सिक्किम में सेना स्टेशन भूस्खलन की चपेट में

पाठ्यक्रम: GS1/ भूगोल, GS3/ पर्यावरण

संदर्भ 

  • भारी वर्षा के कारण सिक्किम के लाचेन जिले में एक सैन्य शिविर में भूस्खलन हुआ, जिससे हताहतों की संख्या में वृद्धि हुई और संपत्ति की हानि हुई।

भूस्खलन क्या है? 

  • भूस्खलन एक भूवैज्ञानिक घटना है जिसमें गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में चट्टान, मृदा या मलबे का एक द्रव्यमान अचानक और तेजी से नीचे की ओर खिसकता है। 
  • भूस्खलन सामान्यतः उन क्षेत्रों में होता है जिनमें निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं: जैसे कि उर्ध्वाधर ढाल (पहाड़ी या पर्वतीय क्षेत्र), संधियों एवं दरारों की उपस्थिति, सतही जल प्रवाह की दिशा या अत्यधिक जल-संतृप्त भूमि।

भूस्खलन के कारण 

  • प्राकृतिक कारण:
    • भारी वर्षा: भारी वर्षा भूस्खलन का सबसे सामान्य कारणों में से एक है। यह मृदा को संतृप्त कर उसके छिद्र जल दबाव और भार को बढ़ाती है।
    • अपरदन: मृदा या चट्टानों में मौजूद चिकनी मृदा और वनस्पति कणों को जोड़कर स्थिरता प्रदान करते हैं। इनके हटने से अपरदन होता है, जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है।
    • भूकंप: भूकंप के कारण तीव्र धरातलीय कंपन होता है, जिससे चट्टानों और मृदा की स्थिरता प्रभावित होती है और भूस्खलन उत्पन्न होता है।
    • ज्वालामुखी विस्फोट: ज्वालामुखी से निकला राख और मलबा ढलानों को अधिभारित कर देता है, वहीं संलग्न भूकंपीय गतिविधि अस्थिरता उत्पन्न करती है।
  • मानव जनित कारण:
    • वनों की कटाई: वनस्पति आवरण मृदा को रोकता है और गिरते मलबे के प्रवाह को बाधित करता है, जिससे भूस्खलन की रोकथाम होती है। वनों की कटाई इस सुरक्षा को समाप्त कर भूस्खलन की संवेदनशीलता बढ़ा देती है।
    • संवेदनशील क्षेत्रों में अतिक्रमण: हाल के वर्षों में, मानवों ने भूस्खलन संभावित क्षेत्रों जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में अतिक्रमण किया है, जिससे निर्माण गतिविधियाँ बढ़ गई हैं और भूस्खलन का खतरा बढ़ा है।
    • अनियंत्रित खुदाई: अनधिकृत या खराब तरीके से नियोजित खुदाई (जैसे खनन, उत्खनन) ढलानों को अस्थिर कर भूस्खलन की संभावना बढ़ा देती है।

भारत में भूस्खलन की संवेदनशीलता 

  • भारत अपनी विवर्तनिक स्थिति के कारण भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। 
  • भारतीय महाद्वीपीय प्लेट की उत्तर दिशा में 5 सेमी/वर्ष की गति से हो रही चाल तनाव उत्पन्न करती है, जिससे प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूस्खलन होते हैं। 
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा जारी ‘भारत का भूस्खलन एटलस’ देश के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों को सूचीबद्ध करता है।
    • भारत विश्व के शीर्ष पाँच भूस्खलन-प्रवण देशों में शामिल है। 
    • हिमाच्छादित क्षेत्रों को छोड़कर, लगभग 12.6% भारत भूस्खलन के प्रति संवेदनशील है।
    •  इनमें से 66.5% उत्तर-पश्चिमी हिमालय, 18.8% उत्तर-पूर्वी हिमालय और 14.7% पश्चिमी घाट क्षेत्र में आते हैं।

भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: यह अधिनियम विभिन्न आपदाओं, जिसमें भूस्खलन भी शामिल है, के प्रबंधन हेतु एक व्यापक कानूनी एवं संस्थागत ढाँचा प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति (2019): यह रणनीति जोखिम में कमी और प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं जैसे कि खतरे का मानचित्रण, निगरानी, एवं प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को कवर करती है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): NDMA ने ‘भूस्खलन खतरा प्रबंधन’ हेतु दिशानिर्देश (2009) जारी किए, जो भूस्खलन के जोखिम को कम करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों को रेखांकित करते हैं।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM): यह विभिन्न राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर की आपदा प्रबंधन एजेंसियों को क्षमता निर्माण और अन्य सहायता प्रदान करता है।
  • भूस्खलन खतरा क्षेत्र मानचित्रण (LHZM): भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र (NRSC) ने संवेदनशील क्षेत्रों को पहचाने हेतु मानचित्र विकसित किए हैं। ये मानचित्र भूमि उपयोग, बुनियादी ढाँचे के विकास और आपदा तैयारी में सहायक होते हैं।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: बेहतर मौसम पूर्वानुमान के प्रयास किए गए हैं, जैसे कि समूह पूर्वानुमान प्रणाली (Ensemble Prediction System), जो भूस्खलन जैसी आपदाओं की भविष्यवाणी में मदद करेगा।

आगे की राह

  • व्यापक खतरा क्षेत्र मानचित्रण: भूस्खलन खतरा मानचित्रों को नवीनतम LiDAR, ड्रोन और GIS आधारित तकनीकों का उपयोग कर नियमित रूप से अद्यतन किया जाना चाहिए।
  • पुनरोपण एवं पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन: स्थानीय प्रजातियों के साथ वनीकरण अभियान और जैव-इंजीनियरिंग तकनीकों के माध्यम से ढलान स्थिरीकरण कटाव और मृदा की अस्थिरता को कम करने में सहायता कर सकते हैं।
  • जलवायु-उत्तरदायी अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन के कारण तीव्र वर्षा की घटनाएँ बढ़ रही हैं, ऐसे में स्थानीय अनुकूलन रणनीतियाँ जैसे कि प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे का निर्माण और जल निकासी प्रणाली में सुधार महत्त्वपूर्ण हैं।

Source:IE

 

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