भोपाल में भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध

पाठ्यक्रम: GS1/सामाजिक मुद्दे, GS2/ शासन

समाचार में

  • भोपाल जिला प्रशासन ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 163 को लागू करते हुए सभी प्रकार की भिक्षावृत्ति, दान देने और भिखारियों से सामान खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • BNSS की धारा 163 DM या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट को सार्वजनिक उपद्रव के मामलों में आदेश जारी करने का अधिकार देती है।
    • BNSS की धारा 223 आदेशों की अवज्ञा के लिए दंड से संबंधित है।

परिचय

  • 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 4.13 लाख भिखारी एवं खानाबदोश लोग हैं।
  • विभिन्न शहरों में प्रमुख आयोजनों से पूर्व बार-बार इसी प्रकार की कार्रवाई की गई है। 2017 में हैदराबाद ने वैश्विक उद्यमिता शिखर सम्मेलन से पूर्व भीख माँगने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि 2010 में दिल्ली ने राष्ट्रमंडल खेलों से पूर्व भिखारियों को हटा दिया था। इन उपायों की आलोचना इस कारण हुई है कि ये मूल कारणों का समाधान किए बिना समाज के सबसे कमजोर वर्गों को लक्षित करते हैं।

भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने की आवश्यकता

  • सार्वजनिक उपद्रव और सौंदर्यीकरण: प्रायः यह दावा किया जाता है कि भिखारी पर्यटकों और निवेशकों के लिए नकारात्मक छवि बनाते हैं, विशेष रूप से उच्च-स्तरीय आयोजनों से पहले।
  • यातायात एवं सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: कई भिखारी व्यस्त चौराहों पर कार्य करते हैं, जिसके कारण दुर्घटनाएँ होती हैं और यातायात बाधित होता है।
  • संगठित भिक्षावृत्ति गिरोह: कानून प्रवर्तन एजेंसियों का तर्क है कि कई भिखारी बड़े संगठित नेटवर्क का हिस्सा हैं जो बच्चों और विकलांग व्यक्तियों सहित व्यक्तियों का शोषण करते हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम: कुछ राज्य भीख माँगने पर प्रतिबंध लगाने के पीछे स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी चिंताओं को कारण बताते हैं, विशेष रूप से भीड़भाड़ वाले शहरी क्षेत्रों में।

भारत में भिक्षावृत्ति हेतु विधिक ढाँचा

  • किसी राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत भिक्षावृत्ति पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध नहीं है, लेकिन कई राज्यों में भिक्षावृत्ति के विरुद्ध अपने कानून हैं। भारत में भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने की जड़ें औपनिवेशिक न्यायशास्त्र में हैं, तथा आज भी कई कानून प्रभावी हैं:
    • यूरोपियन वैग्रेंसी एक्ट, 1869: भारत में गरीब यूरोपीय लोगों को भिक्षावृत्ति से रोककर नस्लीय श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए अंग्रेजों द्वारा अधिनियमित किया गया।
    • बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959: इसे एक आदर्श कानून माना जाता है, जिसे गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों द्वारा अपनाया गया। यह विधेयक भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करता है तथा प्राधिकारियों को भिखारियों को हिरासत में लेने तथा दंडित करने का अधिकार देता है।
    • बंगाल वेग्रन्ट अधिनियम, 1943, और मद्रास भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1945: स्वतंत्रता-पूर्व इन कानूनों का उद्देश्य भिखारियों को अपराधी बनाना और भिखारियों को कार्यशालाओं में पुनर्वासित करना था।
    • समवर्ती सूची के अंतर्गत वेग्रन्ट कानून (प्रविष्टि 15): केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को वेग्रन्ट और अभाव-संबंधी मामलों पर कानून बनाने का अधिकार है।
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 163 और 223
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23: मानव तस्करी, बेगार (बिना भुगतान के बलपूर्वक श्रम) और अन्य प्रकार के बलात् श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।

भारत में भिक्षावृत्ति की प्रथा क्यों जारी है?

