पाठ्यक्रम: GS1/ भूगोल, GS3/ पर्यावरण
संदर्भ
- एक साइंटिफिक रिपोर्ट्स पेपर यह दर्शाता है कि नाला अपरदन (Gully Erosion) 17 सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) में से कम से कम नौ को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से शून्य भूख, स्वच्छ जल और स्वच्छता, और जलवायु कार्रवाई।
नाला अपरदन क्या है?
- नाला अपरदन भूमि के क्षरण का एक गंभीर रूप है, जिसमें सतह और उप-सतह प्रवाह के कारण मृदा में गहरी नालियाँ बन जाती हैं।
- यह अन्य अपरदन रूपों से अलग होता है क्योंकि इसमें अत्यधिक मृदा की हानि होती है और इसका व्यवहार अप्रत्याशित होता है।
नाला अपरदन की स्थिति:
- 51 वैश्विक स्थानों पर नाला से संबंधित आपदाओं की सूचना मिली है, जिनमें अकेले नाइजीरिया में 15 स्थान प्रभावित हैं।
- भारत में, 19 राज्यों और दिल्ली में नाला भूमि रूप देखे गए हैं। सबसे प्रभावित क्षेत्र झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान हैं।
नाला अपरदन के कारण:
- वनस्पति की हानि: पेड़ों और घास की अनुपस्थिति मृदा की संरचना को कमजोर कर देती है, जिससे यह बारिश के दौरान अपरदन के लिए अधिक संवेदनशील हो जाती है।
- अनियमित मौसम पैटर्न: लंबे शुष्क अवधि के बाद भारी वर्षा वनस्पति को कम कर देती है और अपवाह को बढ़ाती है, जिससे नाला अपरदन अधिक तीव्र हो जाता है।
- ठोस अपशिष्ट का अनुचित निपटान: जल निकासी चैनलों में ठोस कचरा डालने से प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है, जिससे तूफान के दौरान नाला गहरी और चौड़ी हो जाती है।
- कमजोर मृदा: रेतीली या ढीली संगठित मृदा जल के दबाव में अधिक आसानी से कट जाती हैं, विशेष रूप से झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्रों में।
नाले के अपरदन के प्रभाव
- शीर्ष मृदा की हानि: नाला अपरदन उपजाऊ शीर्ष मृदा की परत को हटा देता है, जो कृषि के लिए आवश्यक है। एक बार खो जाने के बाद, इसे पुनर्जीवित होने में दशकों या सदियों लग सकते हैं।
- उपजाऊ भूमि के हटने से कृषि उत्पादकता में गिरावट आती है, जिससे खाद्य सुरक्षा (SDG 2: शून्य भूख) और किसानों की आजीविका खतरे में पड़ती है।
- जल संकट: नाला अपरदन भूमि की प्राकृतिक जल-संरक्षण क्षमता को बाधित करता है, सतही अपवाह को बढ़ाता है और भूजल पुनर्भरण को कम करता है, जिससे जल संकट और सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। (SDG 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता)
- पारिस्थितिकी तंत्र का ह्रास: अपरदन से आवास खंडित होता है और जैव विविधता में कमी आती है, जिससे स्थानीय वनस्पति और जीव प्रभावित होते हैं।
- गाद प्रदूषण: हटाई गई मृदा प्रायः नदियों एवं जलाशयों में पहुँच जाती है, जिससे गाद जमाव, जल प्रदूषण और भंडारण क्षमता में कमी होती है।
आगे की राह
- पुनर्वनीकरण: क्षतिग्रस्त जलग्रहण क्षेत्रों में देशी प्रजातियों का रोपण पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित करता है और दीर्घकालिक रूप से अपरदन को नियंत्रित करता है।
- भूमि उपयोग योजना: मृदा और स्थलाकृति के अनुसार उपयुक्त भूमि उपयोग प्रथाओं, जैसे कि टेरेसिंग, कृषि वानिकी, और कंटूर खेती को अपनाने से अपरदन का जोखिम कम होता है।
- चेक डैम: पत्थरों, लकड़ी या कंक्रीट से बने छोटे चेक डैम नाला में जल प्रवाह की गति को कम करते हैं, तलछट के जमाव को बढ़ावा देते हैं, और नाला की सतह को स्थिर करने में मदद करते हैं।
निष्कर्ष
- नाला अपरदन भूमि के एक मौन लेकिन विनाशकारी क्षरण का रूप है जिसे मुख्यधारा के पर्यावरणीय विमर्श में अनदेखा किया गया है।
- चूँकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन के अंतर्गत 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर क्षतिग्रस्त भूमि को पुनर्स्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई है, इसलिए यह अत्यावश्यक है कि नाला अपरदन को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए निवारक और सुधारात्मक रणनीतियाँ अपनाई जाएँ।
Source: DTE
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