RBI ने संपार्श्विक/जमानत-मुक्त (Collateral-Free) कृषि ऋण सीमा बढ़ाई

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था; कृषि

संदर्भ

  • कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए एक महत्त्वपूर्ण  कदम उठाते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 1 जनवरी, 2025 से प्रति उधारकर्त्ता  संपार्श्विक/जमानत-मुक्त कृषि ऋण सीमा को ₹1.6 लाख से बढ़ाकर ₹2 लाख करने की घोषणा की है।
    • बैंकों को संशोधित दिशानिर्देशों को शीघ्रता से लागू करने और अधिकतम पहुँच सुनिश्चित करने के लिए व्यापक प्रचार करने का निर्देश दिया गया है।

किसानों को कृषि ऋण

  • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत में कृषि ऋण वित्त वर्ष 21 में 13.3 लाख करोड़ रुपये से 1.5 गुना बढ़कर वित्त वर्ष 24 में 20.7 लाख करोड़ रुपये हो गया। 
  • यह किसानों को अपने खेतों में निवेश करने, उत्पादकता में सुधार करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन प्रदान करता है।

कृषि ऋण का महत्त्व 

  • उत्पादकता में वृद्धि: ऋण तक पहुँच से किसान उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उर्वरक और आधुनिक उपकरण खरीद सकते हैं, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है।
    • यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए विशेष रूप से लाभदायक है, जो कृषि क्षेत्र में 86% से अधिक का योगदान करते हैं। 
  • जोखिम प्रबंधन: ऋण सुविधाएँ किसानों को फसल विफलताओं, प्राकृतिक आपदाओं और बाजार में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों का प्रबंधन करने में सहायता करती हैं। 
  • सतत् कृषि: वित्तीय सहायता किसानों को सतत् कृषि के तरीकों को अपनाने और दीर्घकालिक कृषि परियोजनाओं में निवेश करने में सक्षम बनाती है।

कृषि क्षेत्र में ऋण प्रवाह के लिए संस्थागत ढांचा/पहल

  • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD): 1982 में स्थापित, NABARD शीर्ष विकास बैंक है जो कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए ऋण और अन्य सुविधाओं को बढ़ावा देने तथा विनियमित करने के लिए उत्तरदायी है।
    • यह ग्रामीण वित्तीय संस्थानों को पुनर्वित्त सहायता प्रदान करता है और विभिन्न विकास कार्यक्रमों को लागू करता है। 
  • प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS): ये बुनियादी स्तर की सहकारी संस्थाएँ हैं जो किसानों को अल्पकालिक और मध्यम अवधि का ऋण प्रदान करती हैं।
    •  PACS यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण हैं कि ऋण छोटे और सीमांत किसानों तक पहुँचे। 
  • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC): इसका उद्देश्य किसानों को उनकी कृषि की आवश्यकताओं के लिए समय पर ऋण उपलब्ध कराना है।
    • यह फसल उत्पादन, कटाई के पश्चात् की गतिविधियों और कृषि परिसंपत्तियों के रखरखाव से संबंधित व्ययों को कवर करता है। 
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): यह किसानों को प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल की विफलता से जुड़े जोखिमों को कम करने में सहायता करती है।
    •  यह सुनिश्चित करती है कि किसान प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने ऋण चुका सकें। 
  • ब्याज अनुदान योजना: यह रियायती ब्याज दरों पर अल्पकालिक फसल ऋण प्रदान करती है।
    • किसान 7% की ब्याज दर पर 3 लाख रुपये तक का ऋण ले सकते हैं, साथ ही समय पर भुगतान करने पर 3% की अतिरिक्त छूट भी मिलेगी।

चुनौतियाँ और समाधान

  • ऋण तक पहुँच: छोटे और सीमांत किसानों को प्रायः संपार्श्विक/जमानत की कमी और जटिल ऋण प्रक्रियाओं के कारण संस्थागत ऋण तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    • ऋण आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाना और वित्तीय साक्षरता को बढ़ाना इस समस्या को हल करने में सहायता कर सकता है। 
  • उच्च ऋणग्रस्तता: कई किसान ऋण के गैर-संस्थागत स्रोतों पर निर्भर हैं, जैसे कि साहूकार, जो अत्यधिक ब्याज दर वसूलते हैं। अनौपचारिक ऋणदाताओं पर किसानों की निर्भरता को कम करने के लिए संस्थागत ऋण की पहुँच को मजबूत करना और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना आवश्यक है। किसानों को उपलब्ध ऋण सुविधाओं के बारे में जागरूक करने के लिए उनके बीच वित्तीय साक्षरता बढ़ाना।
  •  जलवायु जोखिम: भारत में कृषि जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। फसल बीमा योजनाओं के कवरेज का विस्तार करना और जलवायु-लचीली कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना इन जोखिमों को कम करने में सहायता कर सकता है।

Source: PIB

 

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