आर्कटिक क्षेत्र में भारत की बढ़ती भागीदारी

पाठ्यक्रम :GS 2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

समाचार में 

  • आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम 2025 में, विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने आर्कटिक क्षेत्र के वैश्विक महत्त्व और इसमें भारत की बढ़ती भागीदारी को रेखांकित किया।

आर्कटिक क्षेत्र 

  • यह एक विशाल और विविध क्षेत्र है, जो 24 समय क्षेत्रों, आठ देशों और तीन महाद्वीपों में फैला हुआ है, जहाँ जलवायु परिस्थितियाँ, विकास स्तर और सांस्कृतिक परिदृश्य भिन्न हैं। 
  • इसमें हिम रहित क्षेत्र जैसे नॉर्वे और उत्तर-पश्चिम रूस के कुछ हिस्से शामिल हैं, जबकि अलास्का और कनाडा जैसे क्षेत्रों में बर्फ़ से ढका भूभाग है। 
  • यह कभी वैज्ञानिक सहयोग एवं पर्यावरण संरक्षण का केंद्र था, लेकिन बढ़ती वैश्विक रुचि के कारण अब सैन्य और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का स्थल बन रहा है।

भारत की आर्कटिक रणनीति 

  • इसकी शुरुआत वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हुई थी, लेकिन 2020 के दशक की शुरुआत से इसमें व्यापक भू-राजनीतिक विचार शामिल होने लगे। 
  • भारत 2008 से आर्कटिक में मौजूद है, जब उसने स्वालबार्ड में हिमाद्री अनुसंधान केंद्र की स्थापना की। 
  • 2022 में, भारत ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को औपचारिक रूप दिया और आर्कटिक नीति जारी की। 
  • इस बदलाव के पीछे वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में बदलाव प्रमुख थे, जिसमें रूस और पश्चिमी देशों के बीच बिगड़ते संबंध और आर्कटिक क्षेत्र में रूस के साथ चीन का बढ़ता सहयोग शामिल था। 
  • भारत की 2022 की आर्कटिक नीति जलवायु विज्ञान, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास पर केंद्रित है, जो दक्षिण एशिया के जल सुरक्षा और मानसूनी चक्रों पर आर्कटिक के प्रभाव को रेखांकित करती है।

भारत आर्कटिक में क्यों रुचि रखता है? 

  • भारत की आर्कटिक में रुचि नॉर्दर्न सी रूट (NSR) के बुनियादी ढाँचे के विकास में सहायता करने से जुड़ी है ताकि आर्कटिक संसाधनों, जैसे गैस और महत्त्वपूर्ण खनिजों तक पहुँच प्राप्त की जा सके, जो भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक हैं। 
  • भारत रूस को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के प्रति प्रतिबद्ध करने का भी प्रयास कर रहा है, जिससे भारत को रूस और नॉर्डिक-बाल्टिक क्षेत्र से जोड़ने में सहायता मिलेगी। 
  • यह चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक वैकल्पिक मार्ग साबित हो सकता है।

सुझाव और आगे की राह

  • भारत की आर्कटिक भूमिका विकसित हो रही है, क्योंकि वह जटिल भू-राजनीतिक परिस्थितियों से गुजर रहा है।
  • आर्कटिक में भारत की भागीदारी उसकी वैश्विक स्थिति को मजबूत कर सकती है और नॉर्डिक देशों के साथ संबंध सुधार सकती है।
  • भारत को यूरोप में रूस की युद्ध स्थिति के प्रति अपनी नीति को ध्यान में रखते हुए आर्कटिक हितों में संतुलन बनाना चाहिए।
  • भारत को यूरोप, विशेषकर नॉर्डिक देशों के साथ सहयोग को बढ़ाना चाहिए, खासकर बुनियादी ढाँचे, डिजिटलीकरण और पर्यावरण संरक्षण में संयुक्त पहल पर ध्यान केंद्रित करते हुए।
  • भारत को अधिक रणनीतिक आर्कटिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिसमें विज्ञान से आगे बढ़कर सहभागिता पर ध्यान देना, समान विचारधारा वाले आर्कटिक देशों से संबंध मजबूत करना तथा उभरते आर्कटिक शासन मंचों में भूमिका निभाने की कोशिश करना सम्मिलित है।

Source:  Air

 

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