पाठ्यक्रम: GS3/विज्ञान और प्रौद्योगिकी
संदर्भ
- केंद्रीय बजट में अनुसंधान, विकास एवं नवाचार के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
पृष्ठभूमि
- विगत वर्ष अंतरिम बजट में पचास वर्ष के ब्याज मुक्त ऋण के लिए 1 लाख करोड़ रुपये की घोषणा की गई थी।
- यह लंबी अवधि और कम या शून्य ब्याज दरों के साथ दीर्घकालिक वित्तपोषण या पुनर्वित्त प्रदान करेगा।
- इससे निजी क्षेत्र को उभरते क्षेत्रों में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
महत्त्व
- यह कुछ प्रमुख प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में रणनीतिक स्वायत्तता सृजित करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
- बजट में कई पहल की गई हैं जो भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को आगे बढ़ाने के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के मिशन के साथ निकटता से जुड़ी हुई हैं।
- बजट में सार्वजनिक-निजी भागीदारी, उद्योग सहयोग एवं प्रौद्योगिकी-संचालित उद्यमशीलता पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे विनिर्माण, स्वास्थ्य सेवा, स्थिरता और रणनीतिक क्षेत्रों में नवाचार को गति मिलेगी।
भारत का अनुसंधान एवं विकास पर व्यय:
- भारत वर्तमान में अनुसंधान और विकास पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1% से भी कम व्यय करता है, जो तकनीकी रूप से उन्नत देशों की तुलना में कम है।
- इसका एक प्रमुख कारण मुख्य अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी है – जो अब 30% के आसपास रह गई है।
अनुसंधान एवं विकास में वित्तपोषण की आवश्यकता
- आर्थिक विकास: नए उद्योगों को बढ़ावा देता है, उत्पादकता में सुधार करता है, और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है।
- तकनीकी उन्नति: AI, जैव प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सफलता को सुगम बनाती है।
- सामाजिक चुनौतियाँ: गरीबी, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के मुद्दों को सुलझाने में सहायता करता है।
- रोजगार सृजन: नवाचार रोजगार के अवसर सृजित करता है और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करता है।
- वैश्विक स्थिति: भारत को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और ज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करना।
- निवेश आकर्षित करना: अनुसंधान-संचालित क्षेत्रों में विदेशी और घरेलू निवेश को बढ़ावा देता है।
चुनौतियाँ
- वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: अनुसंधान एवं विकास में सीमित निवेश, विशेष रूप से सार्वजनिक संस्थानों में।
- बुनियादी ढाँचे का अभाव: कई संस्थानों में अनुसंधान सुविधाएँ और संसाधन अपर्याप्त हैं।
- प्रतिभा पलायन: विदेशों में बेहतर अवसरों के कारण प्रतिभाओं का अन्य देशों में पलायन करना।
- उद्योग सहयोग का अभाव: व्यावहारिक नवाचार के लिए शिक्षा जगत और उद्योग के बीच सीमित साझेदारी।
- कौशल अंतराल: कुशल शोधकर्त्ताओं और नवप्रवर्तकों का अपर्याप्त प्रशिक्षण एवं विकास।
- विनियामक चुनौतियाँ: जटिल विनियमन और बौद्धिक संपदा संबंधी मुद्दे नवप्रवर्तन में बाधा डालते हैं।
सरकारी पहल
- आधारभूत भू-स्थानिक अवसंरचना और डेटा विकसित करने के लिए वित्त वर्ष 2025-2026 के लिए 100 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ राष्ट्रीय भू-स्थानिक मिशन की घोषणा की गई है।
- यह मिशन राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति 2022 को लागू करने में सहायता करेगा, जिसका लक्ष्य भारत को भू-स्थानिक क्षेत्र में विश्व में अग्रणी बनाना है।
- उच्च उपज वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन, अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और कृषि जैव प्रौद्योगिकी में DBT के प्रयासों के साथ संरेखित करते हुए उच्च उपज वाले, कीट प्रतिरोधी और जलवायु-प्रतिरोधी बीजों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (NMM): उच्च प्रदर्शन वाले जैव विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ‘BioE3 नीति’ के अनुरूप, बजट में घोषित NMM का उद्देश्य प्रौद्योगिकी विकास और व्यावसायीकरण में तेजी लाना है।
- सीवीड मिशन और लर्न एंड अर्न कार्यक्रम महिला उद्यमियों को सशक्त बनाते हैं तथा आर्थिक समावेशन का समर्थन करते हैं।
आगे की राह
- हालिया पहल से स्टार्टअप्स और अन्य निजी क्षेत्र के उपक्रमों को अपनी परियोजनाओं के लिए प्रारंभिक धनराशि प्राप्त होगी और उन्हें लाभ मिलने की संभावना है।
- हालाँकि, अनुसंधान एवं विकास पर व्यय बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी बढ़ाने की आवश्यकता है।
- अनुसंधान गतिविधि और इसके समर्थन हेतु निधियों को व्यापक आधार प्रदान करने के लिए उद्योग, अनुसंधान प्रयोगशालाओं और शैक्षिक संस्थानों के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
- केंद्रीय वित्त मंत्री ने परमाणु ऊर्जा मिशन, स्वच्छ प्रौद्योगिकी पहल, अटल टिंकरिंग लैब्स और शिक्षा में एआई पर उत्कृष्टता केंद्र सहित कई पहलों की घोषणा की है।
Source: TH
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संक्षिप्त समाचार 11-02-2025