भारत और जापान समुद्री संबंधों को प्रगाढ़ करने पर सहमत हुए

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

समाचार में 

  • भारत और जापान ने औपचारिक रूप से समुद्री संबंधों को प्रगाढ़ करने पर सहमति व्यक्त की है, जिससे समुद्री क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग के प्रति उनकी साझा प्रतिबद्धता की पुष्टि होती है।

समुद्री सहयोग की प्रमुख विशेषताएँ

  • स्मार्ट द्वीप और अक्षय ऊर्जा: जापान ने अंडमान और निकोबार व लक्षद्वीप द्वीपों को स्मार्ट, हरित द्वीपों में बदलने के लिए समर्थन दिया है, जिसमें अक्षय ऊर्जा, आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचा एवं सतत् समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं। 
  • बंदरगाह डिजिटलीकरण और उत्सर्जन में कमी: दोनों पक्षों ने बंदरगाह संचालन में डिजिटल तकनीकों के उपयोग पर सहमति व्यक्त की है ताकि दक्षता बढ़ाई जा सके, लॉजिस्टिक लागत कम की जा सके, और कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम किया जा सके। यह भारत की स्मार्ट पोर्ट पहल के अनुरूप है। 
  • नाविकों का रोजगार और कौशल विकास: 1.54 लाख से अधिक प्रशिक्षित भारतीय नाविकों के साथ, जापान ने समुद्री क्षेत्र में अपने कुशल श्रम की कमी को पूरा करने के लिए भारतीय समुद्री पेशेवरों की भर्ती में रुचि व्यक्त की है। 
  • समुद्री बुनियादी ढाँचे में निवेश: जापान की इमाबारी शिपबिल्डिंग आंध्र प्रदेश में एक ग्रीनफील्ड शिपयार्ड परियोजना का प्रस्ताव दे रही है, जो भारत की समुद्री भारत दृष्टि 2030 के लिए महत्त्वपूर्ण घरेलू जहाज निर्माण क्षमता को मजबूत करने के जापान की इच्छा को दर्शाता है। 
  • अनुसंधान एवं विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: आगामी पीढ़ी के जहाजों की डिज़ाइन, सतत् समुद्री प्रौद्योगिकियों और संयुक्त अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ाने के लिए कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) के माध्यम से सहयोग को प्राथमिकता दी गई है। इसमें स्वच्छ ईंधन वाले जहाज और जहाज निर्माण में स्वचालन शामिल हैं।

समुद्री समझौते का महत्त्व

  • रणनीतिक लाभ: भारत की हिंद-प्रशांत समुद्री सुरक्षा और बंदरगाह लॉजिस्टिक्स में मजबूती।
  • हरित शिपिंग: भारत की कार्बन-न्यूट्रल समुद्री लॉजिस्टिक्स की दृष्टि का समर्थन, जो समुद्री अमृत काल दृष्टि 2047 के अनुरूप है।
  • रोजगार सृजन: भारत की कुशल समुद्री कार्यबल का उपयोग जापान में श्रमिक की कमी को पूरा करने के लिए। भारतीय नाविक वैश्विक समुद्री कार्यबल का लगभग 10% हिस्सा हैं।
  • प्रौद्योगिकी उन्नति: स्वच्छ, स्मार्ट समुद्री प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण की सुविधा, भारत के नवाचार आधार को मजबूत करना।

