अमेरिका और चीन ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समझौते को नवीनीकृत किया

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • चीन और अमेरिका ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सहयोग पर अपने समझौते को पाँच वर्ष के लिए बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।

परिचय

  • इस समझौते पर पहली बार 1979 में हस्ताक्षर किए गए थे।
    • तत्पश्चात, प्रत्येक पाँच वर्ष में इस समझौते का नवीनीकरण किया जाता रहा है। .
  • अमेरिका एवं चीन दोनों ही सह-अध्यक्ष नियुक्त करते हैं और प्रत्येक देश की एक एजेंसी को ‘कार्यकारी अभिकर्त्ता’ के रूप में नामित किया जाता है। 
  • एजेंसियों के मध्य अतिरिक्त प्रोटोकॉल भी हैं और कृषि से लेकर परमाणु संलयन तक विभिन्न क्षेत्रों में 40 उप-समझौते हैं। 
  • नवीनीकृत समझौते में शोधकर्ता सुरक्षा एवं दिवसटा पारस्परिकता बढ़ाने के प्रावधान शामिल हैं, तथा सहयोग को बुनियादी शोध और अंतर-सरकारी स्तरों तक सीमित रखा गया है।

द्विपक्षीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समझौतों का महत्त्व

  • वे सहयोग के ऐसे रूपों का मार्ग प्रशस्त करते हैं जो राज्य संस्थाओं तक सीमित नहीं हैं।
  • वे संयुक्त अनुसंधान, छात्रों एवं वैज्ञानिकों के लिए देशों के मध्य आवागमन की सुविधा भी प्रदान करते हैं, संस्थागत सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं और द्विपक्षीय अनुसंधान केंद्र स्थापित करते हैं।
    • भारत ने 83 देशों के साथ ऐसे समझौते किए हैं।

चीन और अमेरिका के मध्य नवीनीकृत समझौते का क्या अर्थ है?

  • इस वर्ष समझौते के नवीनीकरण से पहले, अमेरिका के सामने तीन विकल्प थे:
    • इसे हमेशा की तरह पाँच वर्ष के लिए नवीनीकृत करना,
    • इसे रद्द करना या
    • इसके दायरे को सीमित करने और अतिरिक्त शर्तें जोड़ने के लिए नए उपायों के साथ इसे नवीनीकृत करना।
    • अमेरिका ने तीसरा विकल्प चुना, जबकि अमेरिका के लिए समझौते की निरंतर उपयोगिता के बारे में गहरी चिंताएँ हैं।
  • बुनियादी अनुसंधान: यह अंतर-सरकारी स्तर, बुनियादी अनुसंधान और पारस्परिक लाभ के पहले से पहचाने गए विषयों तक ही सीमित रहेगा। 
  • बहिष्करण: समझौते में महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास से संबंधित कार्य को स्पष्ट रूप से बाहर रखा गया है और इसमें कार्यान्वयन एजेंसियों के लिए अपने शोधकर्ताओं की सुरक्षा तथा संरक्षा की रक्षा के लिए नई सुरक्षा व्यवस्थाएँ शामिल हैं।
    •  चीन कथित तौर पर अमेरिका की कीमत पर अनुपातहीन लाभ नहीं उठाएगा।

अमेरिका-चीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समझौते के नवीनीकरण के निहितार्थ तथा अमेरिका और चीन संबंधों में भारत की हिस्सेदारी:

  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि: भारत को चीन के साथ बढ़ती R&D प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जो प्रौद्योगिकी एवं नवाचार में तीव्रता से अग्रणी रहा है, जिससे AI, 5G और क्वांटम कंप्यूटिंग में चुनौतियाँ सामने आ रही हैं।
  • रणनीतिक सहयोग: अंतरिक्ष अनुसंधान, IT और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में भारत का भविष्य का विकास विकसित देशों के साथ तकनीकी एवं अनुसंधान साझेदारी को प्रगाढ़ करने पर निर्भर करेगा।
  • मजबूत द्विपक्षीय समझौते: भारत को प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका, जापान और यूरोपीय देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अन्य देशों के साथ अपने द्विपक्षीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समझौतों को बढ़ाना चाहिए।
  • भू-राजनीतिक अवसर: चीन और USA के मध्य तनाव भारत को अपनी रणनीतिक स्थिति को सुदृढ़ करने के अवसर प्रदान कर सकता है, विशेष रूप से क्वाड जैसे गठबंधनों के माध्यम से, क्योंकि भारत इंडो-पैसिफिक में चीन के प्रभाव का सामान करने के लिए USA और उसके सहयोगियों के साथ जुड़ता है।
  • व्यापार और आर्थिक जोखिम: चूंकि चीन और USA  दोनों प्रमुख व्यापारिक साझेदार हैं, इसलिए उनके मध्य  खराब होते संबंध वैश्विक व्यापार को बाधित कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
    • दोनों देशों के साथ भारत का व्यापार टैरिफ, प्रतिबंधों या आपूर्ति शृंखला व्यवधानों से प्रभावित हो सकता है।
  • सुरक्षा चिंताएँ: बढ़ते अमेरिका-चीन तनाव से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य गतिविधियाँ और प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, जिससे भारत के लिए सुरक्षा चिंताएँ बढ़ सकती हैं, विशेष रूप से चीन के साथ इसकी सीमा पर।

निष्कर्ष और आगे की राह

  • इस समझौते ने चीन को 1979 में एक जूनियर पार्टनर से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक मजबूत वैश्विक प्रतियोगी के रूप में उभारने में सहायता की।
  • यद्यपि ट्रम्प प्रशासन इस समझौते की अधिक सूक्ष्मता से जाँच कर सकता है, लेकिन वह चीन के साथ सहयोग बनाए रखने के महत्त्व को पहचानता है।
  • अमेरिका-चीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी समझौते का नवीनीकरण भारत के लिए अपनी अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुदृढ़ करने की आवश्यकता को उजागर करता है, ताकि प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित हो सके और वैश्विक तकनीकी परिदृश्य में अपनी स्थिति बनाए रखी जा सके।
  • भारत को व्यापार और निवेश के अवसरों का लाभ उठाते हुए इन दो दिग्गजों के बीच तनाव को कम करने की आवश्यकता है।
  • भारत का लक्ष्य अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना है, अमेरिका या चीन के साथ जबरदस्ती गठबंधन से बचना है, जबकि अमेरिका के साथ सुरक्षा साझेदारी एवं चीन के साथ आर्थिक संबंधों को संतुलित करना है।
  • भारत को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसके योगदान को मान्यता मिले और वह तकनीकी प्रगति के साथ सामंजस्य बनाए रखे।

Source: TH