पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण
संदर्भ
- केरल सरकार ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WLPA) में संशोधन करने का अनुरोध किया है, ताकि मानव आवासों में प्रवेश करने वाले वन्यजीवों को मारने की अनुमति दी जा सके।
केरल सरकार की केंद्र सरकार से माँगें
- WLPA, 1972 में संशोधन कर “आदमखोर” या खतरनाक वन्यजीवों के नष्ट करने की प्रक्रिया को तीव्र किया जाए।
- धारा 62 के अंतर्गत जंगली सूअरों को ‘हानिकारक जीव’ (वर्मिन) घोषित किया जाए, जिससे इन्हें निर्धारित क्षेत्रों में सीमित समय के लिए शिकार करने की अनुमति मिल सके।
- बॉनेट मकाक को अनुसूची I से हटाया जाए, जिससे वन्यजीव अधिकारी सीधा हस्तक्षेप कर सकें, जैसे पकड़ने और स्थानांतरण की अनुमति।
मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि के कारण
- पर्यावास का क्षय: वनों की कटाई, विकास कार्य, और कृषि विस्तार के कारण वन्यजीवों के आवास सिकुड़ गए और विभाजित हो गए।
- कुछ जानवरों की जनसंख्या में वृद्धि: विशेष रूप से जंगली सूअर और मकाक बंदरों की संख्या में वृद्धि के कारण संघर्ष बढ़ा।
- मानव गतिविधियाँ: वन क्षेत्रों में पशुपालन और फसल पैटर्न में बदलाव वन्यजीवों को आकर्षित कर रहे हैं।
- पारिस्थितिक असंतुलन: पूर्व की शिकार नीतियों के कारण शीर्ष शिकारी प्रजातियों की संख्या में गिरावट आई, जिससे शाकाहारी जीवों की अनियंत्रित वृद्धि हुई।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 – WLPA, 1972 में छह अनुसूचियाँ हैं, जो विभिन्न स्तरों पर संरक्षण प्रदान करती हैं: 1. अनुसूची I और II: बाघ, हाथी आदि को सर्वोच्च संरक्षण प्रदान करते हैं। इन अनुसूचियों के अंतर्गत अपराधों पर सबसे कठोर दंड लगाया जाता है। 2. अनुसूची V: इसमें ‘हानिकारक जीव’ (वर्मिन) श्रेणीबद्ध प्रजातियाँ शामिल हैं, जैसे कौए, फल चमगादड़, चूहे और मूषक, जिन्हें बिना प्रतिबंध के शिकार किया जा सकता है। वर्मिन घोषित करने की प्रक्रिया – राज्य सरकार का अनुरोध: यदि कोई वन्यजीव संपत्ति को हानि, फसल को क्षति या मानव जीवन या पशुधन के लिए खतरा उत्पन्न करता है, तो राज्य सरकार केंद्र सरकार से इसे वर्मिन घोषित करने का अनुरोध कर सकती है। – केंद्र सरकार की अधिसूचना: केंद्र सरकार (अनुसूची I और अनुसूची II, भाग II को छोड़कर) किसी वन्यजीव को विशेष क्षेत्र और अवधि के लिए वर्मिन घोषित कर सकती है। – संरक्षण की समाप्ति: एक बार वर्मिन घोषित होने के पश्चात्, पशु को WLPA संरक्षण से वंचित कर दिया जाता है, और इसे शिकार या नष्ट करने की अनुमति मिल जाती है। |
चिंताएँ
- पारिस्थितिक व्यवधान: अत्यधिक नष्ट करने से खाद्य शृंखला में असंतुलन और शिकारी-शिकार संतुलन प्रभावित होता है।
- ग़ैर-लक्षित प्रजातियों को खतरा: जंगली सूअरों के लिए लगाए गए फंदों में कर्नाटक जैसे राज्यों में बाघ और तेंदुए फँस चुके हैं।
- डेटा की कमी: कई निर्णय प्रजातियों की जनसंख्या, फसल क्षति, या संघर्ष स्थलों पर व्यापक डेटा के बिना लिए जाते हैं।
- नैतिक चिंताएँ:
- पशु जीवन की पवित्रता: अनावश्यक या सामूहिक संहार नैतिक रूप से वन्यजीवों के जीवन के अधिकार को चुनौती देता है।
- प्रजातियों का भेदभाव: कुछ प्रजातियों को ‘हानिकारक’ घोषित करने से यह मानव सुविधा के अनुरूप लेकिन पारिस्थितिक आवश्यकता के विरुद्ध हो सकता है।
- कल्याण उल्लंघन: घातक फंदों और अमानवीय मारने की विधियाँ लक्ष्य और ग़ैर-लक्षित प्रजातियों दोनों के लिए अनावश्यक पीड़ा उत्पन्न कर सकती हैं।
Source:TH
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