पाठ्यक्रम: GS2/ अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संदर्भ
- बांग्लादेश, चीन और पाकिस्तान ने कुनमिंग में आयोजित 9वें चीन-दक्षिण एशिया एक्सपो और 6वीं चीन-दक्षिण एशिया सहयोग बैठक के मौके पर एक अनौपचारिक त्रिपक्षीय बैठक की।
बैठक के बारे में
- तीनों देशों ने आपसी विश्वास, समझ और क्षेत्र में शांति, समृद्धि एवं स्थिरता की साझा दृष्टि के आधार पर विचारों का आदान-प्रदान किया।
- उन्होंने सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की, जिनमें बुनियादी ढांचा, संपर्क, व्यापार, निवेश, स्वास्थ्य सेवा, कृषि, समुद्री मामलों, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT), आपदा तैयारी और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं।
एक-दूसरे के के पास आने के कारण
- चीन के रणनीतिक हित:
- बीआरआई विस्तार: चीन दक्षिण एशिया में अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के प्रभाव को गहरा कर रहा है, जिससे वह क्षेत्रीय देशों को बुनियादी ढांचे और व्यापार परियोजनाओं के माध्यम से जोड़ रहा है।
- इंडो-पैसिफिक रणनीति का मुकाबला: यह त्रिपक्षीय गठबंधन क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) और इंडो-पैसिफिक सुरक्षा ढांचे को संतुलित करने का प्रयास माना जा सकता है।
- पाकिस्तान के उद्देश्य:
- क्षेत्रीय अलगाव: पाकिस्तान क्षेत्रीय कूटनीतिक अलगाव का सामना कर रहा है और चीन को एक भरोसेमंद सहयोगी के रूप में देखता है।
- दक्षिण एशिया में प्रभाव: बांग्लादेश को शामिल कर पाकिस्तान एक अन्य प्रमुख दक्षिण एशियाई देश के साथ जुड़ाव बनाकर भारत के प्रभाव को कम करना चाहता है।
- बांग्लादेश की संतुलित रणनीति:
- भारत और चीन के बीच संतुलन: भारत के साथ पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंधों के बावजूद, बांग्लादेश चीनी निवेश और बुनियादी ढांचा सहायता प्राप्त कर अपनी साझेदारियों में विविधता लाना चाहता है।
- आर्थिक हित: चीन बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और ऊर्जा व बुनियादी ढांचे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रमुख स्रोत भी है।
- त्रिपक्षीय सहयोग के भू-राजनीतिक प्रभाव
- ‘महाद्वीपीय ब्लॉक’ बनाने का प्रयास: यह त्रिपक्षीय सहयोग धीरे-धीरे दक्षिण एशिया में एक रणनीतिक ब्लॉक का रूप ले सकता है, जिसमें चीन का गहरा प्रभाव होगा — जो भारत-प्रमुख पहलों जैसे BIMSTEC और BBIN के समानांतर चलेगा।
- चीन की समुद्री महत्वाकांक्षाएं: यदि यह सहयोग बंगाल की खाड़ी में समुद्री मामलों तक विस्तारित होता है, तो यह भारत के समुद्री क्षेत्र में चीन की महत्वपूर्ण उपस्थिति को दर्शाएगा।
- SAARC की प्रासंगिकता में कमी: भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण SAARC अप्रभावी हो गया है, और चीन अब एक चीन-केंद्रित वैकल्पिक क्षेत्रीय प्रारूप तैयार करने का प्रयास कर रहा है।
- रणनीतिक बुनियादी ढांचे की संभावना: चटगांव (बांग्लादेश) और ग्वादर (पाकिस्तान) में चीन के बंदरगाह निवेश अंततः दोहरे उपयोग की सुविधाओं का समर्थन कर सकते हैं, जिससे भारत की घेराबंदी और सैन्यीकरण की आशंका बढ़ती है।
आगे की राह
- क्षेत्रीय बहुपक्षीयता: भारत को BIMSTEC, BBIN एवं IORA जैसे उप-क्षेत्रीय समूहों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिए ताकि क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाया जा सके और चीन-केंद्रित ढांचों का मुकाबला किया जा सके।
- पड़ोसी नीति का पुनःसंयोजन: एक दीर्घकालिक रणनीतिक खाका जिसमें पूर्वानुमेय आर्थिक सहायता, छोटे देशों की संप्रभुता का सम्मान और सहयोगात्मक सुरक्षा तंत्र शामिल हों, चीन की लेन-देन आधारित कूटनीति का प्रभावी जवाब हो सकता है।
- भारत को अपनी समुद्री क्षेत्र जागरूकता और नौसैनिक कूटनीति को सुदृढ़ करना चाहिए। QUAD नौसैनिक अभ्यासों को सशक्त बनाना, सागरमाला एवं प्रोजेक्ट मौसमी का विस्तार करना, और हिंद महासागर के तटीय देशों (जैसे सेशेल्स, मॉरीशस, इंडोनेशिया) के साथ संबंध गहरा करना आवश्यक है।
निष्कर्ष
- चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच अनौपचारिक गठबंधन दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक संरचना को अपने पक्ष में नया आकार देने की चीन की विकसित होती रणनीति को दर्शाता है।
- भारत को एक संतुलित रणनीति के साथ जवाब देना चाहिए, जिसमें सैद्धांतिक कूटनीति, विकास-आधारित साझेदारी और मजबूत सुरक्षा उपाय शामिल हों, ताकि वह अपनी नेतृत्व भूमिका बनाए रख सके तथा क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा दे सके।
Source: AIR