पाठ्यक्रम: GS2/सामाजिक मुद्दे; महिलाओं से संबंधित मुद्दे; शासन
संदर्भ
- हाल ही में, पंचायती राज मंत्रालय के पैनल ने कई कारणों की पहचान की है कि क्यों पंचायती राज प्रणाली में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के पुरुष रिश्तेदार उनकी ओर से प्रॉक्सी के रूप में कार्य करने में सक्षम हैं।
पंचायतों में महिलाएँ
- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) में महिला आरक्षण का प्रारंभ भारत के राजनीतिक परिदृश्य में लैंगिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था।
- इसमें यह अनिवार्य किया गया कि पंचायतों में सभी सीटों में से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएँ, ताकि वे धरातल स्तर पर शासन में भाग ले सकें।
- विगत् कुछ वर्षों में, कई राज्यों ने इसे बढ़ाकर 50% कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप PRIs में 1.45 मिलियन से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि (EWRs) उपस्थित हैं।
महिला पंचायत सदस्यों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
- पितृसत्तात्मक मानसिकता और सरपंच पति सिंड्रोम: कई मामलों में, परिवार के पुरुष सदस्य, विशेषकर पति (सरपंच पति), पिता या भाई, वास्तविक निर्णयकर्त्ता के रूप में कार्य करते हैं, जिससे निर्वाचित महिला प्रतिनिधि केवल नाममात्र की रह जाती हैं।
- इसे व्यापक रूप से ‘सरपंच पति सिंड्रोम’ के रूप में जाना जाता है और यह राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों में प्रचलित है।
- राजनीतिक प्रशिक्षण और जागरूकता का अभाव: कई महिलाओं में शासन संरचनाओं, वित्तीय नियोजन और नीति कार्यान्वयन के बारे में जागरूकता का अभाव है।
- यह उनकी निर्णय लेने की क्षमताओं में बाधा उत्पन्न करता है, जिससे वे शासन से संबंधित मामलों के लिए पुरुष समकक्षों या नौकरशाहों पर निर्भर हो जाती हैं।
- नौकरशाही और पुरुष समकक्षों का प्रतिरोध: कई नौकरशाह महिला नेताओं को गंभीरता से लेने में विफल रहते हैं, यह मानते हुए कि उनमें योग्यता या निर्णय लेने के कौशल की कमी है।
- यह धन आवंटन और कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में विलंब करता है, जिससे महिलाओं के नेतृत्व वाले शासन का प्रभाव कम होता है।
- वित्तीय निर्भरता और आर्थिक सशक्तीकरण का अभाव: अधिकांश ग्रामीण महिलाएँ आर्थिक रूप से पुरुष पारिवारिक सदस्यों पर निर्भर रहती हैं, जो राजनीति में स्वतंत्र रूप से कार्य करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है।
- वित्तीय संसाधनों और माइक्रो-क्रेडिट योजनाओं तक सीमित पहुँच स्वतंत्र निर्णय लेने की उनकी क्षमता को और कम कर देती है।
- लिंग आधारित हिंसा और धमकियाँ: राजनीति में महिलाएँ, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, धमकी, मौखिक दुर्व्यवहार और यहाँ तक कि शारीरिक हिंसा का सामना करती हैं।
- विरोधी पुरुष राजनेताओं या प्रमुख जाति समूहों द्वारा उत्पीड़न की घटनाएँ महिलाओं को शासन में सक्रिय रूप से भाग लेने से हतोत्साहित करती हैं। चरम मामलों में, महिलाओं को अपने पदों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जाता है।
- काम और घरेलू जिम्मेदारियों का दोहरा भार: महिला नेता अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों और घरेलू कर्त्तव्यों के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष करती हैं।
- सामाजिक अपेक्षाएँ प्रायः उन पर घरेलू कार्य , बच्चों की देखभाल और कृषि कार्य का भार डालती हैं, जिससे उन्हें शासन के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सीमित समय मिलता है।
- सामाजिक और जाति आधारित भेदभाव: वंचित समुदायों की महिलाएँ – विशेष रूप से दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) – अंतरजातीय भेदभाव का सामना करती हैं।
- यह विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा जैसे भारतीय राज्यों में स्पष्ट है।
EWRs की निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत करने के लाभ
- बेहतर शासन और नीति कार्यान्वयन: उदाहरण के लिए, कुदुम्बश्री (केरल) में, सशक्त महिला नेताओं ने कल्याणकारी योजनाओं और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- बढ़ा हुआ प्रतिनिधित्व और लिंग-उत्तरदायी नीतियाँ: उदाहरण के लिए, नागालैंड में, महिलाओं के नेतृत्व वाली पंचायतों ने लिंग-आधारित हिंसा को कम करने और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
- वित्तीय स्वतंत्रता: उदाहरण: उदाहरण के लिए, बिहार में, EWR ने महिला उद्यमियों के लिए सूक्ष्म-ऋण योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिससे ग्रामीण रोज़गार को बढ़ावा मिला है।
