क्या सिविल सेवा परीक्षा में सुधार की आवश्यकता है?

पाठ्यक्रम: GS2/शासन

संदर्भ

  • संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा (CSE), भारत की प्रशासनिक सेवाओं का द्वार खोलती है, जो शासन और नीति कार्यान्वयन को आकार देती है। हालाँकि, वर्षों से इसकी संरचना, निष्पक्षता और प्रभावशीलता को लेकर चिंताएँ उभरी हैं, जिससे सुधार की आवश्यकता पर चर्चा हुई है।

भारत में सिविल सेवाओं के बारे में

  • भारत की सिविल सेवाएँ प्रशासनिक प्रणाली का आधार हैं, जो शासन, नीति कार्यान्वयन और जन सेवा वितरण को सुनिश्चित करती हैं।
  • संरचना:
    • अखिल भारतीय सेवाएँ: भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय वन सेवा (IFoS)।
    • केंद्रीय सिविल सेवाएँ: भारतीय विदेश सेवा (IFS), भारतीय राजस्व सेवा (IRS), भारतीय लेखा और लेखा परीक्षा सेवा (IAAS) आदि।
    • राज्य सिविल सेवाएँ: राज्य लोक सेवा आयोगों (SPSC) द्वारा संचालित।
  • भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 21 अप्रैल 1947 को सिविल सेवाओं को ‘भारत की स्टील फ्रेम’ कहा क्योंकि यह राष्ट्र निर्माण, शासन और नीति क्रियान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • भारत प्रत्येक वर्ष 21 अप्रैल को सिविल सेवा दिवस मनाता है ताकि सिविल सेवकों के योगदान को सम्मानित किया जा सके।

ऐतिहासिक विकास और वर्तमान प्रारूप

  • मैकॉले रिपोर्ट (1854): इसने योग्यता आधारित चयन की नींव रखी।
  • कोठारी समिति (1975): इसने तीन-स्तरीय परीक्षा प्रणाली (प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार) की शुरुआत की।
    •  हालाँकि यह प्रणाली मुख्य रूप से अपरिवर्तित रही, पारदर्शिता और समावेशिता बढ़ाने के लिए विभिन्न संशोधन किए गए।
  • मुख्य सुधार:
    • 2005: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम ने UPSC की मूल्यांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाई।
    • 2011: एस.के. खन्ना समिति ने प्रारंभिक परीक्षा के ऐच्छिक विषय को सामान्य पेपर से बदलने की सिफारिश की, जिससे पेपर-I (सामान्य अध्ययन) और पेपर-II (योग्यता परीक्षा) की शुरुआत हुई।
    • 2013: अरुण निगवेकर समिति ने सामान्य अध्ययन विषयों को पुनर्गठित करने का सुझाव दिया, जिसमें भारतीय राजनीति, शासन, अर्थव्यवस्था, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शामिल किए गए।
संविधान के अंतर्गत लोक सेवाओं से संबंधित प्रावधान
– भारतीय संविधान भाग XIV में लोक सेवाओं के लिए एक संरचना प्रदान करता है।
लोक सेवा आयोग की स्थापना:
अनुच्छेद 315: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) और राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) की स्थापना अनिवार्य करता है।
– राज्यों द्वारा प्रस्ताव पारित करके संयुक्त लोक सेवा आयोग भी स्थापित किया जा सकता है।
नियुक्ति और कार्यकाल:
अनुच्छेद 316: UPSC अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं, जबकि राज्यों में SPSC के सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं।
– सदस्य छह वर्ष या 65 वर्ष (UPSC) / 62 वर्ष (SPSC) तक पद पर रहते हैं।
कार्य और जिम्मेदारियाँ:
अनुच्छेद 320 के अंतर्गत लोक सेवा आयोग की जिम्मेदारियाँ शामिल हैं:
1.1 सिविल सेवा परीक्षाएँ आयोजित करना।
1.2 भर्ती, पदोन्नति और अनुशासनात्मक मामलों पर सलाह देना।
1.3 पेंशन और कानूनी व्ययों के दावों का निपटान।
हटाने की प्रक्रिया और सुरक्षा:
अनुच्छेद 317: सर्वोच्च न्यायालय की जाँच के बाद राष्ट्रपति दुर्व्यवहार के आधार पर सदस्यों को हटा सकते हैं।
– सेवा शर्तों को उनके प्रतिकूल नहीं बदला जा सकता।
वित्तीय स्वतंत्रता:
– UPSC और SPSC का व्यय भारत/राज्य के समेकित निधि से लिया जाता है, जिससे उनकी स्वायत्तता सुनिश्चित होती है।

वर्तमान प्रणाली की चुनौतियाँ

  • प्रारंभिक परीक्षा का निस्यंदन तंत्र: यह अब अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक बन गया है, जिससे पाँच लाख उम्मीदवारों में से केवल 10,000 ही अगले चरण में पहुँचते हैं।
  • पेपर-II (CSAT) में पक्षपात: यह विज्ञान और इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों के लिए अधिक अनुकूल है, जिससे मानविकी छात्रों को कठिनाई होती है।
  • अपराध्य: पेपर-I अत्यधिक अप्रत्याशित हो गया है, जिससे तैयारी महँगी और संसाधन-गहन हो गई है।
  • मुख्य परीक्षा में समस्याएँ:
    • सामान्य अध्ययन में संक्षिप्त उत्तर प्रारूप केवल तथ्यों को प्राथमिकता देता है, जिससे विश्लेषणात्मक कौशल का सही मूल्यांकन नहीं होता।
    • विकल्पीय विषय अकादमिक पृष्ठभूमि के बजाय स्कोरिंग प्रवृत्तियों के आधार पर चुने जाते हैं।

सुधार की आवश्यकता

  • प्रारंभिक परीक्षा में निष्पक्ष चयन प्रक्रिया को लागू करना।
  • पेपर-II को सभी शैक्षणिक पृष्ठभूमियों के उम्मीदवारों के लिए संतुलित बनाना।
  • मुख्य परीक्षा में लंबे उत्तर आधारित विश्लेषणात्मक प्रश्न शामिल करना।
  • विकल्पीय विषयों को ‘शासन और नीति’ जैसे सामान्य पेपर से बदलना।
  • 2030 तक आयु और प्रयास सीमाएँ बरकरार रखना ताकि समावेशिता बनी रहे।

2030 के बाद संभावित सुधार

  • 2030 के बाद जनसांख्यिकी, शिक्षा पहुँच और सामाजिक उन्नति के आधार पर संशोधन किए जा सकते हैं।
  • किसी भी परिवर्तन में मेरिट-आधारित चयन और समावेशिता सुनिश्चित की जानी चाहिए।

Source: TH

 

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