भारतीय मानसून का समय से पहले आगमन

पाठ्यक्रम: GSI/ भारतीय भौतिक भूगोल

संदर्भ

  • IMD के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मानसून के समय से पहले आगमन की संभावना है। केरल में मानसून का सामान्य आगमन दिनांक 1 जून है और सामान्यतः इस प्रणाली को निकोबार द्वीप से केरल तक पहुँचने में लगभग 10 दिन लगते हैं।

भारतीय मानसून की प्रक्रिया: प्रमुख कारक

  • भूमि और समुद्र का भिन्न ताप: ग्रीष्म ऋतु में भारत की स्थलमंडल महासागर की तुलना में तीव्रता से उष्ण होता है, जिससे भूमि पर निम्न दाब बनता है और समुद्र से आर्द्र वायु आकर्षित होती हैं।
  • अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ): भूमध्यरेखा के पास व्यापारिक पवनों के अभिसरण का क्षेत्र ग्रीष्म ऋतु में उत्तर की ओर गमन करता है, जिससे गंगा के मैदान में निम्न दाब बढ़ता है और मानसूनी पवनें आकर्षित होती हैं।
  • तिब्बती पठार: इसकी उच्च ऊँचाई ग्रीष्म ऋतु में में उष्ण होती है, जिससे ऊपरी वायुमंडलीय निम्न दाब क्षेत्र बनता है, जो ऊर्ध्वाधर परिसंचरण को मजबूत करता है और मानसूनी पवनों को आकर्षित करता है।
  • उष्णकटिबंधीय पूरबी जेट: ग्रीष्म ऋतु में विकसित होता है, जिससे मानसूनी गर्त और वर्षा को बल मिलता है।

ENSO:

  • एल नीनो: प्रशांत महासागर के जल को गर्म करता है, जिससे भारतीय मानसून क्षीण हो सकता है।
  • ला नीना: प्रशांत महासागर को ठंडा करता है, जिससे मानसून प्रबल होता है।

हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD):

  • सकारात्मक IOD: हिंद महासागर के पश्चिमी भाग को गर्म करके मानसून को मजबूत करता है।
  • नकारात्मक IOD: मानसून को कमजोर करता है।

आगमन और प्रगति

  • अरब सागर शाखा: केरल में 1 जून के आसपास प्रवेश करती है, पश्चिमी तट के साथ आगे बढ़ती है, पश्चिमी घाट और आंतरिक राज्यों में भारी वर्षा की स्थिति उत्पन्न करती है।
  • बंगाल की खाड़ी शाखा: जून माह के प्रारंभ में पूर्वोत्तर भारत पहुँचती है, फिर गंगा के मैदान के साथ पश्चिम की ओर बढ़ती है। सामान्यतः भारत जुलाई मध्य तक पूरी तरह कवर हो जाता है।

मानसून की वापसी

  • वापसी अक्टूबर में उत्तर-पश्चिम भारत से प्रारंभ होती है।
  • स्पष्ट आकाश और अवशिष्ट नमी “अक्टूबर की गर्मी” नामक गर्म, आर्द्र स्थितियाँ उत्पन्न करती हैं।
  • पवनों की दिशा परिवर्तन दक्षिण-पूर्वी तट पर वर्षा की स्थिति उत्पन्न करता है, विशेष रूप से तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में।

मानसून का प्रभाव

  • कृषि: चावल और मक्का जैसी खरीफ फसलों के लिए आवश्यक। अच्छा मानसून उपज को बढ़ाता है; कमजोर मानसून से सूखा पड़ सकता है।
  • अर्थव्यवस्था: मानसून-संबंधी कृषि GDP, ग्रामीण आय और खाद्य कीमतों को प्रभावित करती है।
  • जल संसाधन और जलविद्युत: नदियों और जलाशयों को पुनर्भरण करता है, जो पीने युक्त जल, सिंचाई और विद्युत के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • पर्यावरण और संस्कृति: जैव विविधता और वर्षा उत्सव जैसी सांस्कृतिक परंपराओं का समर्थन करता है।
  • आपदाएँ: भारी वर्षा बाढ़, भूस्खलन और अन्य आपदाओं को जन्म दे सकती हैं, विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में।

मानसून पूर्वानुमान को सुधारने की हालिया सरकारी पहलें

  • मानसून मिशन: 2012 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा प्रारंभ किया गया, यह एक प्रमुख पहल थी जो मानसून पूर्वानुमान की सटीकता को बढ़ाने के लिए बनाई गई थी।
  • राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन: उच्च स्तरीय गतिशील मौसम मॉडल चलाने के लिए आवश्यक गणनात्मक बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने के लिए लक्षित।
  • ICAR और IMD सहयोग: IMD, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के साथ मिलकर कृषि मौसम सलाह सेवाएँ प्रदान करता है।

Source: TH

 

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