- सरपंच पति सिंड्रोम के लिए प्रशिक्षण): उदाहरण के लिए, राजस्थान में, प्रशिक्षण कार्यक्रमों ने उन मामलों को कम करने में सहायता की जहाँ पतियों ने पंचायत के निर्णयों को नियंत्रित किया।
पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी को मजबूत करने वाली प्रमुख पहल
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) – SHG लिंकेज: यह ग्रामीण महिलाओं में नेतृत्व कौशल और वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ाता है।
- महिला सभाएँ (महिला ग्राम सभा बैठकें): शासन में महिलाओं के मुद्दों को प्राथमिकता देने के लिए नियमित ग्राम सभा बैठकों से पहले आयोजित की जाती हैं। ये सुनिश्चित करती हैं कि सामान्य पंचायत बैठकों से पहले स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा से संबंधित चिंताओं पर चर्चा की जाए।
- पंचायत महिला एवं युवा शक्ति अभियान (PMEYSA): इसका उद्देश्य पंचायतों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों (EWRs) के लिए क्षमता निर्माण करना है ताकि उनके नेतृत्व कौशल और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया जा सके।
- मिशन शक्ति (2022): इसमें संबल (सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए) और सामर्थ्य (आर्थिक सशक्तीकरण के लिए) जैसी योजनाएँ शामिल हैं, जिनका उद्देश्य पंचायतों जैसे शासन संरचनाओं में महिलाओं की भागीदारी को मजबूत करना भी है।
- महिला नेतृत्व विकास कार्यक्रम (पंचायती राज मंत्रालय): गैर सरकारी संगठनों और सरकारी एजेंसियों द्वारा समर्थित विभिन्न नेतृत्व तथा क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का उद्देश्य पंचायतों में महिलाओं की निर्णय लेने की क्षमताओं को बढ़ाना है।
आगे की राह: महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को मजबूत करना
- क्षमता निर्माण और नेतृत्व प्रशिक्षण: राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (केंद्र प्रायोजित योजना) जैसी पहलों का विस्तार किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक निर्वाचित महिला नेता अपने कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित हो।
- प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व के विरुद्ध कानूनों का सख्त कार्यान्वयन: राज्य सरकारों को पुरुष रिश्तेदारों को महिला पंचायत सदस्यों को अनौपचारिक रूप से नियंत्रित करने से रोकने के लिए कानूनों को सख्ती से लागू करना चाहिए।
- जागरूकता अभियानों में महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए और उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए सशक्त बनाना चाहिए।
- वित्तीय सशक्तीकरण और संसाधनों तक पहुँच: महिला नेताओं को नौकरशाही के हस्तक्षेप के बिना पंचायत निधि और वित्तीय सहायता तक सीधी पहुँच दी जानी चाहिए।
- उनकी आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ाने और परिवार के पुरुष सदस्यों पर वित्तीय निर्भरता कम करने के लिए माइक्रोफाइनेंस योजनाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- उच्च राजनीतिक कार्यालयों में आरक्षण: जबकि PRIs में महिलाओं के लिए 33-50% आरक्षण है, इसे विधानसभाओं और संसदीय चुनावों तक बढ़ाया जाना चाहिए।
- नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है, लेकिन यह अधिनियमन के बाद की जनगणना के आधार पर परिसीमन के बाद ही प्रभावी होगा।
- यह अधिक महिला नेताओं को बुनियादी स्तर के शासन से राज्य और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में संक्रमण करने में सक्षम बनाएगा।
- महिला सहायता नेटवर्क को मजबूत करना: निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के राष्ट्रीय महासंघ (NFEWR) जैसी पहलों का सभी राज्यों में विस्तार किया जाना चाहिए।
- महिला नेताओं के लिए सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करना: महिला नेताओं को उत्पीड़न, हिंसा और राजनीतिक धमकी से बचाने के लिए सख्त उपाय लागू किए जाने चाहिए।
- फास्ट-ट्रैक अदालतों को निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के विरुद्ध हिंसा के मामलों को संभालना चाहिए।
निष्कर्ष
- जबकि महिला पंचायत सदस्यों ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन व्यवस्थागत बाधाएँ उन्हें पीछे करने का प्रयास कर रही हैं।
- इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें क्षमता निर्माण, कानूनी सुधार, लैंगिक संवेदनशीलता और सामुदायिक समर्थन शामिल है।
- महिला प्रतिनिधियों को सशक्त बनाकर और स्थानीय शासन में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करके, भारत लैंगिक समानता एवं समावेशी विकास को प्राप्त करने के करीब पहुँच सकता है।
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संक्षिप्त समाचार 01-03-2025