  • गरीबी और बेरोजगारी: आर्थिक असमानताएँ और रोजगार के अवसरों की कमी कई व्यक्तियों को बेरोजगारी के लिए मजबूर करती है।
  • सामाजिक सुरक्षा का अभाव: भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और आश्रय तक अपर्याप्त पहुँच के कारण हाशिए पर पड़े व्यक्ति भिक्षावृत्ति को मजबूर होते हैं।
  • जबरन भिक्षावृत्ति और तस्करी: संगठित अपराध गिरोह बच्चों और विकलांग व्यक्तियों को भिक्षावृत्ति के लिए मजबूर करते हैं।
  • प्रवासन और शहरीकरण: कई ग्रामीण गरीब लोग कार्य की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं, लेकिन रोजगार पाने में असफल रहते हैं और अंततः भिखारी बन जाते हैं।
  • विकलांगता और मानसिक बीमारी: उचित स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में विकलांग और मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के पास भिक्षावृत्ति के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचता।

भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने के निहितार्थ

  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: भिक्षावृत्ति पर दण्ड देने से समाज के सबसे गरीब वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा यह सम्मान और समानता की संवैधानिक गारंटी का खंडन करता है।
  • मनमाना हिरासत: कई भिक्षा-विरोधी कानून, प्राधिकारियों को कानूनी प्रक्रिया के बिना भिखारियों को हिरासत में लेने का अधिकार देते हैं।
  • मूल कारणों का समाधान करने में विफलता: केवल भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध लगाने से गरीबी या बेघर होने का समाधान नहीं होगा।
  • न्यायिक हस्तक्षेप:
    • दिल्ली उच्च न्यायालय (2018): बॉम्बे भिक्षा निवारण अधिनियम के कुछ भागों को असंवैधानिक करार दिया।
    • जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय (2019): भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम और संबंधित नियमों को असंवैधानिक घोषित किया।
    • सुप्रीम कोर्ट (2021): भिक्षावृत्ति को एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा माना, कोविड-19 के दौरान प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया।

पुनर्वास के लिए सरकारी पहल

  • स्माइल (SMILE) योजना (2021): केंद्रीय क्षेत्र योजना; “आजीविका और उद्यम के लिए हाशिए पर पड़े व्यक्तियों के लिए सहायता” का उद्देश्य भिखारियों के पुनर्वास और उन्हें वैकल्पिक आजीविका उपलब्ध कराना है।
  • निराश्रित व्यक्ति (संरक्षण, देखभाल और पुनर्वास) मॉडल विधेयक, 2016: निराश्रित व्यक्तियों के लिए व्यापक देखभाल और पुनर्वास प्रदान करने हेतु सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित, लेकिन अंततः इसे छोड़ दिया गया।
  • आश्रय और कौशल विकास कार्यक्रम: कई राज्यों ने भिखारियों को समाज में पुनः शामिल करने में सहायता करने के लिए अस्थायी आश्रय, खाद्य वितरण केंद्र और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं।

आगे की राह

  • कानूनी सुधार: पुराने औपनिवेशिक युग के कानूनों के स्थान पर अपराधीकरण के बजाय पुनर्वास पर केंद्रित एक व्यापक राष्ट्रीय कानून बनाया जाना चाहिए।
  • सामाजिक कल्याण योजनाओं को मजबूत करना: सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच और रोजगार के अवसरों का विस्तार करके भिक्षावृत्ति के मूल कारणों का समाधान किया जा सकता है।
  • सड़क पर विक्रय का विनियमन: कई भिखारी सड़क पर विक्रय का सहारा लेते हैं। इस गतिविधि को वैधानिक बनाने और समर्थन देने से उन्हें स्थायी आजीविका मिल सकती है।
  • गैर सरकारी संगठनों और निजी भागीदारी के माध्यम से पुनर्वास: गैर सरकारी संगठनों और निजी संगठनों के साथ सहयोग करके संरचित पुनर्वास कार्यक्रमों को लागू करने में सहायता मिल सकती है।

Source: IE