भारत-मध्य एशिया वार्ता की चौथी बैठक

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • हाल ही में, विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने आर्थिक विकास के अवसरों का पता लगाने और भारत-मध्य एशिया संबंधों को मजबूत करने के लिए ‘भारत मध्य एशिया वार्ता’ के चौथे संस्करण में एक उच्च स्तरीय बैठक की मेजबानी की।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ

  • वित्तीय सहयोग को मजबूत करना: विदेश मंत्री ने भारतीय वित्तीय संस्थानों में मध्य एशियाई बैंकों द्वारा विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते खोलने पर प्रकाश डाला, जिससे निर्बाध लेनदेन की सुविधा मिली।
    • इसमें सीमा पार भुगतान के लिए भारत के यू.पी.आई. के संभावित उपयोग, वित्तीय एकीकरण को बढ़ाने पर भी चर्चा हुई। 
  • व्यापार और संपर्क को बढ़ावा देना: मध्य एशियाई नेताओं ने सतत् और पूर्वानुमानित आर्थिक संपर्क सुनिश्चित करने के लिए व्यापार बास्केट में विविधता लाने के महत्त्व पर बल दिया।
    • विदेश मंत्री ने हवाई सेवाओं का विस्तार करने और पारगमन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे व्यापार अधिक कुशल हो सके। 
  • मध्य एशियाई देशों की प्रतिबद्धता: कज़ाख़िस्तान ने आर्थिक संबंधों को गहरा करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए भारत के नवाचार-संचालित व्यापार समुदाय की प्रशंसा की।
    • किर्गिस्तान ने भारत और मध्य एशिया के बीच रणनीतिक साझेदारी की पुष्टि की, जिसमें आपसी विकास की संभावना पर प्रकाश डाला गया। 
    • तुर्कमेनिस्तान ने भारत को एक प्रमुख और आशाजनक भागीदार बताया, और एशिया में आधुनिक भू-आर्थिक वास्तुकला को आकार देने में इसकी भूमिका को मान्यता दी।

मध्य एशिया के बारे में

  • पाँच मध्य एशियाई गणराज्य (CARS) अर्थात् कज़ाख़िस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान।
    • ये देश 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद स्वतंत्र हुए। 
  • सभी 5 देश स्थलरुद्ध (लैंड-लॉक्ड) हैं। 
  • सभी पाँच देश प्राकृतिक और खनिज संसाधनों से समृद्ध हैं।
    • कज़ाख़िस्तान में अधिकांश खनिजों की वाणिज्यिक रूप से बड़े पैमाने पर उपलब्धता है, जैसे कि कोयला, तेल, गैस, यूरेनियम, सोना, सीसा, जस्ता, लौह अयस्क, टिन, तांबा, मैंगनीज, क्रोमाइट, बॉक्साइट आदि। 
    • तुर्कमेनिस्तान में विश्व का चौथा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार है और यहाँ कपास, यूरेनियम, पेट्रोलियम, नमक और सल्फर की महत्त्वपूर्ण मात्रा उपलब्ध है। 
    • उज़्बेकिस्तान गैस, यूरेनियम, कपास, चांदी और सोने से समृद्ध है। 
    • ताजिकिस्तान और किर्गिज़स्तान में ताजे पानी की पर्याप्त आपूर्ति है। 
    • किर्गिज़स्तान में सोना, यूरेनियम, पारा और सीसा के महत्त्वपूर्ण भंडार हैं।
  • मध्य एशिया के साथ भारत का जुड़ाव एक रणनीतिक साझेदारी के रूप में विकसित हो गया है, जो व्यापार, संपर्क, सुरक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर केंद्रित है।

