पाठ्यक्रम: GS2/सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप
संदर्भ
- 21 फरवरी को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हमें भाषाई विविधता को बनाए रखने और लुप्त होती भाषाओं की रक्षा करने की आवश्यकता की याद दिलाता है।
पृष्ठभूमि
- अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार 1952 के बंगाली भाषा आंदोलन के स्मरण में बांग्लादेश की पहल थी।
- इसे 1999 के यूनेस्को महासम्मेलन में अनुमोदित किया गया था और 2000 से इसे पूरे विश्व में मनाया जाता है।
भारत की भाषाओं की विविधता
- भारत विश्व के सबसे अधिक भाषाई रूप से विविध देशों में से एक है और इसे भाषा हॉटस्पॉट माना जाता है।
- 2018 की जनगणना के अनुसार, भारत में 19,500 से अधिक भाषाएँ और बोलियाँ हैं, जिनमें से 121 भाषाएँ 10,000 या उससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं।
भाषाई क्षति और उसका प्रभाव
- 1961 की भारतीय जनगणना में 1,652 मातृभाषाएँ दर्ज की गईं, लेकिन 1971 तक यह संख्या घटकर 109 रह गई, क्योंकि कई भाषाओं को व्यापक भाषाई श्रेणियों में रखा गया था।
- 42 भारतीय भाषाएँ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, जो दुनिया के किसी भी अन्य देश (यूनेस्को) की तुलना में अधिक संख्या है।
- भारत में 197 भाषाएँ वर्तमान में संकटग्रस्त हैं।
- पिछले 60 वर्षों में लगभग 250 भाषाएँ विलुप्त हो चुकी हैं।
- विशेष रूप से पूर्वोत्तर एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में दूरदराज और स्वदेशी समुदायों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ सबसे अधिक संकटग्रस्त हैं।
- उदाहरण: ग्रेट अंडमानी भाषा और राय-रोकडुंग भाषा (सिक्किम) गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं।
भाषा लुप्त होने के कारण
- आधुनिकीकरण: युवा पीढ़ी बेहतर शिक्षा, नौकरी के अवसरों और सामाजिक एकीकरण के लिए हिंदी और अंग्रेजी जैसी प्रमुख भाषाओं को प्राथमिकता देती है।
- बोलने वालों की कमी: कम बोलने वालों के कारण पीढ़ियों के बीच संचार में कठिनाई होती है।
- प्रमुख भाषाओं का प्रभुत्व: बड़ी भाषाएँ क्षेत्रीय और स्वदेशी भाषाओं पर प्रभुत्वशाली हो जाती हैं, जिससे दैनिक जीवन में उनका व्यावहारिक उपयोग कम हो जाता है।
- मानकीकरण और लिपि: कई लुप्तप्राय भाषाओं में लिखित लिपि का अभाव है, जिससे उनका दस्तावेज़ीकरण और संरक्षण मुश्किल हो जाता है।
संरक्षण के प्रयास
- भारतीय जन भाषा सर्वेक्षण (PLSI) समुदायों की भाषाई प्रोफाइल का दस्तावेजीकरण करता है।
- सिक्किम विश्वविद्यालय के सिधेला अभिलेखागार का उद्देश्य पूर्वोत्तर भारत में लुप्तप्राय भाषाओं को संरक्षित करना है।
- लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण और संरक्षण के लिए योजना (SPPEL): इस योजना के तहत, केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL), मैसूर 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भारत की सभी मातृभाषाओं/भाषाओं के संरक्षण और दस्तावेज़ीकरण पर कार्य करता है, जिन्हें लुप्तप्राय भाषाएँ कहा जाता है।
- AI4भारत पहल: 22 भारतीय भाषाओं में भाषण पहचान, मशीन अनुवाद और टेक्स्ट-टू-स्पीच मॉडल विकसित करने के लिए AI का उपयोग करता है, जिससे उन्हें शोधकर्त्ताओं, उद्योगों एवं देशी वक्ताओं के लिए सुलभ बनाया जा सके।
निष्कर्ष
- भाषा संरक्षण का तात्पर्य सिर्फ़ शब्दों की सुरक्षा करना नहीं है; इसका तात्पर्य सांस्कृतिक विरासत, स्वदेशी ज्ञान और विशिष्ट पहचान की रक्षा करना है।
- जैसे-जैसे भाषाएँ लुप्त होती जा रही हैं, वैसे-वैसे उनकी समृद्ध परंपराएँ और इतिहास भी लुप्त होते जा रहे हैं। इसलिए, सांस्कृतिक स्थिरता और समावेशी विकास के लिए भाषाई विविधता को संरक्षित करना बहुत ज़रूरी है।
Source: TH
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