पाठ्यक्रम: GS3/अवसंरचना
संदर्भ
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अन्तर्राज्यीय केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना की आधारशिला रखी।
केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना
- 2021 में, केन-बेतवा लिंक परियोजना को लागू करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय और मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश सरकारों के मध्य एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
- परियोजना:
- केन नदी से जल को बेतवा नदी में स्थानांतरित करना, जो यमुना की दोनों सहायक नदियाँ हैं।
- केन-बेतवा लिंक नहर की लंबाई 221 किलोमीटर होगी, जिसमें 2 किलोमीटर की सुरंग भी सम्मिलित है।
- इसके दो चरण हैं:
- चरण-I में दौधन बाँध परिसर और इसकी सहायक इकाइयों का निर्माण सम्मिलित होगा।
- चरण-II में तीन घटक सम्मिलित होंगे – लोअर ओर बाँध, बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना और कोठा बैराज।
- यह नदियों को जोड़ने के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के अंतर्गत परियोजना है।
लाभान्वित होने वाले क्षेत्र:
- यह परियोजना बुंदेलखंड में स्थित है, जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों में विस्तृत है।
- यह परियोजना जल की कमी का सामना कर रहे इस क्षेत्र के लिए बहुत लाभकारी होगी।
- पूर्णता: इसे आठ वर्षों में क्रियान्वित करने का प्रस्ताव है।
नदियों को जोड़ने के राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (ILR) कार्यक्रम – जल संसाधन मंत्रालय (तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्रालय) और केंद्रीय जल आयोग ने 1980 में जल संसाधन विकास के लिए एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) तैयार की। – इसके अंतर्गत नदियों को जोड़ने का कार्य राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) को सौंपा गया है। – NPP के दो घटक हैं: 1. हिमालयी नदियों का विकास; और 2. प्रायद्वीपीय नदियों का विकास। – NPP के अंतर्गत 30 लिंक परियोजनाओं की पहचान की गई है। हिमालयी घटक के अंतर्गत 14 लिंक और प्रायद्वीपीय घटक के अंतर्गत 16 लिंक हैं। – हिमालयी नदियों का विकास: भारत, नेपाल एवं भूटान में गंगा और ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों पर भंडारण जलाशयों का निर्माण। 1. गंगा की पूर्वी सहायक नदियों के अधिशेष प्रवाह को पश्चिम की ओर स्थानांतरित करने के लिए नहर प्रणालियों को आपस में जोड़ना। – प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है: 1. महानदी-गोदावरी-कृष्णा-कावेरी नदियों को आपस में जोड़ना तथा इन घाटियों में संभावित स्थलों पर भंडारण सुविधाओं का निर्माण करना। 2. मुंबई के उत्तर तथा तापी के दक्षिण में पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों को आपस में जोड़ना। 3. केन-चंबल नदियों को आपस में जोड़ना। |
नदी जोड़ो परियोजनाओं का महत्त्व
- जल अभाव में कमी: यह जल-समृद्ध क्षेत्रों से अधिशेष जल को जल-कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करने में सहायता करता है, जिससे जल की कमी की समस्या का समाधान होता है।
- कृषि के लिए बेहतर जल उपलब्धता: कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए शुष्क क्षेत्रों में जल उपलब्धता में वृद्धि।
- बाढ़ का शमन: नदियों को आपस में जोड़ने से भारी वर्षा के दौरान अतिरिक्त जल वितरित करने में सहायता मिलती है, जिससे विशिष्ट क्षेत्रों में बाढ़ का जोखिम कम होता है।
- जलविद्युत क्षमता में वृद्धि: नदियों को आपस में जोड़ने वाली परियोजनाओं के लिए जलाशयों और नहरों के निर्माण से जलविद्युत उत्पादन के अवसर सृजित होते हैं।
- रोजगार का सृजन: आपस में जोड़ने वाले बुनियादी ढाँचे के निर्माण और रखरखाव से रोजगार के अवसर सृजित होते हैं, जो आर्थिक विकास में योगदान करते हैं।
- संघर्ष समाधान: नदियों को आपस में जोड़ने वाली परियोजनाएँ जल के अधिक न्यायसंगत वितरण को प्रदान करके जल संसाधनों पर अंतर-राज्यीय विवादों को संभावित रूप से कम करती हैं।
नदी जोड़ो परियोजनाओं से संबंधित चिंताएँ
- पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: प्राकृतिक नदी मार्गों को बदलने और जल को मोड़ने से पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान आ सकता है, जिससे आवास की हानि, जैव विविधता में परिवर्तन एवं प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना हो सकती है।
- समुदायों का विस्थापन: नदियों को आपस में जोड़ने के लिए बाँधों, जलाशयों और नहरों के निर्माण के परिणामस्वरूप समुदायों का विस्थापन होता है, जिससे प्रभावित जनसंख्या के लिए सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं।
- अंतर-राज्यीय विवाद: नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं में प्रायः कई राज्य सम्मिलित होते हैं, और जल के बँटवारे को लेकर असहमति उत्पन्न होती है, जिससे अंतर-राज्यीय विवाद होते हैं।
- वित्तीय व्यवहार्यता: नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिसकी लागत प्रायः शुरुआती अनुमान से अधिक होती है।
- भूकंपीय जोखिम: बड़े बाँधों और अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण के कारण भूकंप की आशंका वाले क्षेत्रों में जोखिम बढ़ जाता है।
- रखरखाव के मुद्दे: रखरखाव की उपेक्षा करने से सिस्टम में विफलता और प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं।
- समुदाय का विरोध: स्थानीय समुदाय और पर्यावरण कार्यकर्ता प्रायः पर्यावरण, आजीविका एवं सांस्कृतिक विरासत पर उनके प्रभाव के बारे में चिंताओं के कारण नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं का विरोध करते हैं।
निष्कर्ष
- चिंताओं को संबोधित करने के लिए व्यापक योजना, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, सामुदायिक सहभागिता और पारदर्शी निर्णय लेने की प्रक्रिया की आवश्यकता है।
- नदी जोड़ परियोजनाओं के संभावित नकारात्मक परिणामों को कम करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकियों और अनुकूली रणनीतियों को शामिल करते हुए सतत जल प्रबंधन प्रथाएँ आवश्यक हैं।
Source: IE
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