गान बन गया।
    • इस कार्यक्रम ने स्वतंत्रता संग्राम में सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों की भूमिका पर प्रकाश डाला।

Source :IE