क्या भारत को अपने परमाणु ऊर्जा कानून में संशोधन करना चाहिए?

पाठ्यक्रम: GS3/ऊर्जा

संदर्भ 

  • भारत में परमाणु दायित्व ढाँचे में संशोधन करने पर चर्चा जारी है, जो सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (CLNDA), 2010 और एटॉमिक एनर्जी एक्ट (AEA), 1962 द्वारा विनियमित है।
    •  इसका उद्देश्य निजी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा उत्पादन सुविधाओं के निर्माण और संचालन की अनुमति देना है।

परिचय

  • भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण लक्ष्यों और नेट-जीरो प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिए गैर-जीवाश्म ऊर्जा, विशेष रूप से परमाणु ऊर्जा को बढ़ाना आवश्यक है।
  • सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010 (CLNDA) आपूर्तिकर्ताओं को दायित्व सौंपता है, जिससे विदेशी निवेश प्रभावित होता है। 
  • परिचर्चा इस बात पर केंद्रित है कि इस कानून में संशोधन आवश्यक है या चुनौतियाँ अधिक गहरी और संरचनात्मक हैं।

विधायी सुधार जारी हैं 

  • परमाणु दायित्व कानून में संशोधन (CLNDA, 2010): इसका उद्देश्य परमाणु दुर्घटना की स्थिति में उपकरण विक्रेताओं की जिम्मेदारी को सीमित करना है। प्रमुख प्रस्तावित परिवर्तन:
    • मौद्रिक सीमा: दायित्व को मूल अनुबंध मूल्य तक सीमित किया जा सकता है।
    • समय सीमा: दायित्व लागू रहने की अवधि के लिए सीमित समय तय करने का प्रस्ताव।
  • एटॉमिक एनर्जी एक्ट, 1962 में संशोधन:
  • इसका उद्देश्य निजी और विदेशी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देना है।
  • वर्तमान प्रतिबंध: केवल राज्य-स्वामित्व वाली संस्थाएँ जैसे NPCIL और NTPC Ltd ही परमाणु संयंत्र संचालित कर सकती हैं।
  • प्रस्तावित बदलाव: आगामी परियोजनाओं में निजी/विदेशी कंपनियों को अल्पसंख्यक हिस्सेदारी की अनुमति देना।

भारत के परमाणु कानूनों में संशोधन के पक्ष में तर्क

  • विदेशी निवेश में कानूनी बाधाएँ: CLNDA आपूर्तिकर्ता दायित्व बनाता है, जो वैश्विक स्तर पर असामान्य है।
    • अमेरिका, फ्रांस, जापान और रूस (2010 के बाद) की कंपनियाँ भारतीय बाजार में प्रवेश से बचती हैं।
  • आपूर्ति शृंखला और प्रौद्योगिकी पहुँच:
    • विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के बिना, भारत 100 GW परमाणु ऊर्जा क्षमता तक नहीं पहुँच सकता।
    • SMRs (छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर) जैसी नई तकनीकों तक पहुँच के लिए कानून में संशोधन आवश्यक है।
  • अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण– CSC ढाँचा:
    • भारत संवर्धित मुआवजा संधि (CSC) का भाग है, जो संचालक (operator) दायित्व पर बल देता है, न कि आपूर्तिकर्ता पर।
    • SMRs और अन्य नई तकनीकों को निवेशक-अनुकूल कानूनी ढाँचे द्वारा बढ़ावा देना चाहिए।

कानून संशोधन के विरोध में तर्क

  • समस्या की गलत पहचान:
    • मुद्दा कानूनी या निवेश नहीं, बल्कि तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक है।
    • 100 GW क्षमता का विस्तार अव्यावहारिक है—अमेरिका और फ्रांस जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाएँ भी इस गति से नहीं बढ़ी हैं।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की कोई गारंटी नहीं:
    • रक्षा क्षेत्र के अनुभव से पता चलता है कि 100% FDI के बावजूद कोई ठोस तकनीकी हस्तांतरण नहीं हुआ।
  • अत्यधिक सैद्धांतिक अनुमान:
    • नीति इस आधार पर नहीं बनाई जा सकती कि निजी कंपनियाँ कानून संशोधन के बाद व्यवहार बदलेंगी।
    • भारत की पाँच छोटे रिएक्टर बनाने की योजना प्रदर्शित करती है कि स्वदेशी डिजाइन को बढ़ाना अधिक व्यवहारिक हो सकता है।
  • संप्रभुता और सार्वजनिक सुरक्षा:
    • आपूर्तिकर्ता दायित्व को कम करने से जवाबदेही घट सकती है और सार्वजनिक हित प्रभावित हो सकता है।
    • भारत का अद्वितीय दायित्व शासन भोपाल और चेरनोबिल के अनुभवों के आधार पर बनाया गया था और यह न्याय और निवारण पर आधारित है।

आगे की राह 

  • भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों (2047) को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा का विस्तार आवश्यक है, लेकिन कानूनी बाधाओं को दूर करना एक प्रमुख चुनौती है। 
  • कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कानून में संशोधन विदेशी निवेश और तकनीक को आकर्षित करने के लिए आवश्यक है, जबकि अन्य आर्थिक व्यवहार्यता, सुरक्षा और विदेशी भागीदारी पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर सावधानी बरतने की परामर्श देते हैं।
  •  एक संतुलित दृष्टिकोण में स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ाना, नियमित रूप से सीमित विदेशी भागीदारी की अनुमति देना और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल हो सकता है।

Source: TH

 

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