पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन व्यवस्था
संदर्भ
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा कि मुफ्त चीजें गरीबों को निर्भर जीवन जीने पर मजबूर कर देती हैं, तथा उनमें काम ढूंढने की इच्छा समाप्त कर देती हैं।
परिचय
- यह बात चुनावों से पहले सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों की घोषणाओं के बीच सामने आई है।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि गरीबों और वंचितों को मुख्यधारा में लाने के लिए उठाए गए कदम, उन्हें मुफ्त सुविधाएँ देने से बेहतर हैं।
मुफ्त उपहार(Freebies) क्या हैं?
- “मुफ्त उपहार” या “रेवड़ी संस्कृति” से तात्पर्य राजनीतिक दलों द्वारा जनता को मुफ्त वस्तुएँ, सेवाएँ या सब्सिडी देने की प्रथा से है, विशेष रूप से चुनाव प्रचार के दौरान, ताकि वोट प्राप्त किया जा सके।
- “रेवड़ी” शब्द का प्रयोग रूपकात्मक रूप से मुफ्त में दी जाने वाली चीजों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, क्योंकि यह मुफ्त उपहार वितरित करने की छवि को उजागर करता है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123: इसमें कहा गया है कि यदि कोई उम्मीदवार या उसका एजेंट या उनकी सहमति से कोई अन्य व्यक्ति मतदाताओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई उपहार, प्रस्ताव या रिश्वत का वादा करता है तो इसे भ्रष्ट आचरण माना जाएगा।
मुफ्त उपहारों के पक्ष में तर्क
- सामाजिक कल्याण: मुफ्त उपहार आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को तत्काल राहत प्रदान कर सकते हैं, जिससे गरीबी और असमानता को कम करने में सहायता मिलेगी।
- सशक्तिकरण: वे हाशिए पर पड़े समूहों, विशेषकर महिलाओं, छात्रों और निम्न आय वाले परिवारों को ऐसे अवसर प्रदान करके सशक्त बना सकते हैं, जो अन्यथा उन्हें उपलब्ध नहीं होते, जैसे निःशुल्क शिक्षा या नकद हस्तांतरण।
- उपभोग को बढ़ावा: मुफ्त बिजली या गैस जैसी मुफ्त वस्तुओं या सेवाओं की पेशकश से प्रयोज्य आय में वृद्धि हो सकती है, जिससे लोगों को अन्य आवश्यकताओं पर अधिक व्यय करने की अनुमति मिलती है, जिससे अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलता है।
- शासन के लिए प्रोत्साहन: मुफ्त उपहार इस बात का भी मापदंड हो सकते हैं कि सरकार अपने नागरिकों की बुनियादी आवश्यकताओं को कितनी अच्छी तरह पूरा कर रही है, तथा यह शासन की दक्षता का प्रत्यक्ष प्रतिबिंब भी है।
मुफ्त उपहारों के विरुद्ध तर्क
- वित्तीय भार: मुफ्त सुविधाएँ प्रदान करने की लागत से सरकारी वित्त पर दबाव पड़ सकता है, तथा बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी दीर्घकालिक विकास परियोजनाओं से संसाधन हट सकते हैं।
- निर्भरता: मुफ्त सुविधाएँ राज्य पर निर्भरता उत्पन्न कर सकती हैं, जिससे आत्मनिर्भरता को हतोत्साहित किया जा सकता है और लोगों को स्थायी अवसरों की खोज करने के लिए प्रोत्साहित करने के बजाय अधिकार की संस्कृति को बढ़ावा मिल सकता है।
- अकुशलता: मुफ्त की चीजें प्रायः गरीबी या आर्थिक असमानता के मूल कारणों का समाधान नहीं करतीं, बल्कि विकास और रोजगार के लिए स्थायी अवसर सृजित करने के बजाय अल्पकालिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
- लोकलुभावन राजनीति: मुफ्त उपहारों के वितरण को राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं की भावनाओं में हेरफेर करने एवं वोट सुरक्षित करने के तरीके के रूप में देखा जा सकता है, जो चुनावों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता को कमजोर करता है।
- सतत् नहीं: मुफ्त उपहारों की दीर्घकालिक स्थिरता संदिग्ध है, क्योंकि सरकारें राजकोषीय स्वास्थ्य को प्रभावित किए बिना या आम जनता पर करों में वृद्धि किए बिना ऐसी योजनाओं को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर सकती हैं।
मुफ्त उपहारों से संबंधित महत्त्वपूर्ण उच्चतम न्यायालय के निर्णय:
- एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम. तमिलनाडु राज्य (2013): उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों के मुफ्त उपहार देने के अधिकार को बरकरार रखा, लेकिन इस बात पर बल दिया कि मुफ्त उपहारों का वितरण जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए।
- इसमें कहा गया है कि केवल एक व्यक्तिगत उम्मीदवार, न कि उसकी पार्टी, मुफ्त उपहार का वादा करके जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत ‘भ्रष्ट आचरण’ कर सकता है।
- मुफ्त उपहारों पर जनहित याचिका (PIL) (2022): इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने तत्काल कोई निर्णय पारित करने से बचाव किया, लेकिन भारत के चुनाव आयोग को मामले पर गौर करने और सिफारिशें देने को कहा।
- न्यायालय ने ऐसे वादों की दीर्घकालिक स्थिरता और शासन पर उनके प्रभाव के बारे में भी चिंता व्यक्त की।
आगे की राह
- विनियमन: सरकार मुफ्त उपहारों के वितरण को विनियमित करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी कर सकती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वे केवल चुनावी वादों के बजाय दीर्घकालिक कल्याण लक्ष्यों के साथ लक्षित और संरेखित हों।
- चुनाव सुधार: चुनाव आयोग चुनाव अवधि के दौरान मुफ्त उपहारों के वितरण पर कठोर नियम लागू कर सकता है, अत्यधिक वादों को सीमित कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि वे चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित न करें।
- राजकोषीय उत्तरदायित्व: राज्यों और केंद्र सरकार को अधिक राजकोषीय रूप से जिम्मेदार नीतियाँ अपनाने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी कल्याणकारी योजना वित्तीय रूप से सतत् हो और इससे ऋण का भार न बढ़े।
- जन जागरूकता: मुफ्त सुविधाओं के निहितार्थों के बारे में जनता को शिक्षित करना तथा दीर्घकालिक समाधान प्रदान करने वाली नीतियों की माँग को प्रोत्साहित करना, जैसे कि बुनियादी ढाँचे का विकास एवं रोजगार सृजन, विकासोन्मुख शासन की ओर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
Source: TH
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