भारत-मध्य एशिया संबंध 

  • प्रारंभिक काल: भारत का मध्य एशिया के साथ कई सहस्राब्दियों पुराना ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध है।
    • तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी तक रेशम मार्ग (सिल्क रोड) के माध्यम से भारत (और चीन) से मध्य एशिया और उससे आगे वस्तुओं, विचारों और ज्ञान का तेज़ी से आदान-प्रदान हुआ। 
    • बौद्ध धर्म भारत से रेशम मार्ग के माध्यम से अफगानिस्तान, मध्य एशिया और पश्चिमी चीन तक पहुँचा। 
    • मकदूनिया के सिकंदर, कुषाण, बाबर, मुग़ल और सूफी परंपरा भारत और मध्य एशियाई क्षेत्र के गहरे संबंधों के प्रमाण हैं।
  • व्यापार एवं आर्थिक सहयोग: भारत और मध्य एशिया ऊर्जा, औषधि, वस्त्र और तकनीक पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
    • दोनों ने चाबहार बंदरगाह के माध्यम से निवेश और व्यापार सुगमता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • कनेक्टिविटी एवं अवसंरचना विकास: भारत अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) और हवाई सेवा विस्तार जैसी पहलों के माध्यम से क्षेत्रीय संपर्क को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है।
  • सुरक्षा एवं भू-राजनीतिक सहयोग: दोनों देश क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, विशेष रूप से आतंकवाद-रोधी उपायों और अफगानिस्तान में स्थिरता को लेकर।
    • भारत-मध्य एशिया संवाद ने रक्षा, खुफिया साझेदारी और साइबर सुरक्षा में सहयोग को मजबूत किया है जिससे एक सुरक्षित और स्थिर क्षेत्रीय वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।
  • सांस्कृतिक एवं शैक्षिक आदान-प्रदान: छात्रों की अदला-बदली, पर्यटन और राजनयिक पहलों के माध्यम से यह संबंध बढ़ता जा रहा है।
    • भारतीय विश्वविद्यालय हजारों मध्य एशियाई छात्रों को आकर्षित कर रहे हैं, जिससे जनता के बीच मजबूत संबंध बन रहे हैं।

भारत-मध्य एशिया संबंधों की रणनीतिक चुनौतियाँ 

  • व्यापारिक बाधाएँ एवं सीमित आर्थिक एकीकरण: भारत का मध्य एशिया के साथ वार्षिक व्यापार लगभग $2 बिलियन के आसपास है, जो चीन के ~$50 बिलियन व्यापार की तुलना में अत्यंत कम है।
    • लॉजिस्टिक चुनौतियाँ, उच्च टैरिफ और विनियामक जटिलताएँ व्यापार विस्तार को सीमित कर रही हैं।
  • कनेक्टिविटी एवं अवसंरचना बाधाएँ: पारगमन अक्षमताएँ, नौकरशाही में देरी और भू-राजनीतिक तनाव प्रगति को धीमा कर रहे हैं।
    • मध्य एशिया तक सीधा स्थलीय मार्ग न होने से व्यापार मार्गों में जटिलता बढ़ जाती है।
  • सुरक्षा एवं भू-राजनीतिक चुनौतियाँ: क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर आतंकवाद विरोधी प्रयास और अफगानिस्तान में स्थिरता पर चिंताएँ हैं।
    • चीन का क्षेत्र में बढ़ता प्रभाव और पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति राजनयिक चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
  • वित्तीय एवं डिजिटल एकीकरण मुद्दे: मध्य एशिया में विनियामक असंगति और सीमित बैंकिंग अवसंरचना निर्बाध वित्तीय लेनदेन में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।

आगे की राह 

  • अवसंरचना और संपर्क: चाबहार बंदरगाह के दूसरे चरण और चाबहार-ज़ाहेदान रेल लिंक को तेज़ी से विकसित करना।
    • मुम्बई से मध्य एशिया तक ईरान और कॉकस क्षेत्र के माध्यम से जुड़ने वाले INSTC में सहयोग का विस्तार करना।
  • संस्थानिक सुदृढ़ीकरण: विदेश मंत्रालय (MEA) के अंतर्गत एक मध्य एशिया टास्क फोर्स बनाई जाए।
    • भारत-मध्य एशिया संवाद और नेताओं के सम्मेलन को नियमित किया जाए।
  • व्यापार और आर्थिक कूटनीति: मध्य एशिया-भारत मुक्त व्यापार समझौता (FTA) या क्षेत्रीय व्यापार संधि को बढ़ावा देना।
  • ऊर्जा सहयोग: हरित हाइड्रोजन, सौर ऊर्जा और महत्त्वपूर्ण खनिजों में साझेदारी खोजें। TAPI पाइपलाइन को राजनयिक रूप से पुनः सक्रिय करना।
  • बहुपक्षीय सहभागिता: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के अंतर्गत साइबर सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी उपाय और स्वास्थ्य कूटनीति पर पहल प्रस्तावित करना।
  • सॉफ्ट पावर एवं सांस्कृतिक कूटनीति: ICCR छात्रवृत्ति का विस्तार करना, सांस्कृतिक उत्सवों की मेजबानी करें और बॉलीवुड एवं योग कूटनीति को बढ़ावा देना।
    • शिक्षा और तकनीक में उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना के लिए भारत वित्त पोषित संस्थान बनाए।

Source: News On AIR

 

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