पाठ्यक्रम :GS1/इतिहास/GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- हाल की राष्ट्रीय स्मृतियों और सार्वजनिक चर्चाओं ने मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया, मुथुलक्ष्मी रेड्डी एवं प्रसांता चंद्र महालनोबिस की स्थायी विरासतों को पुनः उजागर किया है तथा 2025 में उनके निरंतर प्रभाव को रेखांकित किया है।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
- उनका जन्म 15 सितंबर 1861 को हुआ था और उन्हें भारत के महानतम इंजीनियरों में से एक माना जाता है, जिनके अग्रणी कार्यों ने बुनियादी ढांचे के विकास में क्रांति ला दी।
- उन्होंने मैसूर के दीवान और ऑल इंडिया मैन्युफैक्चरर्स ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।
- वे औद्योगिक आधुनिकता की ओर भारत के प्रयासों में एक प्रमुख व्यक्ति थे, विशेष रूप से औपनिवेशिक काल में।
- उन्होंने सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, शिक्षा, अवसंरचना और आर्थिक योजना में अग्रणी परियोजनाओं का नेतृत्व किया।
- वे आत्मनिर्भरता, ईमानदारी और शिक्षा व विकास के माध्यम से राष्ट्रीय प्रगति में विश्वास रखते थे।
- उन्हें 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया और उनकी विरासत इंजीनियरिंग से आगे बढ़कर अर्थशास्त्र, शासन एवं राष्ट्र निर्माण तक फैली हुई है, जिससे वे आधुनिक भारत के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से एक बन गए।
मुथुलक्ष्मी रेड्डी
- मुथुलक्ष्मी रेड्डी का जन्म पुदुकोट्टई में हुआ था।
- उन्होंने प्रारंभिक भेदभाव को पार कर मद्रास मेडिकल कॉलेज से भारत की प्रथम महिला सर्जन बनने का गौरव प्राप्त किया।
- महिला अधिकारों की अग्रणी समर्थक, वे मद्रास की प्रथम महिला विधायक भी थीं, जिन्होंने देवदासी प्रथा के विरुद्ध संघर्ष किया।
- उन्होंने अव्वै महिला आश्रय की स्थापना की और सभी रोगियों के लिए समान उपचार की प्रतिबद्धता के साथ अडयार कैंसर अस्पताल की स्थापना की।
- उनकी विरासत तमिलनाडु की मातृत्व लाभ योजना के माध्यम से जीवित है, जो उनके नाम पर है, और उनके प्रेरणादायक प्रभाव उनके जन्मस्थान में आज भी प्रबल है।
प्रसांता चंद्र महालनोबिस
- प्रसांता चंद्र महालनोबिस, जिन्होंने इंग्लैंड में विज्ञान की पढ़ाई शुरू की थी, भारत के आर्थिक विकास के लिए सांख्यिकी के अनुप्रयोग में अग्रणी बने।
- उन्होंने 1932 में भारतीय सांख्यिकी संस्थान और 1950 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की स्थापना की, जिसने भारत की डेटा-आधारित योजना को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से द्वितीय पंचवर्षीय योजना के दौरान जो औद्योगिक विकास पर केंद्रित थी।
- उनके सर्वेक्षणों ने भारत भर में गरीबी, रोजगार और उपभोग पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान की।
- वे मानते थे कि सांख्यिकी का उद्देश्य गरीबी को संबोधित करना होना चाहिए, जो उनके सार्वजनिक सेवा और राष्ट्रीय प्रगति के प्रति समर्पण को दर्शाता है—ऐसे मूल्य जो विश्वेश्वरैया एवं मुथुलक्ष्मी रेड्डी जैसे अन्य सुधारकों के साथ साझा किए गए।
उन्होंने आधुनिक भारत को कैसे आकार दिया?
- उन्होंने सार्वजनिक सेवा और संस्थागत विकास के माध्यम से स्वतंत्र भारत में बुनियादी योगदान दिए।
- सार्वजनिक सेवा, संस्थागत सुधार और सामाजिक प्रगति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से वे भारत की स्वतंत्रता के पश्चात की आकांक्षाओं को परिभाषित करने में सहायक बने तथा इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य सेवा एवं आर्थिक शासन में स्थायी विरासतें छोड़ीं।
Source:TH
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