भारत-जापान संबंधों का अवलोकन

  • आधारशिला
    • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध: संबंध प्राचीन सांस्कृतिक आदान-प्रदान में निहित हैं, विशेष रूप से बौद्ध धरोहर में। स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर और न्यायमूर्ति राधा बिनोद पाल जैसी हस्तियों ने संबंधों को मजबूत करने में योगदान दिया है।
    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संधि: भारत 1952 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर करने वाले पहले देशों में से एक था, जिसने सभी पुनर्वास दावों को माफ कर दिया और सद्भावना की प्रारंभिक नींव रखी।
  • रणनीतिक साझेदारी
    • हिंद-प्रशांत दृष्टि: दोनों राष्ट्र “मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत” (FOIP) तथा “हिंद-प्रशांत महासागर पहल” (IPOI) की साझा दृष्टि रखते हैं, जो क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • क्वाड सुरक्षा संवाद (Quad): भारत और जापान क्वाड के प्रमुख सदस्य हैं, जिसमें अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं। इसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देना है।
    • आपूर्ति शृंखला समुत्थानशील पहल (SCRI): वे SCRI ढाँचे के अंतर्गत आपूर्ति शृंखलाओं को विविध बनाने और एकल स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए कार्य करते हैं, विशेष रूप से चीन के प्रभुत्व को संतुलित करने के लिए।
    • रक्षा सहयोग: इसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास (जैसे JIMEX, धर्म गार्जियन), 2+2 संवाद (मंत्रिस्तरीय चर्चा) और अधिग्रहण एवं क्रॉस-सर्विसिंग समझौता (ACSA) जैसे लॉजिस्टिक्स समर्थन समझौते शामिल हैं। रक्षा उपकरणों के सह-उत्पादन पर भी ध्यान दिया जा रहा है, जैसे यूनिकॉर्न मास्ट सिस्टम।
  • आर्थिक जुड़ाव
    • बढ़ता व्यापार: FY 2023-24 के दौरान भारत-जापान द्विपक्षीय व्यापार 22.85 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • निवेश लक्ष्य: जापान ने 2027 तक भारत में सार्वजनिक और निजी निवेश में पाँच ट्रिलियन येन (₹3.2 लाख करोड़) का लक्ष्य रखा है। जापान भारत में FDI का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है, जहाँ 1,400 से अधिक जापानी कंपनियाँ कार्य कर रही हैं।
    • समग्र आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA): 2011 में हस्ताक्षरित CEPA द्विपक्षीय व्यापार को मजबूत करने का प्रयास करता है, हालाँकि इसे पूरी तरह से लागू करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
    • आधिकारिक विकास सहायता (ODA): जापान 1958 से भारत का सबसे बड़ा द्विपक्षीय दाता रहा है, जो प्रमुख बुनियादी ढाँचे और विकास परियोजनाओं का समर्थन करता है।
  • बुनियादी ढाँचा विकास
    • फ्लैगशिप परियोजनाएँ: मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल (बुलेट ट्रेन) और भारत के कई शहरों (जैसे दिल्ली, अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई) में मेट्रो सिस्टम में जापान एक प्रमुख भागीदार है।
    • उत्तर-पूर्व विकास: जापान भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” के अंतर्गत उत्तर-पूर्व क्षेत्र में सड़क नेटवर्क, पुल और शहरी बुनियादी ढाँचे के विकास में सक्रिय रूप से निवेश कर रहा है।
    • गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिए साझेदारी: यह जापानी मॉडल उच्च गुणवत्ता और सतत् बुनियादी ढाँचे पर बल देता है।
  • ऊर्जा और प्रौद्योगिकी सहयोग
    • नागरिक परमाणु समझौता (2017): नागरिक परमाणु ऊर्जा में सहयोग को सुगम बनाता है।
    • अंतरिक्ष सहयोग: ISRO और JAXA द्वारा लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन।
    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: जापानी पर्यावरणीय तकनीकों और स्थायी प्रथाओं को भारतीय उद्योगों में बढ़ावा देने का प्रयास।
  • जन-जन संपर्क
    • कौशल विकास: तकनीकी इंटर्न प्रशिक्षण कार्यक्रम (TITP) और निर्दिष्ट कुशल कार्यकर्ता (SSW) कार्यक्रम जापान की वृद्ध होती अर्थव्यवस्था में कुशल भारतीय कार्यबल की आपूर्ति को सुगम बनाते हैं।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: बौद्ध धर्म, शैक्षणिक कार्यक्रमों और युवा जुड़ाव पर आधारित निरंतर आदान-प्रदान।

Source: PIB

 

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